Fixed Deposit अच्छा सेविंग ऑप्शन है. अगर आप अपने निवेश पर गारंटीड रिटर्न चाहते हैं और शेयर बाजार के उतार-चढ़ाव से दूर रहना चाहते हैं तो FD सबसे अच्छा विकल्प है. यही कारण है कि देश में बड़ी संख्या में लोग FD करते हैं. लेकिन, इस विकल्प को चुनते वक्त कुछ बातों का ध्यान रखना बहुत जरूरी है. हम आपको बताते हैं कि FD करते समय आपको किन-किन बातों का ध्यान रखना चाहिए. क्योंकि, अगर ऐसा नहीं किया तो इनकम टैक्स डिपार्टमेंट आपके पीछे लग जाएगा.
नाबालिग बच्चे या हाउस वाइफ के नाम FD में निवेश करते हैं तो मिलने वाला रिटर्न टैक्सेबल होता है. इससे कमाए गए ब्याज को आपकी इनकम में जोड़ा जाता है और टैक्स वसूला जाता है. इनकम टैक्स रिटर्न भरते वक्त इससे मिलने वाले ब्याज की जानकारी देनी होती है. इसे आपकी इनकम माना जाता है. इसलिए कुल इनकम पर लागू टैक्स स्लैब के मुताबिक इस पर भी टैक्स लगता है. बैंक FD खाते में ब्याज जमा करते वक्त हर साल के आखिर में TDS काटते हैं.
आपको यह भी ध्यान रखने की जरूरत है कि भले ही आपके बैंक ने FD से मिलने वाले रिटर्न पर TDS काट लिया हो, लेकिन, इसकी जानकारी इनकम टैक्स रिटर्न में देनी ही होगी. इनकम टैक्स रिटर्न भरते समय एक कॉलम होता है, जहां FD से होने वाली इनकम की जानकारी देनी होती है. फॉर्म 26AS की टैक्स क्रेडिट स्टेटमेंट में इसका जिक्र होता है. अगर आप ब्याज को नहीं दिखाते हैं तो भरे गए रिटर्न से यह मैच नहीं होगा, जिसकी वजह से इनकम टैक्स विभाग नोटिस भेज सकता है.
आम तौर पर बैंक ब्याज से हुई इनकम पर 10% TDS काटते हैं, लेकिन अगर आप 20 या 30% के टैक्स स्लैब में आते हैं तो आपको अतिरिक्त टैक्स का भुगतान करना होगा. अगर किसी वजह से FD के ब्याज पर बैंक TDS नहीं काट रहा है, तो भी आपको अपनी इनकम में इसे जोड़ना चाहिए और टैक्स चुकाना चाहिए. ऐसा नहीं करने पर जब FD मैच्योर होगी तो आपको टैक्स के रूप में बड़ी राशि का भुगतान करना पड़ सकता है.
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