आमतौर पर कारोबार और निवेश की दुनिया में सक्रियता को काफी पसंद किया जाता है. निवेश की दुनिया में ज्यादातर लोग यही समझते हैं कि ज्यादा सक्रियता, ज्यादा जोखिम मतलब ज्यादा रिटर्न. कम जोखिम मतलब कम रिटर्न. लेकिन रवि हैरान है कि म्यूचुअल फंड की दुनिया में उल्टी रणनीति का बोलबाला दिख रहा है. एक्टिवली मैनेज्ड इक्विटी फंडस के मुकाबले पैसिव मैनेजमेंट वाले फंडस में निवेश भी बढ़ा और बाजार के परफॉर्मेंस की तर्ज पर रिटर्न भी दिलवाया.
मोतीलाल ओसवाल AMC के मुताबिक पिछले पांच साल में पैसिव फंड्स की मांग काफी बढ़ी है. इस दौरान पैसिव फंड्स का AUM 8.5 गुना बढ़ गया है. वित्त वर्ष 2018 में सभी पैसिव फंड का AUM करीब 83 हजार करोड़ रुपए था, लेकिन मार्च 2023 तक यह बढ़कर 7.6 लाख करोड़ रुपए हो गया.
मोतीलाल ओसवाल AMC के एक सर्वे में शामिल 61 फीसदी लोगों ने कहा कि उन्होंने कम से कम एक पैसिव फंड में निवेश जरूर किया है. कम लागत, सरलता और मार्केट के अनुरूप रिटर्न की वजह से निवेशक पैसिव फंड में निवेश पसंद कर रहे हैं.
सर्वे के मुताबिक भारत के निवेशक पैसिव फंड के भीतर एक्सचेंज ट्रेडेड फंड की जगह इंडेक्स फंड को तरजीह दे रहे हैं. सर्वे में शामिल 87 फीसदी लोगों ने कहा कि वे इंडेक्ड्स फंड के जरिए निवेश करते हैं, जबकि 42 फीसद ने कहा कि वे ETF के जरिए निवेश करते हैं.
क्या होते हैं एक्टिव और पैसिव फंड?
दरअसल, एक्टिव फंड में किसी स्कीम का पैसा फंड मैनेजर मैनेज करता है. यानी निवेशकों के पैसे कहां लगाने हैं, कहां नहीं, ये फंड मैनेजर के विवेक या उसकी स्ट्रैटजी पर निर्भर करता है. लेकिन पैसिव फंड निष्क्रिय तरीके से काम करता है. यह बस किसी एक इंडेक्स को फॉलो कर लेता है. यहां स्कीम का पैसा उन्हीं शेयरों में लगाया जाता है जो इंडेक्स में शामिल होते हैं. यहां तक कि पैसा उसी अनुपात में लगता है जितना वेटेज उनका इंडेक्स में होता है. मसलन, निफ्टी इंडेक्स फंड स्कीम का पैसा निफ्टी की 50 कंपनियों में ही लगाया जाएगा.
पैसिव फंड का रिटर्न बेंचमार्क इंडेक्स के रिटर्न के आसपास ही रहता है. उदाहरण के लिए निफ्टी 50 ने पिछले एक साल में करीब 12 फीसद का रिटर्न दिया है, तो निफ्टी50 को कॉपी करने वाले पैसिव फंड्स में भी करीब इतना ही रिटर्न मिला. पैसिव फंड दो तरह के होते हैं इंडेक्स फंड और एक्सचेंज ट्रेडेड फंड यानी ETF. ईटीएफ में गोल्ड ईटीएफ, सिल्वर ईटीएफ आदि.
क्या है लोकप्रियता की वजह?
सर्वे में शामिल 57 फीसदी लोगों ने कहा कि पैसिव फंड चुनने की उनके लिए सबसे बड़ी वजह उनकी कम लागत का होना है यानी लागत सबसे बड़ा फैक्टर है. इसके बाद 56 फीसदी लोगों ने कहा कि पैसिव फंड्स में निवेश उन्हें इसलिए पसंद है, क्योंकि इनमें निवेश करना आसान होता है. 54 फीसदी निवेशकों ने कहा कि वे पैसिव फंड में निवेश इसलिए पसंद करते हैं, क्योंकि इनमें मार्केट जैसा रिटर्न मिल जाता है.
पैसिव फंड का खर्च सामान्य तौर पर एक्टिव फंड से कम होता है.. पैसिव फंड का एक्सपेंस रेश्यो यानी फंड की लागत 0.05 से लेकर 1 फीसदी के बीच है जबकि एक्टिव फंड में यह 1 से 2 फीसद तक हो सकती है. साथ ही पैसिव फंड में स्कीम से बाहर निकलने पर कोई खर्च यानी एग्जिट लोड नहीं लिया जाता. यानी इन पर निवेश में लागत एक्टिव फंड के मुकाबले कम आती है. पैसिव फंड्स के रिटर्न पर नजर डालें तो इन सब का 1, 3 और 5 साल का रिटर्न आसपास ही रहा है.
पैसिव म्यूचुअल फंड बाजार को ट्रैक करते हैं. इसी के चलते एक्टिव फंड के मुकाबले इनमें उतार-चढ़ाव कम होता है… यह नए निवेशकों या फिर उन निवेशकों के लिए अच्छे हैं जो रिटर्न के बजाय सेफ्टी को तरजीह देते हैं. कुल मिलाकर कहें तो कम खर्च, कम जोखिम और बढ़िया रिटर्न की वजह से पैसिव फंड लोकप्रिय हो रहे हैं
पर्सनल फाइनेंस पर ताजा अपडेट के लिए Money9 App डाउनलोड करें।