गुजरे कुछ वर्षों में भारत का फाइनेंशियल सेक्टर तेजी से उभरा है. इसमें तमाम इनोवेशन भी दिखने को मिले हैं. ये इनोवेशन न सिर्फ फिन-टेक में हुए हैं, बल्कि ये फाइनेंशियल प्रोडक्ट्स में भी दिखाई देता है. भारत में बचत को लेकर परंपरागत तौर पर रुझान देखा गया है, ऐसे में बैंकों के प्रोडक्ट्स बड़े तौर पर जोखिम से बचने वाले लोगों को टारगेट करके बनाए गए हैं. इसी कड़ी में स्मॉल फाइनेंस बैंक भी तेजी से कदम बढ़ा रहे हैं साथ ही इस तरह के बैंकों की तादाद में भी बढ़ोतरी हो रही है.
पूरी दुनिया में बैंकिंग सेक्टर को सख्ती से रेगुलेट किया जाता है ताकि डिपॉजिटर्स के हित सुरक्षित रहें. हालांकि, हमें बैंकिंग सेक्टर में आने वाले नए प्रतिस्पर्धियों का स्वागत करना चाहिए क्योंकि ये बड़ी तादाद में डिपॉजिटर्स को सेवाएं देते हैं. आर्थिक नजरिये से देखा जाए तो भारत में जमा और कर्ज दोनों की दरें बेहद ऊंची हैं. ऐसे में प्रतिस्पर्धा बढ़ने के साथ इसमें एक संतुलन पैदा होने की उम्मीद है. इसी वजह से RBI ने पेमेंट बैंक जैसे कई तरह के संस्थानों को मंजूरी दी है ताकि वे भारत के फाइनेंशियल सिस्टम का हिस्सा बन सकें.
दोधारी तलवार
स्मॉल सेविंग बैंक और उनकी भागीदारी निश्चित तौर पर इस सेक्टर में प्रतिस्पर्धा को बढ़ाने में अहम साबित होगी. हालांकि, इसके कुछ दुष्परिणाम भी हो सकते हैं. मसलन, सहकारी बैंकों (को-ऑपरेटिव बैंकों) को देखा जा सकता है. भारत में वित्तीय समावेश के लिहाज से सहकारी बैंक बेहद अहम हैं. लेकिन, गुजरे कुछ वर्षों में हमने देखा है कि पर्याप्त रेगुलेशन न होने के चलते इनके कामकाज में गड़बड़ियां रही हैं. इसके चलते आरबीआई को कई कदम उठाने पड़े हैं. यहां तक कि एक प्राइवेट शेडयूल्ड कमर्शियल बैंक को भी बचाने के लिए RBI को कदम उठाने पड़े.
ऐसे में एक तरफ जहां हम बैंकिंग सर्विसेज सेक्टर में और ज्यादा भागीदारों के आने का स्वागत कर रहे हैं, वहीं हमें गुजरे वक्त में रेगुलेटरी खामियों के चलते पैदा हुई दिक्कतों पर भी नजर डालनी चाहिए.
RBI की निगरानी की भूमिका इस लिहाज से बेहद अहम है. हालांकि, भारत जैसे देश में जहां डिसक्लोजर स्टैंडर्ड बहुत अच्छे नहीं हैं, वहां केवल बैलेंस शीट के ऑडिट और खातों की छानबीन और कैपिटल एडीक्वेसी रेशियो की अनिवार्यता ही इस बारे में काफी नहीं है.
सुरक्षात्मक उपाय जरूरी
अब ये सवाल पैदा होता है कि ऐसे क्या उपाय किए जाएं कि स्मॉल फाइनेंस बैंकों के उभार से भारत का ओवरऑल वित्तीय सिस्टम और मजबूत हो?
पहला स्टेप सुपरवाइजरी फ्रेमवर्क की पहचान करना है जो कि फाइनेंशियल इंस्टीट्यूशन के प्रकार पर आधारित हो. स्ट्रेस के बारे में अगर जल्दी पता चल जाएगा तो इससे हालात को बिगड़ने से रोका जा सकेगा.
इसके साथ ही भारत में वित्तीय इकाइयों के सुपरविजन के काम में बड़े पैमाने पर टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करना होगा. ये मुश्किलभरा नहीं होना चाहिए क्योंकि भारत के ज्यादातर वित्तीय संस्थान बड़े पैमाने पर डेटा उत्पन्न करते हैं. इसमें आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का इस्तेमाल हो सकता है.
बाजार में मौजूद लिक्विडिटी और क्रेडिट की डिमांड के चलते स्मॉल फाइनेंस बैंक हड़बड़ी में हैं. लेकिन, जब पूंजी सस्ती होती है तो हर कोई तेजी से पैसे बनाना चाहता है. इससे जोखिम बढ़ जाता है.
गुजरे वक्त से लें सबक
2008 के बाद ताबड़तोड़ कर्ज बांटे जाने के बाद भारत के वित्तीय सिस्टम में लंबे वक्त तक मुश्किलें देखी गईं. ऐसे में हमें किसी भी संस्थान की आक्रामक ग्रोथ को देखकर सतर्क रहना चाहिए.
किसी एक संस्थान की आक्रामक ग्रोथ को देखकर दूसरे संस्थानों की प्रतिक्रिया पर भी नजर रखनी चाहिए.
RBI ने बैंकों, NBFC और सहकारी बैंकों के मामलों में जमाकर्ताओं के हितों को सुरक्षित रखने के लिए बेहतरीन कदम उठाए हैं. लेकिन, किसी भी संकट को पैदा होने से पहले ही रोक लेना सबसे बढ़िया रणनीति होती है. गुजरे वक्त में लगातार बैंकों को बचाने की कोशिश को देखते हुए RBI को अपने सुपरवाइजरी कामकाज पर नजर डालनी चाहिए. टेक्नोलॉजी, गवर्नेंस स्ट्रक्चर और शुरुआत में ही स्ट्रेस को पता करने के फ्रेमवर्क से निश्चित तौर पर संस्थानों को पहले से ही तैयार रहने में मदद मिलेगी.
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