अगर आपने प्रमुख निजी बैंक (Private Banks) से होम लोन (HOME LOAN) लिया है और महामारी में ईएमआई (EMI) में कोई कटौती नहीं हुई तो आप अपने बैंक पर इसका दोष मढ़ सकते हैं.
निजी बैंकों (Private Banks) पर अक्सर आरोप लगाया जाता रहा है कि रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया द्वारा दिए गए बेनिफिटस के बावजूद ये बैंक ब्याज दरों में कटौती नहीं करते हैं. खासकर जब पिछले एक साल से अर्थव्यवस्था महामारी से बुरी तरह प्रभावित है तब ग्राहकों को राहत देना बेहद जरूरी है.
रेपो रेट वाणिज्यिक बैंकों के सभी लेंडिंग रेट्स को निर्धारित करता है. जनवरी 2019 में यह 6.50% था, यह 22 मई 2020 में 4% पर आ गया. इस तरह से इसमें 17 महीनों में 150 बेसिस प्वाइंटस की गिरावट हुई. रेपो दर अभी भी 4% है.
हालांकि, निजी बैंकों ने सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की तरह अपने MCLR (मार्जिनल कॉस्ट ऑफ फंड्स-बेस्ड लेंडिंग रेट) में कमी नहीं की है. एक्सिस और ICICI जैसे प्रमुख निजी क्षेत्र के बैंकों की लोन दरों में औसत गिरावट केवल 0.22% या 22 बेसिस प्वाइंटस की सीमा तक रही है.
MCLR इंटरनल बेंचमार्क दर है, जिसका उपयोग बैंक होम लोन जैसे फ्लोटिंग रेट लोन पर ब्याज दर निर्धारित करने के लिए करते हैं. आमतौर पर 6 महीने की MCLA और 1 साल की MCLR को रिटेल लोन की उधार दरें तय करते समय ध्यान में रखा जाता है.
ICICI बैंक के लिए 6 महीने और 1 साल का MCLR अब 7.25% और 7.30% पर है, जबकि HDFC 7.05% और 7.20% पर है.
जबकि कोटक महिंद्रा दोनों ही अवधियों में 7.25%, एक्सिस बैंक का 7.35% और 7.40% और SBI का MCLR 6.95% और 7% है.
RBI डेटाबेस से पता चलता है कि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के लिए MCLR की दर 6.55% से 7.05% के बीच है और निजी बैंकों के लिए सीमा 6.35% से 8.36% है.
निजी क्षेत्र के बैंक मानते हैं कि वे सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की तरह एमसीएलआर को कम नहीं कर पाए हैं. RBI वेबसाइट के डेटा से पता चलता है कि दिसंबर 2020 में समाप्त होने वाली तिमाही के लिए, MCLR सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के लिए 6.55% से 7.15% तक थी.
लेकिन, निजी बैंकों के लिए इसके न्यूनतम और अधिकतम स्तर 6.35% और 8.36% थे.
नाम न छापने की शर्तों पर HDFC बैंक के एक वरिष्ठ प्रबंधक ने कहा, “निजी बैंकों के लिए MCLR को नीचे लाना मुश्किल है, जैसे PSU बैंक करते हैं. नियम कहता है कि हम उसी अवधि के लिए सावधि जमा की दरों में कम से कम 2.5% शुद्ध ब्याज मार्जिन जोड़ते हैं. अन्यथा, हमारे पास जो ऑपरेशन हैं और डिजिटल सिस्टम के पैमाने जो हम बनाए रखते हैं, वह संभव नहीं होगा.”
ICICI बैंक के एक अधिकारी के मुताबिक “फंड की लागत हमारे और पीएसयू बैंकों के बीच अंतर बनाती है जो एफडी पर कम ब्याज दर का कारण है. हम उच्च दर ऑफर करते हैं और हमें फंड की बढ़ी हुई लागत के लिए कवर करना पड़ता है.
हालांकि, मुंबई के एक फाइनेंशियल प्रोफेशनल, अरिंदम साहा ने कहा कि अगर कोई मोलभाव करे तो निजी बैंक कभी-कभी उधार दरों को कम करने के लिए सहमत हो सकते हैं. दर 8.2% होने पर मुझे फेडरल बैंक द्वारा 7.5% के लिए होम लोन दर की पेशकश की गई थी. मेरे एक दोस्त को 7.1% की दर की पेशकश की गई थी जब टेम्पलेट की दर 8.2% थी.
ICICI बैंक के एक अधिकारी ने कहा “निजी क्षेत्र के बैंकों की तुलना में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के फंड की लागत कम है. वे निजी बैंकों की तुलना में समान अवधि के एफडी पर भी कम दरों की पेशकश करते हैं.
मई 2020 के अंत में रियल एस्टेट कारोबारियेां के संघ क्रेडाई ने आरबीआई को पत्र लिखकर आरोप लगाया कि बैंक होम लोन लेने वालों को कम ब्याज दरों का लाभ नहीं दे रहे हैं.
क्रेडाई ने आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास से आग्रह किया था कि वे बैंकों को हाउसिंग फाइनेंस और नॉन-बैंकिंग फाइनेंस कंपनियों को दरों में कटौती करने का निर्देश दें, ताकि रियल एस्टेट सेक्टर में फंड का प्रवाह बढ़े, जो महामारी से बुरी तरह प्रभावित है.
इसमें कहा गया था, “आरबीआई ने जनवरी 2019 से रेपो दरों में 2.50 फीसदी की कमी की है, लेकिन बैंकों द्वारा बॉरोअर्स को दी गई अधिकतम कटौती 0.7-1.3 फीसदी के बीच रही है, जो कि बड़े पैमाने पर अगस्त 2019 से अब तक की है. कुछ मामलों में, हालांकि, कोई लाभ नहीं हुआ.”
आर्थिक सर्वेक्षण 2019-20 के अनुसार, बॉरोअर्स भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा रेपो दरों में कमी से लाभान्वित नहीं हो सकते हैं. सर्वेक्षण में कहा गया है कि वाणिज्यिक बैंकों की औसत लेंडिंग रेटस 2019 में कम नहीं हुई, हालांकि केंद्रीय बैंक ने जनवरी 2019 से शुरू होने वाले विभिन्न चरणों में रेपो दरों को 135 बेसिस प्वाइंटस घटा दिया है.
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