घर खरीदना एक लॉन्ग-टर्म कमिटमेंट है, इसलिए एक घर खरीदार के रूप में आपके लिए यह जरूरी है कि आप अपने फाइनेंस को ज्यादा न बढ़ाएं, चाहे वो आपका अपना पैसा हो या बैंक से लिया गया उधार. अपने रेगुलर खर्चों और सेविंग के आधार पर ही EMI और उस पर आधारित लोन टेन्योर (15/20/25, 35 साल) का चुनाव करना चाहिए.
RSM इंडिया के फाउंडर सुरेश सुराणा ने कहा, ‘बैंक फंडिंग आम तौर पर बिल्डिंग की उम्र के आधार पर प्रॉपर्टी वैल्यू की 85% -90% तक मिल सकती है और टेन्योर 15-35 साल तक हो सकता है. अनुसूचित/राष्ट्रीयकृत बैंकों द्वारा दी जाने वाली बैंक लोन फंडिंग आमतौर पर एनुअल इनकम की 4 गुनी, और कुछ सहकारी बैंक एनुअल इनकम का 5-6 गुना तक भी लोन फंड करते हैं.’
हालांकि, होम लोन की अवधि कई बातों को देखकर तय की जाती है, जिसमें उधारकर्ता की जरूरतें, लोन चुकाने की क्षमता और उनकी उम्र शामिल हैं. टेन्योर (अवधि) सिलेक्ट करने से पहले, लॉन्ग टर्म और शॉर्ट टर्म दोनों के बेनिफिट समझना जरूरी है.
आइए देखें कि होम लोन लेते समय EMI और उसकी अवधि कैसे तय करें.
एक व्यक्ति की इनकम और चुकाने की क्षमता यह निर्धारित करती है कि वह कितना लोन ले सकता है. साथ ही इसी से तय होता है कि वे होम लोन के लिए एलिजिबल हैं या नहीं. लॉन्ग टर्म के बोरोअर की लोन एलिजिबिलिटी बढ़ने के कारण लोन तक ज्यादा पहुंच होती है.
यस बैंक के रिटेल ग्लोबल हेड राजन पेंटल ने कहा, ‘लॉन्ग टर्म लोन सिलेक्ट करने से शॉर्ट टर्म या मीडियम टर्म के लोन की तुलना में EMI कम रहती है. कई फाइनेंशियल इंस्टीट्यूट होम लोन पर लॉन्ग टर्म के लिए आकर्षक इंटरेस्ट रेट ऑफर करते हैं, खासकर फेस्टिव सीजन के दौरान.’
EMI पर पैसे बचाने के लिए 20-30 साल के लिए लोन लेना आकर्षक लग सकता है, लेकिन इतनी लंबी अवधि में लोन पर चुकाया इंटरेस्ट बहुत ज्यादा होता है, कभी-कभी प्रिंसिपल लोन अमाउंट से भी ज्यादा होता है.
Easiloan.com के को-फाउंडर प्रमोद कथूरिया ने कहा, ‘उधार लेने के सिद्धांतों को पुरानी कहावतों में भी समझाया गया है, ‘अपने साधनों के भीतर जियो’. होम लोन लेते समय EMI अमाउंट का ध्यान रखें. आदर्श रूप से, आपके सभी लोन की EMI आपकी मंथली इनकम की 40-50% से अधिक नहीं होनी चाहिए.’
इंटरेस्ट को कम करने और एक हेल्दी लोन-टू-इनकम रेश्यो बनाए रखने के लिए, लोन टेन्योर और EMI के बीच बैलेंस बनाना जरूरी है. आपको शॉर्ट-टर्म लोन में EMI चुकाने में परेशानी हो सकती है क्योंकि आपकी चुकाने की क्षमता सीमित है. इस तरह एक लंबा पेबैक टर्म ज्यादा महत्वपूर्ण हो जाता है.
यदि फ्युचर में आपकी इनकम बढ़ती है, तो आपके पास अपनी EMI बढ़ाने का ऑप्शन भी होता है. एक्सपर्ट टेन्योर और फंडिंग ऑप्शन के अलावा दूसरे फैक्टर्स पर भी ध्यान देने पर जोर देते हैं.
सुराना ने कहा, ‘एक घर खरीदार को घर खरीदते समय कुछ चीजें जरूर चेक करनी चाहिए जिसमें RERA रजिस्ट्रेशन, डेवलपर का ट्रैक रिकॉर्ड, प्रॉपर्टी टाइटल सर्च, दूसरी कॉस्ट (स्टाम्प ड्यूटी, एजेंट का कमीशन, रजिस्ट्रशन, आदि), अंडर-कंस्ट्रक्शन प्रॉपर्टी के मामले में GST, परचेज पर होल्डिंग टैक्स, दूसरे लीगल डॉक्युमेंट जैसे ऑक्युपेशन सर्टिफिकेट (OC), इंटीमेशन ऑफ डिसएप्रूवल (IOD), कंप्लीशन सर्टिफिकेट (CC) शामिल हैं.’
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