Value Mutual Funds: बाजार के एक्सपर्ट्स मानते हैं कि शेयर की खरीदारी में सही वैल्यू बेहद जरूरी है. वैल्यू यानी आप जितने में वो शेयर खरीद रहे हैं क्या उस भाव पर उस कंपनी के शेयर खरीदना जायज है. अगर, शेयर अपनी वैल्यू से कम भाव पर ट्रेड कर रहे हैं तो आगे उनमें बड़ी कमाई की संभावना रहती है.
जब साल 2020 में मार्च अंत और अप्रैल में बड़ी गिरावट आई थी तब ज्यादा एक्सपर्ट्स ने अच्छी वैल्यू वाली कंपनियों में खरीदारी की सलाह दी थी. नतीजा ये रहा कि अच्छी क्वालिटी वाली कंपनियां ज्यादा जल्दी रिकवर हुईं.
लेकिन ये वैल्यू आपको कैसे पता चले. कैसे पता चले कि जब आप शेयर में खरीदारी कर रहे हैं तो वो सही वैल्यू पर है या नहीं. इसको तय करने के लिए कई मापदंड हैं लेकिन ये होमवर्क अगर आप म्यूचुअल फंड पर छोड़ना चाहते हैं तो इसके लिए कैटेगरी है वैल्यू फंड.
वैल्यू फंड (Value Funds) उन शेयरों में निवेश करते हैं जो फंड हाउस के मुताबिक अपनी वैल्यू से नीचे के भाव पर ट्रेड कर रहे हैं. ये वो कंपनियां हैं जिनमें उनके फंडामेंटल के हिसाब से आगे ग्रोथ की बड़ी संभावनाएं होती हैं.
प्रोमोर फिनटेक (ProMore Fintech) की को-फाउंडर और CFP निशा संघवी कहती हैं कि इन फंड्स से कमाई के लिए निवेशकों को समय देना होता है. वे सलाह देती हैं कि अगर आप 7 साल से ज्यादा अपना निवेश इन फंड्स में बनाए रख सकते हैं तो ही इनमें निवेश करें. वे कहती हैं कि साइक्लिकल होने की वजह से छोटी अवधि में इनमें कमाई की संभावना कम रहती है. उनका कहना है कि एक वैल्यू साइकल को टर्न होने में कम से कम 5 से 6 साल लगता है. तभी आपको अच्छे रिटर्न दिखेंगे.
इक्विटी में ही निवेश होने के कारण इनमें भी कमाई और जोखिम इक्विटी फंड के जैसे ही है. इस कैटेगरी के अधिक्तर फंड्स ने एक साल में 60 से 80 फीसदी तक के रिटर्न दिए हैं. हालांकि, एक साल के रिटर्न देखते वक्त गौर करें कि पिछले साल कोरोना की भारत में एंट्री और देशभर में लगे लॉकडाउन के कारण रिकॉर्ड गिरावट से रिकवरी के आधार पर ये रिटर्न आपको इतने दिख रहे हैं.
पिछले 5 साल में इन फंड्स ने 12 से 17 फीसदी के रिटर्न दिए हैं.
निपॉन इंडिया वैल्यू फंड – डायरेक्ट प्लान ने 5 साल की अवधि में 16.88 फीसदी का रिटर्न दिया है और 7 साल में 15.10 फीसदी. यानी, इस फंड में अगर आपने 7 साल पहले एक लाख रुपये का निवेश किया होता तो ये रकम आज 2.68 लाख रुपये हो चुकी होती. और तब शुरू की हर महीने 10,000 की SIP से अब तक 14.72 लाख रुपये जुटाए गए होते.
वहीं आईसीआईसीआई प्रुडेंशियल वैल्यू डिस्कवरी फंड और यूटीआई वैल्यू ऑपर्च्यूनिटी फंड ने एक जैसे रिटर्न दिए हैं. पिछले 5 साल में इन दोनों फंड्स ने 14-15 फीसदी के बीच के रिटर्न दिए हैं.
कॉन्ट्रा नाम से बिकने वाले फंड्स भी वैल्यू फंड्स ही कैटेगरी में शामिल किए जाते हैं. इनमें इन्वेस्को इंडिया कॉन्ट्रा फंड और कोटक इंडिया इक्विटी कॉन्ट्रा फंड शामिल हैं. इन्वेस्को इंडिया कॉन्ट्रा फंड ने 7 साल की अवधि में 18.24 फीसदी का रिटर्न दिया है. यानी, 7 साल पहले किया 1 लाख रुपये का एकमुश्त निवेश अब बढ़कर 3.23 लाख रुपये हो चुका होता और 7 साल पहली ही शुरू की हर महीने 10,000 की SIP की वैल्यू आज की तारीख में 15.65 लाख रुपये हो चुकी होती.
वैल्यू फंड्स की कैटेगरी में अधिक्तर फंड्स का फाइनेंशियल, हेल्थकेयर और टेक्नोलॉजी शेयरों में एलोकेशन ज्यादा है.
निशा संघवी कहती हैं कि अगर आप जोखिम ले सकते हैं और निवेश में धीरज रखते हैं तो ही इन फंड्स को अपने पोर्टफोलियो में शामिल करें. अगर आपको बार-बार NAV देखने की आदत है तो इनसे दूर रहें.
वे कहती हैं कि कई फंड हाउस इस कैटेगरी के क्लोज एंडेड फंड भी लाते हैं जिनसे बचना चाहिए क्योंकि ऐसे कई फंड्स की अवधि केवल 3 साल थी और इतने कम समय में एकमुश्त पैसा लगाने पर बड़ी कमाई नहीं होगी. वैल्यू कैटेगरी का फंड चुनते वक्त इन बातों पर गौर करें और सतर्क रहें.
इन फंड्स में इक्विटी कैटेगरी के जैसे ही कैपिटल गेन टैक्स लगते हैं. एक साल से कम अवधि में निवेश निकाला तो कुल मुनाफे पर 15 फीसदी टैक्स लगेगा. 1 साल के बाद फंड से पैसा निकाला तो 1 लाख रुपये से ज्यादा हुए मुनाफे पर 10 फीसदी का लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन टैक्स लगेगा.
डिविडेंड से हुई कमाई को आपकी आय में जोड़ा जाएगा और आपके टैक्स स्लैब के मुताबिक टैक्स लगाया जाएगा. एक वित्त वर्ष में अगर डिविडेंड से 5,000 रुपये से ज्यादा की कमाई हुई है तो फंड 10 फीसदी TDS काटेगा.
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