स्टॉक ब्रोकर और क्लियरिंग सदस्य अब अपने क्लाइंट के पैसों को म्यूचुअल फंड की ओवरनाइट स्कीम में लगा सकेंगे. पूंजी बाजार नियामक सेबी ने ब्रोकरों को इसकी छूट दी है. चूंकि इसमें सिर्फ केवल जोखिम मुक्त सरकारी एक्सचेजों में निवेश होता है, ऐसे में फंड के डूबने का डर नहीं रहेगा. हालांकि सेबी ने मंजूरी के साथ कुछ दिशानिर्देश भी जारी किए हैं. जिसमें ब्रोकरों और क्लियरिंग सदस्यों को महज सरकारी बॉन्ड, ओवरनाइट रेपो बाजार और ओवरनाइट ट्राई-पार्टी रेपो डीलिंग और सेटलमेंट (टीआरईपीएस) में ही निवेश करने की हिदायत दी है.
इसके अलावा नियामक ने कहा कि ऐसी म्यूचुअल फंड ओवरनाइट स्कीम, डीमटेरियलाइज्ड (डीमैट) रूप में होनी चाहिए और ये हर समय क्लियरिंग कॉर्पोरेशन के पास गिरवी रखी जानी चाहिए. बता दें जून में सेबी ने ब्रोकरों के पास रखे ग्राहकों के फंड की सुरक्षा के लिए क्लियरिंग कॉर्पोरेशनों में ग्राहकों के फंड को अपस्ट्रीम करने के लिए एसबी/सीएम के लिए रूपरेखा तय की थी. मगर इसके कार्यान्वयन में कुछ ऑपरेशनल दिक्कतें आई थीं. इस मुद्दे को हल करने के लिए सेबी ने उद्योग संघों को ब्रोकर के साथ एक बुनियादी ढांचा तैयार करने के लिए एक प्रस्ताव प्रस्तुत करने की सलाह दी थी.
आईएसएफ ने सेबी के सामने कुछ सिफारिशें पेश की थी, जिसे नियामक ने व्यापार करने में एक आसान कदम माना. उनकी ओर से सुझाए गए बुनियादी सिद्धांतों में ग्राहकों के स्पष्ट क्रेडिट शेष को अपस्ट्रीम करना, अपस्ट्रीमिंग केवल नकदी के रूप में करना, ग्राहकों के फंड से बनाई गई सावधि जमा रसीदों (एफडीआर) पर ग्रहणाधिकार, या ग्राहकों के फंड से बनाई गई एमएफओएस की इकाइयों का सही इस्तेमाल आदि शामिल हैं.