नियमों के उल्लंघन के चलते आरबीआई ने भले ही पेटीएम पेमेंट बैंक को प्रतिबंधित कर दिया है, लेकिन फंड हाउसों का भरोसा अभी भी इसमें कायम है. यही वजह है कि पेटीएम (वन 97 कम्युनिकेशन) में म्यूचुअल फंडों की हिस्सेदारी जनवरी में 70 प्रतिशत बढ़कर 3,384 करोड़ रुपए हो गई है. बीते साल दिसंबर में यह महज 1,995 करोड़ रुपए थी. इस बढ़ोतरी की वजह लागत में निवेश बढ़ाना है.
जानकारों के मुताबिक जिन निवेशकों ने ऊंची कीमत पर स्टॉक खरीदा है, वे उसी स्टॉक को उसके नीचे आने पर ज्यादा खरीदना पसंद करते हैं. इससे उन्हें निवेश की कुल लागत कम करने में मदद मिलती है. आंकड़ों पर नजर डालें तो फंड हाउसों ने जनवरी में अपनी हिस्सेदारी 41 प्रतिशत बढ़ाकर 4.4 करोड़ शेयर कर दी, जबकि दिसंबर में यह 3.2 करोड़ थी. हिस्सेदारी तब बढ़ाई गई जब कंपनी का औसत शेयर मूल्य जनवरी में बढ़कर 761 हो गया, जो दिसंबर में 635 रुपए था.
किन फंड हाउसों ने बढ़ाई हिस्सेदारी?
फिस्डोम रिसर्च के अनुसार, लगभग सात फंड हाउसों ने अपनी हिस्सेदारी बढ़ाई है, जबकि बड़ौदा बीएनपी पारिबा ने पिछले महीने एक नई एंट्री ली है. हालांकि एचएसबीसी एमएफ जनवरी में 6.2 लाख शेयर बेचकर पेटीएम से पूरी तरह बाहर निकल गया है. निप्पॉन एमएफ और मिराए एमएफ का 10 योजनाओं के जरिए पेटीएम में सबसे ज्यादा एक्सपोजर है, जबकि मोतीलाल ओसवाल एमएफ का अपनी नौ योजनाओं के जरिए तीसरा सबसे ज्यादा एक्सपोजर है.
क्या है जानकारों की राय?
जीसीएल ब्रोकिंग के शोध विश्लेषक वैभव कौशिक का कहना है म्यूचुअल फंड अपनी लागत को औसत करने का प्रयास कर रहे हैं. आरबीआई की कार्रवाई के बाद पेटीएम शेयर की कीमत कम हो गई है. नियामक के आदेश ने पेटीएम कारोबार के केवल एक छोटे से हिस्से को प्रभावित किया है. उनका अनुमान है कि वित्त बैंक व्यवसाय के राइटिंग ऑफ के बाद भी अगले एक साल में शेयर का मूल्य 700 रुपए हो सकता है. हालांकि, फिस्डोम के शोध प्रमुख नीरव आर कारकेरा ने कहा कि आरबीआई के पेटीएम पेमेंट्स बैंक पर लगाए गए परिचालन प्रतिबंधों का ऋण कारोबार पर असर पड़ सकता है, जो इसके कुल राजस्व में लगभग 18-20 प्रतिशत का योगदान देता है.