आगरा के अचल बुरे चक्कर में फंस गए. बैंक से फोन आ रहे कि आपके नाम पर 20 लाख की रिकवरी का नोटिस है. मजे की बात यह कि उन्होंने बैंक से कोई कर्ज लिया ही नहीं. फिर ऐसा क्यों हो रहा? क्या गलती कर दी अचल ने? चलिए समझते हैं–
अचल एक फुटवेयर कंपनी में मैनेजर हैं. उनके सहकर्मी (ऑफिस कलीग यानी ऑफिस में साथ काम करने वाले) विनोद ने तीन साल पहले मकान खरीदने के लिए होम लोन लिया. लोन लेते वक्त अचल उनके गारंटर बन गए. कोविड की दूसरी लहर में विनोद की मौत हो गई. स्वाभाविक है कर्ज की किस्तें टूटीं तो बैंक वालों ने अचल का दरवाजा खटखटाया.
दरअसल, सभी बैंक और वित्तीय संस्थान कर्ज देने से पहले उसकी वापसी सुनिश्चित करते हैं. इसलिए सीमित साख क्षमता वाले लोगों को लोन देने से पहले वह गारंटर मांगते हैं. कई मामलों में अच्छी साख वाले लोगों से भी गारंटर मांगा जाता है. आम बोलचाल की भाषा में इसे ‘जमानत’ कहते हैं. मोटे तौर पर गारंटर बनने का मतलब यह होता है कि अगर किसी परिस्थिती में कर्ज लेने वाला इसे नहीं चुका पाया तो गारंटर इसकी भरपाई करेगा..
भई, जरूरत के दौरान दोस्तों और रिश्तेदारों की मदद करने में कोई बुराई नहीं है. लेकिन इनमें से कोई आपसे लोन का गारंटर बनने की कहे तो सोच–समझ कर ही फैसला लें. इस जिम्मेदारी को निभाने से पहले तमाम जोखिमों का आकलन जरूर कर लें.
क्योंकि कर्ज लेने वाले व्यक्ति के समय पर भुगतान न करने की स्थिति में गारंटर अपनी संपत्ति बेचकर कर्ज उतारने के दस्तावेजों पर हस्ताक्षर कर देता है और जब तक यह पता चलता है तब तक बहुत देर हो चुकी होती है.
पूर्व बैंकर सुरेश बंसल कहते हैं कि अधिकांश लोग समझते हैं कि गारंटर का काम कर्ज लेने वाले व्यक्ति के अच्छे चरित्र के बारे में जानकारी देना अथवा पुष्टि करना होता है। ऐसे लोगों की इस बात की जानकारी नहीं होती कि कर्जदार के लोन न चुकाने पर वह बैंक के भुगतान के लिए कानूनी तौर पर बाध्य होता है। इसी वजह से गारंटर किसी दूसरे व्यक्ति के कर्ज को चुकाने की सहमति दे देता है.
इस संकट से बचने के लिए लोन के आवेदन पर हस्ताक्षर करने से पहले उसके बारे में पूरी पड़ताल कर लें। यदि गारंटर से जुड़े नियमों की भाषा नहीं समझते हैं तो आप इसका अपनी भाषा में अनुवाद मांग सकते हैं। इसके अलावा अपने किसी विश्वास पात्र व्यक्ति के जरिए इन कागजातों को समझ सकते हैं.