दूसरे उद्योगों में आए बदलावों के मुकाबले बैंकों पर कोविड -19 महामारी का प्रभाव कुछ अलग रहा है. मार्च 2020 में देश में महामारी फैलने के बाद से बैंकों को कम झटका लगा है. सरकार ने बैंकों को समय-समय पर जरूरी रेगुलेटरी सपोर्ट (regulatory support) दिया है. इसमें नॉन-परफोर्मिंग एसेट्स (NPA) की पहचान से लेकर दूसरी वित्तीय मदद शामिल थीं. और यही वजह थी कि बैंक ज्यादा प्रभावित नहीं हुए. हालांकि, बैंक किसी भी दूसरे निवेश टूल की ही तरह असुरक्षित हैं, लेकिन पता नहीं क्यों जब तक असल में मुसिबत न आ जाए हमें घबराने की बात नहीं लगती है.
प्लानअहेड वेल्थ एडवाइजर्स (PlanAhead Wealth Advisors) के वित्तीय योजनाकार और संस्थापक, विशाल धवन कहते हैं “हमेशा से ऐसे बैंक रहे हैं जिनकी स्थिति या तो मजबूत है या फिर वो कई मामलों में कमजोर हैं. अब जमाकर्ताओं को दोनों ही तरह के बैंक के बीच ट्रेड-ऑफ पर विकल्प देखने की जरूरत है. एक तरफ मजबूत स्थिति वाले बैंक हैं जो लोअर डिपॉजिट रेट ऑफर (lower deposit rates) करते हैं खासतौर पर पर्याप्त लिक्वीडिटी (ample liquidity) के मामले में और दूसरी ओर ऐसे बैंक मौजूद हैं जिन्हें कॉर्पोरेट और खुदरा दोनों ही क्षेत्रों में पूंजी जुटाने या ज्यादा जोखिम वाले क्षेत्रों को उधार देने में कठिनाई का सामना करना पड़ता है.
पीएसयू बैंक, निजी क्षेत्र के बैंक और सहकारी बैंक
अब जब ऐसे बैंक मौजूद ही नहीं हैं जो पूरी तरह से जोखिम मुक्त हों, तो निवेशक उन जोखिमों को कम से कम रखने के लिए क्या कदम उठा सकता है? इसे समझने के लिए भारतीय बैंकिंग क्षेत्र को 3 खास खंडों में विभाजित करने की जरूरत है – पीएसयू बैंक (PSU banks), निजी क्षेत्र के बैंक (private sector banks) और सहकारी बैंक (co-operative banks).
बाजार विश्लेषक अंबरीश बालिगा के मुताबिक, “पिछले ट्रैक रिकॉर्ड के साथ-साथ सरकार और रेगुलेटर्स के उठाए गए कदमों को देखते हुए, पीएसयू (PSU) सेगमेंट को जमाकर्ताओं के लिए सुरक्षित माना जाता है. इसमें संबंधित बैंक की वित्तीय स्थिति को अनदेखा किया जा सकता है. जोखिम की बात करें तो पीएसयू (PSU) बैंकों को सरकार के ही एक एक्सटेंशन के तौर पर देखा जाता है, इसलिए सरकार पीएसयू बैंक को डिफॉल्टर नहीं होने देगी, इससे सिस्टम पर भरोसा उठने का खतरा है.”
अब निजी क्षेत्र के बैंक के जमाकर्ताओं को समान सुरक्षा नहीं दी जा सकती. पर सरकार ऐसे बैंकों के बचाव में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से एक सूटर (suitor) के जरिए ये सुनिश्चित करती है कि जमाकर्ता की पूंजी सुरक्षित रहे.
निजी क्षेत्र के संकटग्रस्त बैंकों की बात करें तो जमाकर्ताओं को कई बार अनिश्चितता का सामना करना पड़ा है. लेकिन, आखिर में परिस्थिति ठीक-ठाक ही रही हैं.
हमने देखा कि ग्लोबल ट्रस्ट बैंक (Global Trust Bank) का ओरिएंटल बैंक ऑफ कॉमर्स (Oriental Bank of Commerce) (अब पीएनबी में विलय) के साथ विलय हो गया है, यस बैंक (Yes Bank) को स्टेट बैंक (State Bank) और बैंकिंग प्रणाली में कई दूसरों द्वारा बचाया जा रहा है. इसी तरह लक्ष्मी विलास बैंक (Lakshmi Vilas Bank) को मोरेटोरियम (moratorium) की अवधि से गुजरने के बाद डीबीएस (DBS) द्वारा टेक ओवर किया जा रहा है.और संभवत: ये सब जमाकर्ताओं की रातों की नींद हराम करने के लिए काफी है.
बलिगा के मुताबिक, “एक जमाकर्ता को पीएसयू बैंकों और बड़े निजी क्षेत्र के बैंकों को प्राथमिकता देनी चाहिए, जहां बैंक की वित्तीय मजबूती (financial soundness) के बारे में कोई संदेह नहीं है. ये समझने की जरूरत है कि निजी क्षेत्र के कमजोर बैंक एफडी (fixed deposits) पर जो अतिरिक्त 100-150 बीपीएस (bps) देते हैं, वो कई बार मोरेटोरियम की स्थिति में आपको परेशानी में डाल सकते हैं.”
जब तक कि किसी रेगुलेटी जरूरतों (regulatory requirements )के चलते कोई मजबूरी न हो तब तक सहकारी बैंकों को एक बढ़िया विकल्प नहीं मानना चाहिए. उदाहरण के लिए महाराष्ट्र में कई हाउसिंग सोसाइटियों के खाते पीएमसी बैंक (PMC Bank) में थे जिन्होंने मोरेटोरियम का विकल्प ले लिया. महाराष्ट्र में सहकारी आवास समितियों को अनिवार्य रूप से अपने धन को सहकारी बैंकों के पास रखने की जरूरत होती है और जब तक आपके पास कोई आंतरिक जानकारी न हो पीएमसी बैंक (PMC Bank) के अंदर क्या चल रहा आप पता नहीं कर सकते.
वित्तीय सुरक्षा (financial safety) कैसे सुनिश्चित करें?
निवेश करने से पहले प्रोवाइडर की विश्वसनीयता की जांच करें. बैंक की पूरी तरह से जांच पड़ताल का मतलब है कि ये देख लें कि उच्च एनपीए (high NPA) या सरकार संबंधी मुद्दों की वजह से बैंक कहीं परेशानी में तो नहीं.
BankBazaar.com के सीईओ आदिल शेट्टी के मुताबिक, “RBI के मानदंडों के अनुसार, भारतीय वाणिज्यिक बैंकों को 9% की CAR बनाए रखने की जरूरत होती है, जबकि भारतीय सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को 12% की CAR बनाए रखने पर जोर दिया जाता है. 10.875% का मिनिमम कैपिटल एडिक्वेसी रेश्यो (minimum capital adequacy ratio), प्रोफिटेबिलिटी नंबर्स (profitability numbers) और एनपीए का प्रतिशत (percentage of NPA) जरूर देखें. इनमें से किसी भी एक चीज में गिरावट का मतलब है कि बैंक मुश्किलों का सामना कर रहा है.
प्लानअहेड (PlanAhead) के सीईओ ने ग्राहकों को सलाह दी कि वे सबसे ऊंचे ब्याज वाले जमा का पीछा करने से बचें, साथ ही बैंक चुनने से पहले ये समझें कि बैंक किन क्षेत्रों को ऋण दे रहा है और इसके साथ जुड़े जोखिम क्या हैं. इसके अलावा आसान पहुंच या सुविधाजनक शाखा समय की वजह से अपना सारा पैसा किसी एक बैंक में नहीं रखना चाहिए.
धवन ने कहा, “मजबूत स्थिति वाले दो बैंकों में खाते खोलें साथ ही अपने बचत, करेंट और बैंक डिपॉजिट के लिए भी ऐसे ही बैंक का चुनाव करें.”
यह याद रखना जरूरी है कि 1960 के बाद से भारत में अब तक व्यावहारिक रूप से कोई भी बैंक डूबा नहीं है. यहां तक कि परेशानी से गुजर रहे सहकारी बैंकों के साथ-साथ निजी बैंकों के मामले में भी विलय के रुप में उम्मीद बाकी है.
RBI ने लगातार दोहराया है कि वह किसी भी बैंक को डूबने नहीं होने देगा और ग्राहकों का हित हमेशा प्राथमिकता रहेगी. इसलिए एक साथ सभी बैंकों के डूबने की संभावना बहुत ही कम है. इसलिए हर बैंक की रकम का अलग से बीमा किया जाएगा. तो बैंक के डूबने की स्थिति में, आपकी 5 लाख रुपये तक की जमा राशि का DICGC द्वारा बीमा होगा. इसमें कमर्शियल बैंक में आपका डिपोसिट, लोकल एरिया बैंक, ग्रामीण बैंक और को-ओपरेटिव बैंक शामिल हैं.
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