Urban Cooperative Banks: राजनेताओं को फंड्स तक पहुंचने का रास्ता आसान कर देना ठीक वैसा ही है जैसा किशोरावस्था में व्हिस्की और कार की चाबी लड़कों को पकड़ा देना. ये छूट मिलना और उसपर से मादकता उनपर जरूर हावी हो जाती है. ठीक यही हाल शहरी सहकारी बैंकों के साथ है जो स्थानीय नेताओं को चंगुल में फंसे हुए हैं. जर्मनी और इटली में क्रेडिट क्रांति के बाद भारत में स्थापित पहला सहकारी बैंक था वड़ोदरा का 1889 में स्थापित अन्योन्य सहकारी बैंक. सहकारी बैंक 20वीं सदी में प्रचलित हुए. लेकिन स्वतंत्रता के बाद राजनेताओं ने इन्हीं सहकारी बैंकों पर निशाना साधा और अपने लोगों को इनके प्रबंधन में स्थापित किया ताकि इन बैंकों की बागडोर उनके हाथ में आ जाए.
लाखों लोगों की कमाई और जमा पूंजी के गलत इस्तेमाल का सबसे बड़ा उदाहरण है पंजाब एंड महाराष्ट्र को-ऑपरेटिव बैंक. घोटालों और भ्रष्टाचार के इसी इतिहास की वजह से हाल ही में भारतीय रिजर्व बैंक ने कुल 1,482 UCB और अलग-अलग राज्यों के 58 सहकारी बैंकों के लिए निर्देश जारी किए हैं.
रिजर्व बैंक ने कहा है कि इन बैंकों के मैनेजिंग डायरेक्टर बनने के लिए व्यक्ति को ग्रैजुएट होना चाहिए, और अगर बैंकिंग, चार्टेड अकाउंटेंट या किसी और विषय में पोस्ट-ग्रैजुएशन हैं तो बेहतर होगा. वहीं, एक CEO 35 साल से कम का नहीं हो सकता या फिर 70 वर्ष से ज्यादा का नहीं और उन्हें बैंकिंग में कम से कम 8 साल का अनुभव होनी चाहिए. रिजर्व बैंक ने कहा है कि MD या डायरेक्टर के पद पर कोई भी 15 साल से ज्यादा नहीं रह सकता.
रिजर्व बैंक के उठाए कदम से राज्य सरकारों के साथ अनबन हो सकती है लेकिन RBI को इसके अमल पर जोर देना होगा. हो सकता है कि राज्य इस रेगुलेटरी कंट्रोल का विरोध करें. लेकिन इस बीच इन रिफॉर्म के कदमों का ढीला नहीं होना होगा. इन सहकारी बैंकों के लाखों ग्राहकों को नेताओं के चंगुल से बचाने का यही रास्ता है. काफी लंबे समय से शहरी सहकारी बैंकों का रिफॉर्म लंबित था और RBI के ये कदम सिर्फ सांकेतिक ना रह जाएं.