कमर्शियल पेपर (commercial paper) की बिक्री ने बैंकरों की चिताएं बढ़ा दी हैं. उन्हें अब यह जोखिम लगने लगा है. कमर्शियल पेपर के माध्यम से मुद्रा बाजार में सस्ते फंड की उपलब्धता वित्तीय मध्यस्थों को प्रेरित कर रही हैं, जबकि ब्रोकिंग फर्म IPO (initial public offers) फाइनेंसिंग के लिए कमर्शियल पेपर्स के जरिए धन जुटा रही हैं.
बैंकरों को अब पैसा डूबने का डर सताने लगा है क्योंकि मुद्रा बाजार में कमर्शियल पेपर जारी करने (commercial paper issuance) में वृद्धि हुई है. यह बढ़त चालू वित्त वर्ष की पहली छमाही में चार लाख करोड़ से अधिक रही है.
बैंकरों के मुताबिक, कमर्शियल पेपर जारीकर्ताओं की भी चिंताएं बढ़ गई हैं. ये कॉरपोरेट के साथ-साथ वित्त कंपनियों द्वारा जारी किए गए हैं. हाल के दिनों में म्यूचुअल फंड (mutual fund – MF) इस सेगमेंट में प्रमुख निवेशक बने हैं.
कुल वाणिज्यिक पत्र जारी करने में गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (Non-bank financial institution – NBFC) की हिस्सेदारी 21.9% से बढ़कर 2021-22 की पहली छमाही में 43.2% हो गई है. भारत में कमर्शियल पेपर की शुरुआत 1990 में हुई थी.
बैंकरों के अनुसार, इस बात की संभावना है कि सस्ते फंड की उपलब्धता कुछ बिचौलियों को अधिक जोखिम वाले निवेश, जैसे कि स्ट्रेस्ड एसेट्स (stressed assets) के साथ मध्यस्थता करने के लिए प्रेरित कर सकती है. हालांकि दबाव वाली संपत्तियों में काम करने वाली कंपनियां सीधे मुद्रा बाजार से उधार नहीं लेती हैं. वे उन बिचौलियों के माध्यम से धन जुटा सकती हैं, जिनके पास पहुंच है.
RBI की मौद्रिक नीति रिपोर्ट (monetary policy report) में कहा गया है कि वित्त वर्ष 2021-22 की पहली छमाही के दौरान कमर्शियल पेपर्स जारी करने का आंकड़ा 7.9 लाख करोड़ रुपये से बढ़कर 10.1 लाख करोड़ रुपये हो गया है.
मार्केट से उधार लेने के लिए कंपनियां कई तरीके अपनाती हैं. यदि उन्हें लंबे समय के लिए उधार लेना होता है, तो वे बॉन्ड जारी करती हैं. लेकिन जब उन्हें थोड़े समय के लिए पैसे की आवश्यकता पड़ती है, तो कंपनियां कमर्शियल पेपर जारी कर पूंजी जुटाती हैं. यह न्यूनतम 7 दिनों के लिए और अधिकतम एक साल तक के लिए जारी किए जा सकते हैं.
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