भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने लोगों को 2000 रुपये के नोट बदलवाने के लिए चार महीने का समय दिया है. इन दिनों बैंकों में इन्हें बदलने की प्रक्रिया चल रही है. हालांकि इस बार नोटबंदी के दौर की तरह बैंकों के बाहर लंबी-लंबी लाइनें तो नहीं दिख रही हैं लेकिन भीड़ बढ़ गई है. वहीं इस बदलाव को लेकर लोगों के मन में तरह-तरह की उलझन है. कुछ सवाल हैं जिनके जवाब उन्हें नहीं मिल रहे हैं.
ये कदम उठाया ही क्यों गया? नोट बदलने की खबर के तीन दिन बाद गवर्नर ने स्पष्ट किया कि 2000 रुपए के नोट वापस लिया जाना मुद्रा प्रबंधन यानी नोटों को प्रचलन में लाने या बाहर करने का हिस्सा है. सरकार इसे लेकर आई थी इससे काला धन पर लगाम लगेगी लेकिन इसके बदले में कोई और नोट लाया नहीं जा रहा है. यानी भारतीय मुद्रा में 500 का ही नोट सबसे बड़ी मुद्रा है. 2016 की नोट बंदी में 85 फीसद करेंसी वापस ले ली गई थी और इसकी कमी पूरी करने के लिए नई करेंसी के तौर पर 2000 रुपए का नोट लाया गया था. अब सवाल ये है कि 2000 रुपए के नोट को वापस लेना ही था तो इसे चलाया क्यों गया. इस बात में भी एक अंतर्विरोध है क्योंकि 1000 रुपए के नोट अगर कालाधन को बढ़ावा दे रहे थे तो 2000 के तो उससे ज्यादा बढ़ावा दे रहे होंगे. जितनी भी छापेमारी आज तक हुई है. उसमें 2000 के नोट सबसे ज्यादा पाए गए लेकिन सरकार ने आज तक नहीं बताया कि 2000 रुपए के नोट की काले धन में क्या भूमिका थी.
कुछ बैंकों में क्यों मांगा जा रहा पहचान पत्र? RBI की ओर से कहा गया है कि लोग किसी भी नज़दीकी बैंक में जाकर 2000 के नोट बदलवा सकते हैं. लेकिन केनरा बैंक, एचडीएफसी बैंक जैसे कई प्राइवेट बैंक और ग्रामीण बैंक इसके लिए लोगों से पहचान पत्र भी मांग रहे हैं. हालांकि प्राइवेट बैंक सिर्फ़ उन्हीं लोगों के बिना पहचान पत्र के नोट बदल रहे हैं जो उनके पहले से ग्राहक हैं. अब ऐसे में उन लोगों के सामने समस्या है कि जिनका बैंक दूर है और आसपास कोई प्राइवेट बैंक है तो वो ID प्रूफ़ मांग रहा है. साथ ही ऐसी भी रिपोर्ट आई हैं कि कुछ बैंकों में 2000 के बदले में देने के लिए नकदी की कमी है और लोगों के नोट नहीं बदल पा रहे हैं.
कहीं आयकर विभाग का नोटिस तो नहीं आ जाएगा? सरकार ने कहा है कि एक बार में लोग 2000 के 10 नोट ही बदलवा सकते हैं यानी एक से ज्यादा बार बैंक जाकर वो 20-20 हज़ार करके और भी नोट बदलवा सकते हैं. इसके साथ ही नोट चलन में तो हैं हीं तो कुछ लोग इनका इस्तेमाल ज्वेलरी आदि खरीदने में भी खर्च कर रहे हैं लेकिन ज्वेलर्स बदले में आधार-पैन ले रहे हैं. अब यहां लोगों को एक डर ये भी सता रहा है कि कहीं बाद में ज़्यादा नोट जमा करने के चक्कर में या खर्च करने के बाद उनकी ये जानकारी कहीं आयकर विभाग के पास तो नहीं पहुंच जाएगी और उनके पास कहीं नोटिस तो नहीं आ जाएगा. 2016 की नोटबंदी के बाद लोगों के साथ ऐसा ही हुआ भी था. डर उन लोगों को भी जिनकी बिक्री इस फ़ैसले के बाद अचानक बढ़ गई है और उनके चालू खातों में अचानक से ज्यादा कैश ज्यादा जमा होने लगा है. उन लोगों को लग रहा है कि कहीं सरकार बाद में उनसे इसे लेकर कोई सवाल-जवाब तो नहीं करने लगेगी.
पर्सनल फाइनेंस पर ताजा अपडेट के लिए Money9 App डाउनलोड करें।