अभी तक चर्चा हो रही थी श्रीलंका की. आसमान पर पहुंच गई वहां की महंगाई की. चर्चा हो रही थी पाकिस्तान की. दोनों के ऊपर चढ़े चीन के कर्ज की. लेकिन अचानक अब चर्चा हो रही है नेपाल की. वजह वही है खराब आर्थिक हालत. मामला कितना गंभीर है इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि नेपाल ने तमाम गैर जरूरी आयात पर प्रतिबंध लगा दिया है. अब नेपाल में विदेशी गाड़ियां, सोना और कॉस्मेटिक सामान जैसी करीब 300 लक्जरी वस्तुएं नहीं लाई जा सकेंगी. नेपाल सरकार का ये आदेश अगले आदेश तक प्रभावी रहेगा. यही नहीं नेपाल की सरकार ने अपने केंद्रीय बैंक के गवर्नर महा प्रसाद अधिकारी को भी सस्पेंड कर दिया है. नेपाल की सरकार और वित्त मंत्री बेशक सब ठीक होने का दावा कर रहे हैं लेकिन सब कुछ क्या वाकई सही है? हाल ही में नेपाल के पीएम शेर बहादुर देउबा भारत आए थे. उन्होंने इससे पहले चीन के विदेश मंत्री से भी मुलाकात की थी. चीन के विदेश मंत्री वांग यी जब काठमांडू पहुंचे तो नेपाल के पीएम से कई मुद्दों पर उनकी चर्चा हुई. चर्चा आर्थिक मदद को लेकर भी हुई. लेकिन नेपाल के प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा ने साफ कर दिया कि उनके देश को आर्थिक मदद तो चाहिए लेकिन ये मदद कर्ज के रूप में नहीं बल्कि अनुदान के रूप में चाहिए. इस मुलाकात के हफ्ते भर के भीतर ही नेपाल के पीएम भारत पहुंचे. और भारत के पीएम नरेंद्र मोदी से मिले. सीमा विवाद समेत कई मुद्दों पर चर्चा हुई. दोनों देशों के बीच कई समझौते भी हुए. ये दोनों ही मुलाकातें ऐसे दौर में हुई हैं जब नेपाल की आर्थिक स्थिति को लेकर तमाम किस्म की खबरें सामने आ रही हैं और सवाल उठ रहा है कि क्या नेपाल का हाल भी श्रीलंका या पाकिस्तान जैसा होने वाला है? बात चाहे नेपाल की हो या फिर श्रीलंका या पाकिस्तान की. बिना चीन कनेक्शन के पूरी नहीं होती. चीन की महत्वकाक्षी बेल्ड एंड रोड परियोजना में ये तीनों ही देश शामिल हैं और तीनों की ही आर्थिक स्थिति खराब है. क्या यह महज कोई इत्तेफाक है? लेकिन नेपाल में ये संकट कब और कैसे शुरू हुआ? काठमांडू पोस्ट की एक रिपोर्ट में नेपाल राष्ट्र बैंक के हवाले से ये बताया गया है कि नेपाल में महंगाई बढ़ गई है, व्यापार घाटा बढ़ गया है, आयात बढ़ रहा है और फॉरेन एक्सचेंज रिजर्व घट रहा है. महंगाई दर 7.14 परसेंट पर पहुंच गई है जो पिछले 67 महीने में सबसे अधिक है. इससे पहले ये आंकडा सितंबर 2016 में देखने को मिला था जब महंगाई दर 7.9 फीसद पर पहुंच गई थी. नेपाल सरकार का कहना है देश में महंगाई बढ़ने के पीछे की वजह कच्चे तेल के दाम, खाने-पीने की चीजों में महंगाई और कमोडिटीज के बढ़ते दाम हैं. नेपाल के आयात का सबसे बड़ा हिस्सा है पेट्रोलियम पदार्थों का. जो पूरे आयात का करीब 14 फीसद है. नेपाल की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं ये एक तथ्य है लेकिन नेपाल इस हालत में पहुंचा कैसे? खराब आर्थिक हालातों से तिलमिलाई सरकार ने एक के बाद एक कड़े फैसले लेने शुरु कर दिए. बिना कोई कारण बताए नेपाल के सेंट्रल बैंक के गवर्नर महाप्रसाद अधिकारी को निलंबित कर दिया गया. नेपाल के राजनीतिक गलियारों में वित्त मंत्री जनार्दन शर्मा को लेकर भी सवाल उठ रहे हैं लेकिन वित्त मंत्री का दावा है कि सब ठीक है. उन्होंने मीडिया से बात करते हुए हैरानी जताई कि लोग श्रीलंका से नेपाल के हालातों की तुलना कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि थोडा प्रेशर जरूर है लेकिन चिंता की कोई बात नहीं है. नेपाल की आर्थिक स्थिति को लेकर वहां के वित्त मंत्रालय ने एक प्रेस विज्ञप्ति जारी की है. इस विज्ञप्ति में बचाया गया है कि देश में विदेशी मुद्रा भंडार गिरकर करीब 9.7 अरब डॉलर रह गया है. हालांकि नेपाल सरकार का कहना है कि ये विदेशी मुद्रा भंडार अगले 6 महीने के आयात के लिए काफी होगा. नेपाल का व्यापार घाटा लगातार बढ़ रहा है और 207 करोड़ डॉलर के स्तर पर पहुंच गया है. विदेश से आने वाले धन में कमी आई है और ये केवल 4.5 अरब डॉलर ही रह गया है. वित्त मंत्रालय ने अपनी सफाई में कहा है कि दुनिया भर में कच्चे तेल के दाम बढ़े हैं और ये भी व्यापार घाटा बढने की एक बड़ी वजह रहा है. नेपाल की अर्थव्यवस्था में बड़ा योगदान पर्यटन का रहा है. अब लंबे वक्त से कोरोना प्रतिबंधों के कारण लोग यात्राएं नहीं कर रहे हैं ऐसे में नेपाल में निदेशी मुद्रा का प्रवाह रुक गया है. काठमांडू यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ मैनेजमेंट के प्रोफेसर अच्युत वागले ने काठमांडू पोस्ट से बातचीत में कहा कि इस वित्तीय वर्ष में व्यापार घाटा बढ़ कर 18 अरब डॉलर तक पहुंचने की आशंका है. इससे भुगताल संतुलन बिगड़ेगाऔर कर्ज की देनदारी बढ़ने से अर्थव्यवस्था के लिए खतरा पैदा कर सकते हैं. नेपाल की विदेश मंत्रालय की वेबसाइट बताती है कि नवंबर 2021 में नेपाल को एशियन डवलपमेंट बैंक से 60 मिलियन डॉलर का लोन मिला था. नेपाल में स्वास्थ्य संबंधी कार्यक्रमों के लिए फरवरी 2022 में विश्व बैंक ने 18 मिलियन डॉलर की मदद की थी. मार्च 2022 में जापान ने नेपाल को 2.6 अरब नेपाली रुपए की मदद की. ये मदद विकास के कामों के लिए की गई. इस तमाम मदद के बाद भी नेपाल की सड़कों पर सरकार के खिलाफ माहौल है. जनता महंगाई से परेशान है और सरकार खाली होते खजाने से. नेपाल, श्रीलंका और पाकिस्तान का हाल देख चुका है और यही वजह है कि वो चीन के साथ गले नहीं मिलना चाहता. अब नेपाल को मदद की उम्मीद भारत से है. साथ ही उम्मीद है एमसीसी समझौते से. एमसीसी यानी मिलेनियम चैलेज कॉरपोरेशन. ये एक अमेरिकी मदद है. 50 करोड़ अमेरिकी डॉलर की मदद. 2012 में इसकी प्रक्रिया शुरु हुई थी. 2017 में दोनों देशों के बीच समझौता हुआ. लेकिन इसके बाद भी नेपाल सरकार इसे अपनी संसद से पास नहीं करा सकी थी. इस साल 2022 में नेपाल की संसद ने भी अमरीकी मदद को मान लिया. इस मदद के तहत अमेरिका नेपाल में विकास के काम कराएगा. और चलिए अब ये भी समझ लीजिए कि नेपाल ने आयात रोकने का जो फैसला किया है उसका असर क्या होगा? यानी नेपाल का हाल वाकई श्रीलंका के जैसा नहीं है. नेपाल को लगातार विदेशी मदद मिल रही है. और भारत भी ये नहीं चाहेगा कि उसका एक और पड़ोसी चीन के कर्ज के जाल में फंस जाए. खैर, अब देखना ये होगा कि नेपाल अपने आयात प्रतिबंधों के जरिए अपनी आर्थिक स्थिति में सुधार कर पाएगा या फिर भारत का एक और पड़ोसी देश खराब आर्थिक स्थिति के फेर में फंस जाएगा.