कैपिटल मार्केट रेग्युलेटर सेबी की तरफ से मिरर ट्रेडिंग के मामले को सेटल किए जाने की चर्चा पूरी दलाल स्ट्रीट में है. सेबी ने हाल ही में एक ब्रोकिंग कंपनी के साथ मामले को सेटल किया है. सेबी की तरफ से मामले को सेटल किए जाने के बाद चर्चा है कि क्या इससे मिरर ट्रेडिंग को कानूनी मान्यता मिल रही है. मिरर ट्रेडिंग शेयर बाजार में ट्रेड की एक तकनीक है, जिसके जरिए कोई व्यक्ति किसी दूसरे की ट्रेडिंग रणनिति को अपनाता है.
क्या था मामला
मुंबई की एक कंपनी एक्विटास इन्वेस्टमेंट कन्सल्टेंसी के मनी मैनेजर सिद्धार्थ भैया ने एक ब्रोकर पवन अग्रवाल पर मिरर ट्रेडिंग का आरोप लगाया. एक्विटास ने पवन अग्रवाल के खिलाफ सेबी के पास शिकायत दर्ज कराई है और आरोप लगाया है कि यह धोखाधड़ी जैसा मामला है. सेबी की जांच के बाद अग्रवाल ने सेटलमेंट के लिए एक आवेदन किया है, जिसमें रेग्युलेटर और संबंधित इकाई के बीच अपराध स्वीकार किए बिना प्रतिभूति कानून के उल्लंघन का कोर्ट से बाहर समाधान शामिल है. शुल्क का भुगतान भी इसमें शामिल है. रेग्युलेटर की ओर से सेटलमेंट मैकेनिज्म एक विवेकाधीन अभ्यास है. सेटलमेंट के तहत पवन अग्रवाल ने 45.99 लाख का भुगतान किया है. सेबी ने 5 जुलाई को एक आदेश में कहा कि उसकी जांच में अग्रवाल द्वारा आगे बढ़ने का कोई उदाहरण सामने नहीं आया, लेकिन उसने पाया कि उसने धोखाधड़ी और अनुचित व्यापार प्रथाओं के निषेध (पीएफयूटीपी) विनियमों के तहत प्रावधानों का उल्लंघन किया है. सेबी ने माना कि मिरर ट्रेडिंग इन नियमों के कुछ प्रावधानों का उल्लंघन करती है.
क्या है नियम
भारत में इन्साइडर ट्रेडिंग को लेकर तो नियम है लेकिन मिरर ट्रेडिंग को लेकर कोई नियम नहीं है यानी दो लोग एक दूसरे से बिल्कुल मिलते जुलते सौदे कर सकते हैं. बाजार को उम्मीद थी कि सेबी इस मामले में दखल देगा लेकिन सेटलमेंट के बाद ये उम्मीद भी टूट गई. ऐसे में ब्रोकर्स को यह चिंता है कि आने वाले समय में कई लोग इस तरह की रणनीति अपना सकते हैं.