निवेशकों को म्यूचुअल फंड्स (MFs) की Mid और Smallcap Schemes में किए निवेश से बाहर निकलने पर भविष्य में ज्यादा एग्जिट लोड का सामना करना पड़ सकता है. इसके अलावा म्यूचुअल फंड हाउसेज कर्मचारियों को स्कीम से एक्जिट होने पर कैपिंग भी लगा सकते हैं. मिडकैप और स्मालकैप योजनाओं में निवेशकों के हितों की रक्षा के लिए, म्यूचुअल फंड ट्रस्टीज की तरफ से तैयार की गई इनवेस्टर प्रोटेक्शन नीतियों में इस तरह के कदम उठाए जाने की बात कही गई है.
स्मॉलकैप योजनाओं में निवेशकों के हित को सुरक्षित करने के लिए कैपिटल मार्केट रेग्युलेटर सेबी की तरफ से अतिरिक्त कदम उठाए जाने के निर्देश दिए गए थे. इसके बाद म्यूचुअल फंड ट्रस्टीज की तरफ से जो नई पॉलिसी तैयार की गई है, उसमें फंड हाउसेज के लिए इस तरह के निर्देश शामिल हैं. ट्रस्टीज की तरफ से जारी इस पॉलिसी के 2 मकसद है, पहला म्यूचुअल फंड्स में आने वाले निवेश का सही प्रबंधन हो और दूसरा बाजार में भारी उतार-चढ़ाव के समय निवेशकों के हितों की रक्षा हो सके. माना जा रहा है कि कुछ फंड हाउसेज ट्रस्टीज और बोर्ड की मंजूरी के बाद सेबी के नियमों के तहत इन निर्देशों को लागू कर सकते हैं.
कैपिटल मार्केट रेग्युलेटर सेबी की तरफ से मिडकैप और स्मॉलकैप फंड्स को लेकर हाल में सख्ती की गई है, पहले सेबी चेयरपर्सन माधबी पुरी की तरफ से मिडकैप और स्मॉलकैप में संभावित सट्टेबाजी की तरफ इशारा किया गया और फिर उसके बाद फंड हाउसेज को सख्ती के लिए बोला गया. सेबी की इस सख्ती के बाद शेयर बाजार में मिडकैप और स्मॉलकैप शेयरों में भी गिरावट देखने को मिली है.
मिडकैप और स्मॉलकैप फंड्स में बढ़ते निवेश को देखते हुए सेबी की तरफ से फंड हाउसेज को सभी स्कीमों का स्ट्रेस टेस्ट करने के लिए भी बोला गया था, जिसमें यह पता लगाया गया था कि बाजार में भारी उतार-चढ़ाव या किसी संकट के समय अगर निवेशक अपना निवेश निकालते हैं तो कितने दिनों में निवेशकों का पैसा वापस हो सकता है. अधिकतर फंड हाउसेज की तरफ से बताया गया था कि 25 या 50 फीसद पैसे को वे कितने दिनों में लौटा सकते हैं.