अगर किसी म्यूचुअल फंड का परफॉर्मेंस खराब चल रहा हो तो उनके निवेशकों को क्या करना चाहिए? क्या ऐसी स्कीम्स की यूनिट बेचकर बाहर निकल जाना चाहिए?
जब आप वित्तीय बाजारों में निवेश करते हैं तो दो एसेट कीमतों में कोरिलेशन यानी सह-संबंध खासतौर से मददगार होते हैं.
म्यूचुअल फंड्स को उनके निवेश लक्ष्य, एसेट आवंटन के तरीके और जोखिम प्रोफाइल के मुताबिक अलग-अलग वर्गों में रखा जाता है.
सॉल्यूशन ओरिएंटेड फंड्स ने लॉन्ग-टर्म के जटिल लक्ष्यों के लिए एक सरल वित्तीय समाधान पेश किया है.
डेट फंड ऐसे म्यूचुअल फंड होते हैं, जो मोटे तौर पर सरकारी बॉन्ड, कॉरपोरेट बॉन्ड, ट्रेजरी बिल जैसी फिक्स्ड इनकम एसेट में निवेश करते हैं.
स्विंग प्राइसिंग में फंड हाउस किसी स्कीम के NAV को एडजस्ट करते हैं.
FD की तरह इनके मैच्योर होने का एक तय तिथि होती है, इसलिए इन्हें टारगेट मैच्योरिटी फंड कहते हैं.
सेबी ने सभी एसेट मैनेजमेंट कंपनियों से कहा है कि अब फंड विदेशी शेयरों की खरीद न करें. सेबी ने ये भी कहा है कि वे अब निवेशकों से निवेश न लें.
एंट्री और एग्जिट लोड वो फीस है जिसे Mutual Fund कंपनी आपसे वसूलते हैं. इनके बारे में ज्यादा जानकारी के लिए देखें ये वीडियो-
NAV किसी भी म्यूचुअल फंड स्कीम का यूनिट प्राइस होता है. आप किसी भी फंड को उसके NAV पर ही खरीदते बेचते हैं. ये रोज बदलता है.