आम लोगों को सबसे ज्यादा परेशानी तब होती है जब वे बैंक की वेबसाइट या ऐप पर किसी ट्रांजैक्शन के लिए जाते हैं और इसे करने में वे बैंक की तकनीकी दिक्कत के चलते मुश्किलों का सामना करते हैं. बैंकों के अपनी टेक्नोलॉजी को अपग्रेड, कस्टमर सर्विस में सुधार करने, रिमोट बैंकिंग के लिए टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करने पर जोर देने जैसे लगातार दावों के बावजूद इनके प्लेटफॉर्म्स में आए दिन होने वाली गड़बड़ियां लोगों के लिए मुश्किल का सबब बन गई हैं.
बैंकिंग प्लेटफॉर्म्स में तकनीकी दिक्कतों के चलते आम लोग जरूरत के वक्त इनका इस्तेमाल नहीं कर पाते हैं और ये बात किसी तरह से स्वीकार नहीं की जा सकती है. 24 फरवरी को इनवेस्टर्स और ट्रेडर्स को NSE में हुई तकनीकी गड़बड़ी के चलते भारी मुश्किल का सामना करना पड़ा. हालांकि, तब से ऐसा फिर नहीं हुआ है.
अगर इस तरह की तकनीकी गड़बड़ियां बार-बार होती हैं तो इन्हें किसी भी लिहाज से एकाध बार की अनदेखी या लापरवाही में नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है. साथ ही ऐसी गड़बड़ियों से बैंकों की जवाबदेही तय करने का मसला बनता है. बल्कि, ऐसी चीजों के लिए बैंकों पर रेगुलेटरी एक्शन होना चाहिए. रिजर्व बैंक (RBI) ने कुछ बैंकों के खिलाफ एक्शन लिया है, लेकिन इससे बैंकों के प्लेटफॉर्म्स पर होने वाली गड़बड़ियां रुकी नहीं हैं.
इससे एक बड़ा सवाल ये भी पैदा होता है कि जब नए ग्राहकों को हासिल करने की बात आती है तो भारतीय कंपनियां पूरी जीजान से इसमें जुटी हुई दिखाई देती हैं, लेकिन ग्राहकों को सर्विस देने के मामले में ये फिसड्डी नजर आती हैं.
इससे ये भी पता चलता है कि बैंक भले ही बड़े-बड़े दावे करें, लेकिन हकीकत ये है कि वे टेक्नोलॉजी में पर्याप्त निवेश नहीं कर रहे हैं और इसकी वजह से कस्टमर्स को मुश्किलें उठानी पड़ती हैं.
भारत के सभी बड़े बैंकों को टेक्नोलॉजी को बड़े पैमाने पर काफी वक्त पहले ही अपनी सर्विसेज में शुमार कर लेना चाहिए था. इसी के जरिए सही मायनों में डिजिटल इंडिया और आधुनिक वक्त की बैंकिंग का लक्ष्य पूरा हो सकेगा.
हालांकि, बैंक हमेशा से ये दावा करते हैं कि वे पर्याप्त इनवेस्टमेंट करते हैं और टेक्नोलॉजी पर फोकस कर रहे हैं, लेकिन कस्टमर्स का एक्सपीरियंस इन दावों के सही होने पर मुहर नहीं लगा रहा.
देश डिजिटल रेवॉल्यूशन के रास्ते पर कैसे आगे बढ़ेगा अगर प्रमुख बैंक ही अपने कस्टमर्स के लिए वक्त-बेवक्त मुश्किलें पैदा करते रहेंगे.
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