Digital Lenders: बैंकिंग के इस डिजिटलीकरण के साथ बैंको के बाहर लंबी कतारों में भी तेजी से बदलाव देखा गया है. अब बैंकों में खुद चल कर जाना नहीं पड़ता या फिर दस्तावेजों के फिजिकल वेरिफिकेशन के बिना ही 5 दिनों से कम में लोन सेंक्शन हो जाता है. अगले 5 सालों में डिजिटल तौर पर दिए गए कुल रीटेल लोन $ 1 ट्रिलियन से ज्यादा होने के अनुमान के साथ, लोन लाइफ साइकल की पूरी प्रक्रिया को ऑनलाइन होने में ज्यादा वक्त नहीं लगेगा. आइए उन वजहों पर गौर करें की क्यों डिजिटल लेंडिंग (Digital Lenders) प्लेटफॉर्म्स पहली बार कर्ज लेने वालों को टार्गेट कर रहे हैं.
आज 411 मिलियन भारतीय वेतनभोगी पेशेवर इस बाजार को बड़ा बनाते हैं. मिलेनियल्स डिजिटल लेंडिंग प्रोसेस को समझने वाली एक ऐसी पीढ़ी है जिसने डिजिटलीकरण को पूरी तौर से अपनाया है.
इसमें पारंपरिक बैंकों को भी इस रुझान के साथ चलने पर मजबूर करने वाले युवा और तकनीक-प्रेमी भारतीय पिछली पीढ़ियों से बहुत आगे हैं.
इस पीढ़ी ने स्मॉल टिकट साइज के लोन की खपत में बढ़ोत्तरी की है जैसे स्मार्टफोन और टीवी जैसे इलेक्ट्रॉनिक गैजेट खरीदने के लिए लोन लेना, यात्रा के लिए लोन, शादी के लिए कर्ज लेना.
अनसिक्योर्ड लेंडिंग(unsecured lending) जैसे उत्पादों के साथ स्मॉल टिकट लोन में बढ़ोत्तरी ने कर्ज देने वालों के लिए ऑपरेश्नल कॉस्ट में कमी की है, वहीं पहली बार कर्ज लेने वालों को किसी से भी संपर्क में आने की जरूरत नहीं पड़ेगी.
फिनटेक की मांग की बात करें तो तकनीकी सेवाओं को अपनाने के मामले में बड़े पैमाने पर बदलाव देखा है. इसने व्यापार को आसान बनाया है और डिजिटल सेवाओं को पसंद करने वाले लोगों ने इसे बढ़ावा दिया है.
एआई(AI) जैसी तकनीक का इस्तेमाल करके आज वित्तीय संस्थान कर्ज लेने वालों की सारी जानकारी सोशल मीडिया फुटप्रिंट(social media footprint), डिजिटल भुगतान डेटा(digital payments data) को स्कैन करके निकाली जा सकती है.चंद ही मिनटों में कर्ज लेने वालों के डेटा की मालूमात कर्ज देने की प्रक्रिया को ज्यादा आसान और तेज कर देती है.
हाल के दिनों में, उपभोक्ता का विश्वास जीतना सभी क्षेत्रों में एक चुनौती बनकर उभरा है. महामारी के दौरान नौकरियों का जाना और वेतन में कटौती से उपभोक्ता के व्यवहार में बदलाव आया है, जिसमें 16% मिलेनियल्स क्रेडिट रीफाइनेंसिंग के लिए लोन ले रहे हैं. ये स्थिति डिजिटल लेंडर्स के पक्ष में काम करती है क्योंकि ये कर्ज लेने वालों से ज्यादा रेट ऑफ इंट्रेस्ट वसूलते हैं.
मिलेनियल्स को आज डिजिटल स्पेस की गहरी समझ है. ये लोग दूसरी पीढ़ियों की तुलना में डिजिटल उधार, भुगतान और निवेश को बेहतर तरीके से समझते हैं. इस तरह की समझ इस प्रक्रिया में विश्वास पैदा करती है.
ये ग्राहकों की मानसिकता में बदलाव लाती है जैसे डिजिटल टचप्वाइंट में पारदर्शिता, नियो बैंक और करेंसी के लिए ऑनलाइन-ओनली प्लेटफॉर्म. इसके साथ ही, पहली बार कर्ज लेने वाले आज पैसों को लेकर लिए गये निर्णयों के प्रभाव के बारे में ज्यादा जागरूक और चिंतित हैं.
जैसे-जैसे भारत का क्रेडिट बाजार बढ़ता जा रहा है, कर्ज लेने वाले इज ऑफ डुइंग बिजनेस की और बढ़ रहे हैं जहां उन्हें सरल और सीधे-साधे विकल्प मिलते हैं और वो अपने घरों के आराम से काम कर सकते हैं.
लॉकडाउन के बाद पूरी दुनिया ने डिजिटल की ताकत को पूरे दिल से अपनाया है. ऐसे वक्त में जहां इंटरनेट के जरिए व्यवसाय जारी रखना एकमात्र साधन बचा था, उस समय में डिजिटल टेक्नोलोजी को अपना कर ही अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाया जा सका है. इसमें बैंकिंग और फाइनेंस सेक्टर भी डिजिटलीकरण को अपनाने में आगे रहा है.
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