कोविड महामारी खत्म होने से अंतरराष्ट्रीय सीमाओं को दोबारा खोले जाने के बाद से भारतीयों ने जमकर विदेश यात्रा की है. आरबीआई के आंकड़ों के अनुसार, चालू वित्त वर्ष में अप्रैल से जुलाई के बीच भारतीयों ने लिब्रेलाइज्ड रेमिटेंस स्कीम (एलआरएस) के तहत विदेशी यात्रा पर लगभग 5.5 अरब डॉलर खर्च किए हैं. दिलचस्प बात यह है कि भारतीयों ने चालू वित्त वर्ष के पहले चार महीनों में विदेश यात्रा पर जितना पैसा खर्च किया है, वह पूरे वित्त वर्ष 2018-19 में खर्च की गई रकम से भी ज्यादा है. वित्त वर्ष 2018-19 में भारतीयों ने विदेश यात्रा पर 4.8 अरब डॉलर खर्च किए थे.
एलआरएस स्कीम के तहत व्यक्तियों (नाबालिगों सहित) को परमिसिबल करेंट या पूंजी खाते से एक वित्त वर्ष में 250,000 डॉलर तक भेजने की अनुमति मिलती है. ये पैसा आप विदेश में शिक्षा, अंतरराष्ट्रीय यात्रा, करीबी रिश्तेदारों के भरण-पोषण, चिकित्सा उपचार, अचल संपत्तियों की खरीद, इक्विटी/ऋण में निवेश और उपहार या दान के लिए भेज सकते हैं. आंकड़ों के अनुसार पहले चार महीनों में भारतीयों ने विदेश में विभिन्न लेनदेन पर कुल 11.5 अरब डॉलर खर्च किए हैं और यात्रा व्यय कुल विदेशी व्यय का 50 फीसदी था.
विदेशी मुद्रा कारोबार के विशेषज्ञों का कहना है कि विदेशी मुद्रा खर्च में उछाल टैक्स कलेक्शन ऐट सोर्स (TCS) की नई दरों के लागू होने के कारण भी हो सकता है. वित्त मंत्रालय ने 1 अक्टूबर से विदेश यात्रा पर 20 फीसदी टीसीएस लागू करने की घोषणा की है. एक वित्त वर्ष में 7 लाख रुपए से अधिक की रकम भेजने पर 20 फीसदी का टीसीएस लगेगा, इसमें चिकित्सा और शैक्षिक उद्देश्यों पर व्यय शामिल नहीं है. वहीं इस बारे में ट्रैवल कंपनी के अधिकारियों का कहना है कि कोविड के कारण लगे लॉकडाउन और घर से काम करने के बाद यात्रा की मांग में बढ़ोतरी देखने को मिली है. लोग अब अपनी मर्जी से बाहर घूमने जा रहे हैं.
वित्त वर्ष 2019-20 में विदेशी यात्रा पर खर्च 7 अरब डॉलर था, जो महामारी के दौरान यात्रा प्रतिबंधों के कारण वित्त वर्ष 2020-21 में गिरकर 3.2 अरब डॉलर हो गया. वहीं साल 2023 में ये बढ़कर 14 अरब डॉलर हो गया है.
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