Mutual Funds: बजट सत्र की शुरुआत हो गई है और उम्मीदें बढ़ती जा रही हैं. इन्वेस्टर्स की ताक रहती है कि बजट में वित्त मंत्री टैक्स के मोर्चे पर कौन सी नई राहत का ऐलान करेंगी, किस निवेश पर डिडक्शन या छूट मिले ताकि वहां भी हाथ बढ़ाया जा सके. रिटेल इन्वेस्टर्स को निवेश पर और फायदा मिले इसके लिए एसोसिएशन ऑफ म्यूचुअल फंड्स इन इंडिया (AMFI) ने इस साल के बजट के लिए दिए प्रस्तावों में तीन बिंदुओं पर फोकस किया है –
– फाइनेंशियल सेक्टर में अलग-अलग निवेश विकल्पों पर लगने वाले टैक्स में समानता की जरूरत – रिटेल टैक्सपेयर्स को होने वाली दिक्कतें कम हों – म्यूचुअल फंड्स (Mutual Funds) के जरिए कैपिटल मार्केट में लोगों को प्रोत्साहित किया जाए. सभी प्रस्ताव रिटेल और छोटे निवेशकों के हित में दिए गए हैं.
म्यूचुअल फंड्स को ULIPs के बराबर की रियायत मिले
AMFI ने लगातार इस बात से दूरी बनाई है कि म्यूचुअल फंड्स (Mutual Funds) के मुकाबले युनिट लिंक्ड इंश्योरेंस प्लान्स की स्थिति ज्यादा मजबूत है. एक ही AMC की दूसरी स्कीम में ट्रांसफर करने को इंडिपेंडेट ट्रांजैक्शन माना जाता है और उसपर कैपिटल गेन टैक्स लगता है. वहीं दूसरी तरफ ULIPs में एक स्कीम से दूसरी स्कीम में बिना किसी कैपिटल गेन टैक्स के स्विच करने की सुविधा है. AMFI ने म्यूचुअल फंड्स के लिए ULIPs जैसी ही समानता की मांग की है. प्रस्ताव को मंजूरी मिलने से म्यूचुअल फंड निवेशकों को दो स्कीम के मर्ज होने पर बेहतर NAV मिलेगी क्योंकि फिर कोई टैक्स नहीं लगेगा.
LTCG दूसरा मसला है. एक साल में 1 लाख से ज्यादा मुनफा होने पर इक्विटी फंड्स (Equity Funds) पर 10% लॉन्ग टर्म कैपिटन गेन टैक्स लगता है. ये बिना इंडेक्सेशन की छूट के है. ULIPs के कैपिटल गेन टैक्स-फ्री है और AMFI ने इसपर समानता की मांग की है. इससे रिटेल निवेशकों की टैक्स बचत होगी.
तीसरा मुद्दा है सिक्योरिटीज ट्रांजैक्शन टैक्स (STT) को लेकर भेदभाव. इक्विटी फंड को रिडीम करने पर उसे मार्केट में बिक्री जैसा ट्रीटमेंट मिलता है और उसपर STT लगता है. इससे कुल रिटर्न कम हो जाता है और ELSS फंड्स को ULIPs के मुकाबले हानि होती है. AMFI ने इक्विटी फंड्स (Equity Funds) से STT हटाने की डिमांड की है.
डेट फंड्स और लिस्टेड बॉन्ड्स में हो बराबरी
डेट फंड्स को लिस्टेड बॉन्ड्स की बराबरी पर रखने की जरूरत है. डेट फंड्स में 3 साल से ज्यादा के निवेश को ही लॉन्ग टर्म माना जाता है जबकि लिस्टेड बॉन्ड और जीरो-कूपन बॉन्ड्स को 1 साल से ज्यादा होल्ड करने पर ही लॉन्ग टर्म माना जाता है. इससे डेट फंड के निवेशकों को नुकसान होता था क्योंकि दो साल के डेट फंड निवेश पर ज्यादा टैक्स देना पड़ेगा जबकि उसी के जैसे जीरो कूपन बॉन्ड पर सिर्फ 10% टैक्स लगेगा. इस प्रस्ताव से म्यूचुअल फंड इंड्स्ट्री बेहतर डेट फंड ला पाएगी जिससे निवेशकों को ज्यादा आकर्षक प्रोडक्ट मिलेंगे.
AMFI ने CBDT के सामने एक और प्रस्ताव रखा है जिससे डेट विकल्पों में डेट लिंक्ड सेविंग स्कीम (DLSS) के जरिए टैक्स बचत हो सकेगी. इसमें ELSS फंड्स जैसी ही टैक्स से जुड़े फायदे होंगे. AMFI ने DLSS के लिए डेडिकेटेड लिमिट की भी मांग की है जिससे बॉन्ड मार्केट में पहुंच बढ़े.
म्यूचुअल फंड डिविडेंड्स पर TDS
पिछले बजट में सरकार ने म्यूचुअल फंड (Mutual Funds) में मिलने वाले डिविडेंड पर टैक्स का ऐलान किया था. इससे डिविडेंड्स (Dividend) पर TDS भी लगने लगा. हालांकि सालाना 5,000 रुपये को होल्डिंग लिमिट तय किया गया. एक साल में 5000 रुपये से ज्यादा डिविडेंड की कमाई पर TDS लागू होगा.
AMFI के मुताबिक ये लिमिट काफी कम है, क्योंकि बैंक इंटरेस्ट पर TDS की सीमा 40 हजार रुपये है तो वहीं सीनियर सिटिजन के लिए ये सीमा 50 हजार रुपये है. AMFI चाहता है कि बैंकों की ही तरह TDS के लिए न्यूनतम सीमा सालाना 40 हजार रुपये हो ताकि फिजूल की कागजी कार्रवाई और रिफंड्स से बचा जा सके. इस प्रस्ताव से निवेशकों को उनके म्यूचुअल फंड्स के डिविडेंड से ज्यादा कमाई हो पाएगी.
AMFI ने ये भी कहा है कि इंश्योरेंस कंपनियों को उनके फंड मैनेजमेंट बिजनेस को म्यूचुअल फंड्स को आउटसोर्स करने की अनुमति मिले. वहीं CPSEs को भी म्यूचुअल फंड में निवेश करने की मंजूरी मिले. ये अभी साफ नहीं कि वित्त मंत्री बजट में इनमें से कितने बदलाव को मानेंगी लेकिन जब बजट अभूतपूर्व होने की बात हो रही हो तो ये AMFI के लिए ये बेहतरीन मौका जब छोटे निवेशकों के लिए MF एजेंडा को पुश दिया जा सके.
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