अपनी पूंजी को सुरक्षित रखने के लिए अधिकतर लोग इसे बैंकों में जमा करते हैं और इस पर ब्याज मिलता है जिससे पूंजी बढ़ती है. आम तौर पर तो ऐसा ही होना चाहिए. लेकिन देश में फिलहाल ऐसा नहीं हो रहा. सौम्यकांति घोष की लीडरशिप में अर्थशास्त्रियों के लिखे एक नोट में यह बात कही गई है. उनके मुताबिक, बैंकों के छोटे जमाकर्ताओं को बैंक डिपॉजिट पर निगेटिव रिटर्न मिल रहा है. ऐसे में एसबीआई ने सुझाव दिया है कि सरकार को ब्याज से होने वाली आय पर वसूले जा रहे आयकर पर फिर से विचार करना चाहिए.
वरिष्ठ नागरिकों को दि जाए छूट
खबर के मुताबिक, नोट में कहा गया कि अगर सभी जमाकर्ताओं के लिए संभव न हो तो कम से कम वरिष्ठ नागरिकों द्वारा जमा की जाने वाली राशि के लिए टैक्सेशन की समीक्षा की जानी चाहिए. क्योंकि वे अपनी रोजमर्रा की जरूरतों के लिए इसी ब्याज पर निर्भर रहते हैं. उन्होंने कहा कि पूरी बैंकिंग व्यवस्था में कुल मिलाकर 102 लाख करोड़ रुपये जमा हैं.
जमाकर्ता प्रभावित हो रहे
खबर के मुताबिक, फिलहाल बैंक सभी जमाकर्ताओं के लिए 40,000 रुपये से ज्यादा की ब्याज इनकम देते समय स्रोत पर टैक्स काटते हैं, जबकि वरिष्ठ नागरिकों के लिए इनकम 50,000 रुपये प्रति वर्ष से ज्यादा होने पर कर निर्धारित किया जाता है. चूंकि नीति का ध्यान बढ़ोतरी की तरफ चला गया है, प्रणाली में ब्याज दरें नीचे जा रही हैं जिससे जमाकर्ता प्रभावित हो रहे हैं.
बैंकों पर बढ़ा है दबाव
नोट में कहा गया है कि सिस्टम में लिक्विडिटी बहुत हो गई है जिससे बैंकों पर मार्जिन का बड़ा दबाव है. एक आकलन के मुताबिक कोर बैंकिंग सिस्टम कॉस्ट 6 फीसदी है जिसमें डिपॉजिट्स की लागत, निगेटिव कैरी ऑन SLR (स्टैट्यूटरी लिक्विडिटी रेशियो), कैश रिज़र्व रेशियो (Cash Reserve Ratio – CRR) और एसेट्स पर रिटर्न शामिल हैं. रिवर्स रेपो रेट 3.55 फीसदी है. अब अगर कोर फंडिंग कॉस्ट में प्रॉविजनिंग की लागत भी जोड़ी जाए तो कुल लागत 12 फीसदी हो जाती है. जबकि मौजूदा दौर में बैंक 7 फीसदी से भी कम दर पर खुदरा लोन दे रहे हैं और इसमें प्रतिस्पर्धा बढ़ी है.
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