पूर्व वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी के संसदीय क्षेत्र जंगीपुर, जो कोलकाता से 250 किलोमीटर दूर बसा गांव है, के नाम एक खास रिकॉर्ड है. यहां कम से कम दो दर्जन बैंकों ने अपनी शाखाएं खोली थीं. मुखर्जी का संसदीय क्षेत्र होने के कारण यहां के वासी भाग्य के धनी हैं जो उन्हें ऐसी सुविधा मिल रही है. देशभर के ज्यादातर गांवों में बहुत कम या शून्य बैंक ब्रांच (bank branches in rural India) हैं.
इस कारण ग्रामीण भारत फाइनेंशियल इनक्लूजन (financial inclusion) का हिस्सा नहीं बन पा रहा है. पिछले सप्ताह केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बैंकों से गांवों में और शाखाएं खोलने की अपील की. उनका कहना है कि जहां कारोबार की संभावनाएं हैं, वहां बैंकों पर ब्रांच खोलनी चाहिए. इससे ज्यादा से ज्यादा लोग वित्तीय व्यवस्था का लाभ उठा सकेंगे.
हालांकि, एक अलग तरह के डिवेलपमेंट से ब्रांच बैंकिंग का चलन घटता जा रहा है, जो यहां बड़ी चुनौती बन सकता है. बैंक अब मोबाइल ऐप पर अधिक निर्भर करने लगे हैं. ग्राहकों को सुविधा देने के लिए वे फाइनेंशियल टेक्नॉलजी (फिनटेक) क्षेत्र की कंपनियों से टाइअप कर रहे हैं.
ग्राहकों को भी इस तरह की बैंकिंग पसंद आ रही है. बिना ब्रांच जाए, घर से ही आसानी से ट्रांजैक्शन हो जा रहा है. पैसे की लेनदेन से लेकर अकाउंट बैलेंस पता करने, फिक्स्ड डिपॉजिट करने तक की सुविधाएं ऐप पर मिल रही हैं. बड़े बैंक फिर भी ग्राहकों के घर तक जाकर कुछ जरूरी प्रक्रियाएं कर रहे हैं. छोटे बैंकों के पास मैनपावर और रिसोर्स, दोनों कम हैं. वे अपनी पहुंच बढ़ाने के लिए फिनटेक कंपनियों के साथ हाथ मिलाकर पूरी तरह से डिजिटल जरिए अपना रहे हैं.
बैंक की नई शाखा खड़ी करना एक महंगी प्रक्रिया है. रियल एस्टेट के कॉस्ट के साथ बैंक को वहां के लिए कर्मचारियों की भर्ती भी करनी होगी. फिर एक शाखा सिर्फ अपने इलाके भर ग्राहकों तक सीमित रह जाती है. अगर किसी कारण कारोबार सही से नहीं चल पाया भी कर्जदाता को नुकसान झेलना पड़ेगा.
डिजिटल तरीके से विस्तार करने के खर्चे और तामझाम कम हैं. तकनीक ने स्मार्ट सॉल्यूशन देकर बैंकिंग के जिस नए युग की शुरुआत की है, उससे ब्रांच बैंकिंग के लिए खतरे की घंटी बजने लगी है.
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