महामारी के बीच आर्थिक बोझ से निपटने के लिए कई लोगों ने इलाज के खर्चों के लिए अपनी कंपनी से मदद की गुहार लगाई होगी. जहां कुछ कंपनियां अपने कर्मचारियों के कोविड से जुड़े इलाज में मदद के लिए आगे आईं, वहीं दूसरों ने इमरजेंसी लोन के साथ मुआवजा भी दिया. इन दोनों ही स्थितियों में टैक्स स्ट्रक्चर पर अलग-अलग प्रभाव पड़ता है. हाल ही में केंद्र की ओर से दिए गए दिशानिर्देशों के मुताबिक अगर कंपनी कोविड के इलाज और किसी भी इमरजेंसी मेडिकल कंडीशन (अस्पताल का बिल, दवा की लागत, लैब परीक्षण आदि) के लिए भुगतान करती है, तो ये आपके (कर्मचारी) के लिए टैक्स फ्री होता है. इसी बीच अगर ये आर्थिक सहायता रियायती दर पर दिए गए लोन के तौर पर है, तो ऐसे कम ब्याज दर वाला लोन आपका फायदा माना जाएगा.
शैलेश कुमार, पार्टनर, नांगिया एंड कंपनी एलएलपी (Nangia & Co. Llp) कहते हैं, “एक कंपनी अपने कर्मचारी या उसके घर के किसी भी सदस्य को किसी भी जरूरत के लिए कम या शून्य ब्याज दर पर रियायती लोन दे सकती है. अगर कर्मचारी इस तरह का लोन लेता है, तो SBI द्वारा लगाए गए समान श्रेणी के लोन पर पिछले साल के पहले दिन लगने वाले वार्षिक ब्याज और नियोक्ता द्वारा वसूल किए गए ब्याज के बीच के अंतर पर टैक्स लगाया जाएगा. इसे कर्मचारी के फायदों के तौर पर माना जाएगा.”
मेडिकल इमरजेंसी के अलावा कर्मचारी बच्चे की शिक्षा या शादी के लिए भी इस तरह के लोन का फायदा उठा सकते हैं. हालांकि ये काफी हद तक कंपनी की पॉलिसी पर निर्भर करता है. कुछ संगठन इन ऋणों को शून्य या बहुत कम ब्याज दरों पर देते हैं. ब्याज में आने वाला इस अंतर ( जिसे कर्मचारी के फायदों में गिना जाएगा) की गणना कर्मचारी को दिए गए लोन के मासिक बकाया रकम के हिसाब से की जाती है.
हालांकि, लोन की रकम कुल 20,000 रुपये तक दी गई हो या फिर अगर कंपनी द्वारा लिस्टेड अस्पतालों (approved hospitals) में मेडिकल इमरजेंसी के अलावा इलाज की बात हो रही हो तो ये टैक्स के दायरे से बाहर रहती है. अगर आपने रियायती दर पर ऐसा लोन लिया है या एक लेने की योजना बना रहे हैं, तो टैक्सेशन नियमों को ध्यान में रखें. ऐसा ना करने से आपको जानकारी के अभाव में कुछ अनचाहे खर्च उठाने पड़ सकते हैं.
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