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बैंकिंग सिस्टम के इन कारणों से NPA में बेतहाशा वृद्धि

NPA: बैंक और एनबीएफसी कंपनियां ज्यादा से ज्यादा ग्राहक जोड़ने पर आमदा हैं. इसके कारण लोन की पूरी प्रक्रिया का पालन नहीं हो पाता.

  • Money9 Hindi
  • Last Updated : August 23, 2021, 12:37 IST
मूडीज ने कहा कि अकोमोडेटिव इंटरेस्ट रेट्स (Accommodative interest rates) और लोन रिस्ट्रक्चरिंग स्कीम्स (loan restructuring schemes) परिसंपत्ति जोखिम (asset risks) को कम करती रहेंगी. कोरोना वायरस पुनरुत्थान (coronavirus resurgence) में देरी होगी, लेकिन बैंकों की बैलेंस शीट में सुधार पटरी से नहीं उतरेगा जो महामारी से पहले शुरू हो गया था.
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करीब दशकभर से, भारतीय बैंकों के लिए नॉन-परफॉर्मिंग एसेट (NPA) चिंता का विषय बना हुआ है. कोरोना महामारी ने इसे और अधिक बढ़ा दिया है. वित्त वर्ष 2022 में बैकों का एनपीए 11.5 फीसदी हो गया जो कि बीते वित्त वर्ष 8.7 फीसदी था. इस स्थिति में यह समझना जरूरी है कि आखिर वे कौन-कौन सी वजहें हैं जिनके कारण बैकों के इस डूबे हुए कर्ज में इतनी बढ़ोतरी हो रही है. हालांकि, NPA को कभी भी पूरी तरह खत्म नहीं किया जा सकता. किंतु इसे सीमित स्तर पर रखा जा सकता है. असल में, बैंकिंग सिस्टम में कुछ ऐसे कारण हैं जिनकी वजह से NPA में लगातार बढ़ोतरी हो रही है. Karza Technologies के CEO & Co-Founder Omkar Shirhatti ने इस पर कुछ तथ्‍य रखे.

प्रक्रियाओं का पालन नहीं करना

इन दिनों, बैंक और ग्राहक दोनों डिजिटल चैनल का इस्तेमाल कर रहे हैं. बैंक और एनबीएफसी कंपनियां ज्यादा से ज्यादा ग्राहक जोड़ने पर आमदा हैं. कई लोन तो चुटकियों में दिए जा रहे हैं. इसके कारण लोन की पूरी प्रक्रिया का पालन नहीं हो पाता. इससे जोखिम बढ़ जाता है.

ऐसे में लोन देने के लक्ष्य और उसकी गुणवत्ता का ख्याल रखा जाना चाहिए. बैंकों को डिजिटल चैनल के साथ-साथ मैनुअल तरीके से प्रक्रिया पूरी करनी चाहिए.

पर्याप्त कागजी कार्यवाही न करना

बीते सालों में कर्ज को भी उत्पाद के रूप में बदल दिया गया है. पहले, लोन की रकम बड़ी होती थी, किंतु अब छोटे-छोटे आकार में दिया जाने लगा है.

इन लोन की उतनी निगरानी नहीं की जाती, क्योंकि यह बैंकों के लिए महंगा साबित होता है. मसलन, अब फूड डिलीवरी के लिए भी बाद में भुगतान करने का विकल्प मौजूद है.

ऐसे कर्ज पर शायद की किसी प्रक्रिया का पालन किया जाता है. बाद में इसी तरह के कर्ज एनपीए में तब्दील हो जाते हैं.

फ्रंड-एंड और बैक-एंड का पूरी तरह से डिजिटाइजेशन न करना

बैंक, फ्रंट-एंड सॉल्यूशन के जरिए अधिक से अधिक ग्राहक जुटाने पर जोर देते हैं, किंतु बैक-एंड पर उतना डिजिटाइजेशन नहीं किया जाता.

डिजिटल चैनल से आने वाले सभी आवेदनों की ठीक तरह से जांच नहीं हो पाती. कर्ज देने के टारगेट को पूरा करने की कोशिश में बैंक जोखिम का सही ढंग से आंकलन नहीं कर पाते.

ऑटोमेशन तकनीक का पूरा फायदा न उठा पाना

बैंक और NBFC, अपनी कई प्रक्रियाओं का ऑटोमेशन कर रहे हैं, किंतु पूरा का पूरा सिस्टम ऑटोमेटेड नहीं है. इससे कर्ज की प्रक्रिया में खामी रह जाती है.

ऐसे में अर्ली वॉर्निंग सिस्टम (EWS), से मदद मिल सकती है. अभी किसी फर्जीवाड़े को पकड़ने में बैकों को औसतन 2 साल का समय लग जाता है. EWS के जरिए फर्जी खातों की समय पर पहचान हो सकती है.

Published - August 23, 2021, 12:37 IST

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