Debt Funds: जैसे जैसे इंटरेस्ट रेट बढ़ता है वैसे वैसे बॉन्ड की कीमतें घटती हैं. वहीं, बॉन्ड की कीमतें बढ़ने के साथ ब्याज दरे घटती हैं. बॉन्ड कीमतों का असर म्यूचुअल फंड के NAV पर दिखाई देता है. यही वजह है कि मौजूदा दौर में एक्सपर्ट्स का मानना है कि अगर इंटरेस्ट रेट में बढ़ोतरी होती है तो छोटी अवधि के डेट म्यूचुअल फंड में निवेश किया जा सकता है.
पिछले साल महामारी की दस्तक के साथ ही यील्ड 5.9 फीसदी से 6.25 फीसदी के बीच रही हैं. रिकॉर्ड वित्तीय घाटे और सरकारी उधारी के बावजूद, रिजर्व बैंक की ओर से सेकेंड्री मार्केट में बॉन्ड की खरीदारी से यील्ड ऊंची ही रहीं.
सैमको ग्रुप के रैंक एमएफ के प्रमुख ओमकेश्वर सिंह कहते हैं, “पिछले साल महामारी की वजह से इंटरेस्ट रेट में कमी आई थी जिससे लंबी अवधि के डेट फंड में डबल डिजिट रिटर्न देखने को मिले थे लेकिन छोटी अवधि के डेट फंड की कमाई पर असर पड़ा था.”
वहीं, दूसरी लहर के वक्त राहत पैकेज की डिमांड कायम रही और इकोनॉमी की स्थिति को लेकर कुछ चिंताएं बरकरार रहीं. महंगाई भी कच्चे तेल के उछाल की वजह से 5 फीसदी के करीब रही हैं. यही वजह है कि जिससे लंबी अवधि में यील्ड कर्व पर दबाव का अनुमान है.
एसोसिएशन ऑफ म्यूचुअल फंड्स इंडिया (AMFI) के डेटा के मुताबिक डेट कैटेगरी के फंड में से मई 2021 में 44,512 करोड़ रुपये निकाले गए हैं. दरअसल, लिक्विड फंड्स में से बड़े आउटफ्लो का असर देखने को मिला है. लिक्विड फंड्स में से मई में 45,447.36 करोड़ रुपये का आउटफ्लो रहा जबकि ओवरनाइट फंड कैटेगरी से 11,573.01 करोड़ रुपये की निकासी हुई है.
वहीं, मनी मार्केट फंड, लो ड्यूरेशन फंड, अल्ट्रा शॉर्ट ड्यूरेशन फंड में अच्छा इन्फ्लो दर्ज किया गया है. मॉर्निंगस्टार इंडिया के रिसर्च मैनेजर एसोसिएट डायरेक्टर हिमांशु श्रिवास्तव के मुताबिक, “ये दर्शाता है कि मौजूदा ब्याज दरों की स्थिति में निवेशक छोटी अवधि के फिक्स्ड इनकम फंड्स ज्यादा पसंद कर रहे हैं – खास तौर पर 3 महीने से 1 साल की अवधि के बीच.”
निवेशकों को अपनी जरूरत के मुताबिक डेट फंड चुनना चाहिए. डेट फंड में कई तरह के विकल्प हैं जिनमें अलग-अलग क्रेडिट रिस्क और इंटरेस्ट रेट रिस्क शामिल हैं और निवेशक अपने हिसाब से इन्हें चुन सकते हैं.
म्यूचुअल फंड निवेशकों के पास शॉर्ट ड्यूरेशन फंड, कॉरपोरेट बॉन्ड फंड, बैंकिंग एंड पीएसयू कैटेगरी के फंड का विकल्प मौजूद है.
ओमकेश्वर सिंह का कहना है, “बैंकिंग एंड पीएसयी फंड्स और कॉरपोरेट बॉन्ड फंड्स पर गौर करना चाहिए क्योंकि इनमें क्रेडिट रिस्क कम रहता है और इंटरेस्ट रिस्क मध्यम.”
वहीं, पिछले 12 महीनों में 2 से 4 साल की अवधि के बीच के डेट म्यूचुअल फंड का प्रदर्शन लंबी अवधि के डेट फंड से बेहतर रहा है. हालांकि, ऐसे निवेशक जो जोखिम ले सकते हैं वे डायनेमिक बॉन्ड फंड्स पर भी गौर कर सकते हैं.
PGIM इंडिया म्यूचुअल फंड के फिक्स्ड इनकम CIO कुमारेश रामाकृष्णन कहते हैं, “5 साल से 10 साल की अवधि में डायनेमिक बॉन्ड फंड्स का प्रदर्शन शॉर्ट ड्यूरेशन और बैंकिंग एंड पीएसयी कैटेगरी के फंड्स से अच्छा रहा है.”
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