सरकारी नौकरी से रिटायर होने के बाद शिमला के शिवराम ने 10 लाख रुपए की सावधि जमा (एफडी) कराई थी. उन्हें दो लाख रुपए की जरूरत पड़ी तो उन्हें पांच साल की यह एफडी दो साल बाद ही तुड़वानी पड़ गई. इस पर उन्हें पेनाल्टी चुकानी पड़ी. अगर शिवराम निवेश के समय थोड़ी सी समझदारी से काम लेते तो उन्हें यह नुकसान नहीं उठाना पड़ता. अगर आप एफडी में पांच साल जैसी लंबी अवधि के लिए बड़ी रकम निवेश करने की सोच रहे हैं तो इसके लिए एक विशेष योजना बनाएं. उदाहरण के लिए आपको 10 लाख रुपए निवेश करने हैं तो इस रकम को 5, 2, 2, व 1 लाख के हिस्सों में बांटकर निवेश करें. इसमें से कुछ रकम एक-दो साल के लिए निवेश करें.
क्या होगा फायदा अगर आप बड़ी रकम को टुकड़ों में निवेश करते हैं तो इससे आपको कोई नुकसान नहीं होगा. आजकल तमाम बैंक लंबी अवधि की तुलना में कम समय की एफडी पर ज्यादा ब्याज दे रहे हैं. टुकड़ों और अलग-अलग अवधि के लिए निवेश करने से कई बड़े फायदे हो सकते हैं. बानगी के तौर पर अगर आपको एक लाख रुपए की जरूरत पड़ती है तो छोटी अवधि की एफडी को तुड़वा कर अपना काम चला सकते हैं. हालांकि कुछ बैंक समय से पहले एफडी तुड़वाने पर कोई पेनाल्टी नहीं लेते लेकिन जो बैंक यह पेनाल्टी लगाते हैं उनमें यह नुकसान नहीं उठाना पड़ेगा.
वित्तीय सलाहकार जितेन्द्र सोलंकी कहते हैं कि आपको कब और कितने पैसों की जरूरत पड़ सकती है इस बारे में पहले से पक्के तौर पर कुछ नहीं कहा जा सकता. इसीलिए बड़ी रकम को अलग-अलग अवधि के लिए टुकड़ों में निवेश करना बेहतर विकल्प है। इस पहल से आपके पास नकदी की उपलब्धता बनी रहेगी. साथ ही मैच्योरिटी से पहले एफडी तुड़वाने पर रिटर्न में ज्यादा नुकसान नहीं उठाना पड़ेगा.
मैच्योरिटी का रखें ध्यान एफडी से कमाई के लिए सिर्फ निवेश करना ही पर्याप्त नहीं है… आरबीआई के नए नियमों के तहत अगर एफडी मैच्योर होती है और किसी कारण से उसकी राशि का भुगतान नहीं हो पाता है या इसके लिए क्लेम नहीं करते हैं तो उस पर ब्याज की गणना बचत खाते के हिसाब से अथवा एफडी की अनुबंधित दर में से जो भी कम होगी, उसके आधार पर होगी. ऐसे में अगर एफडी की मैच्योरिटी पर क्लेम नहीं किया तो आपके निवेश पर कम ब्याज मिलेगा.
इससे पूर्व किसी ग्राहक की एफडी की मियाद पूरी हो गई है और वह उसे रिन्यू कराने बैंक की शाखा में नहीं पहुंचता था तो बैंक उसे स्वत: ही पूर्व की अवधि के लिए रिन्यू कर देता था. इस स्थिति में ग्राहक को निवेश के समय तय ब्याज का भुगतान मिलता था. इस वजह से ग्राहक पूरी तरह से निश्चिंत रहते थे. जाहिर है अब एफडी की मैच्योरिटी की तिथि पहले से ही याद रखनी होगी.
एफडी में निवेश कर रहे हैं तो ऐसी योजना बनाएं जिससे नकदी की लिक्विडिटी बनी रहे. निवेश के बाद इसकी मैच्योरिटी का ध्यान रखें. इस मामले में जरा सी लापरवाही भारी पड़ सकती है. एफडी से मिलने वाला रिटर्न निवेशक की सालाना आय में जुड़ता है. ऐसे में जो लोग आयकर के ऊपरी स्लैब में आते हैं उनके लिए यह योजना उपयोगी नहीं है.
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