Mutual Fund: म्यूचुअल फंड में निवेश की पहली सीढ़ी है आप कितने समय तक निवेश रख सकते हैं या निवेश करते रहेंगे. आप इस निवेश की रकम से क्या लक्ष्य हासिल करना चाहते हैं. दूसरी सीढ़ी है अपनी रिस्क क्षमता को समझना. रिस्क यानी जो पैसा आप निवेश में लगा रहे हैं उससे कितने वक्त तक दूर रह सकते हैं, कितने समय तक उसकी जरूरत नहीं पड़ेगी और अगर उसमें छोटी अवधि में घाटा हुआ तो वो आपकी रोजमर्रा के खर्च पर ज्यादा असर नहीं करेगी. जब आप ये दोनों तय कर लेते हैं तब आपका अगला पड़ाव होता है एक म्यूचुअल फंड चुनना. लेकिन ये कैसे जानें कि कौन सा म्यूचुअल फंड आपके लिए बेस्ट है?
म्यूचुअल फंड कई निवेशकों से रकम जमा कर शेयर बाजार, डेट, गोल्ड या अन्य निवेश विकल्पों में लगाते हैं. लिहाजा इनमें किसी एक शेयर या बॉन्ड में निवेश करने के मुकाबले जोखिम कम होता है. अगर आपने अपने रिस्क और निवेश की अवधि के हिसाब से समझ लिया है कि आपको इक्विटी या डेट में निवेश करना है तो इन ढेरों फंड्स से एक फंड कैसे चुनें?
एसोसिएशन ऑफ म्यूचुअल फंड इंडस्ट्री की वेबसाइट पर देखें तो ओपन-एंडेड इक्विटी की लार्जकैप कैटेगरी में ही आपको 29 फंड्स की लिस्ट मिल जाएगी. वहीं डेट कैटेगरी के शॉर्ट टर्म फंड्स की कैटेगरी में भी 26 फंड की लिस्ट दिख जाएगी. अब इक्विटी में मार्केट कैप के हिसाब से, टैक्स बचत, निवेश के सेक्टर, निवेश की स्ट्रैटेजी के आधार पर इतनी कैटेगरी हैं कि किसी के लिए भी चुनना मुश्किल हो सकता है.
आप जब भी किसी फंड का पिछला प्रदर्शन देखें उसकी तुलना बेंचमार्क इंडेक्स से जरूर करें. बेंचमार्क इंडेक्स वो इंडेक्स है जिससे मिलता-जुलता निवेश फंड कर रहा है. अगर फंड का प्रदर्शन बेंचमार्क से भी कम है तो फंड आपके लिए सही नहीं क्योंकि वो आपको सामान्य निवेशक से बेहतर रिटर्न नहीं दे पा रहा.
इसके साथ ही फंड की तुलना उसी कैटेगरी के अन्य फंड्स से करें. लंबी अवधि में देखें कि उसी कैटेगरी के फंड्स ने कितना रिटर्न दिया है.
फिनसेफ की फाउंडर मृण अग्रवाल का कहना है कि निवेशकों के लिए फंड चुनने में रोलिंग रिटर्न ज्यादा बेहतर मदद कर सकते हैं. रोलिंग रिटर्न अलग-अलग समय पर फंड के प्रदर्शन को दिखाते हैं जिससे किसी एक समय पर अगर फंड ने ज्यादा रिटर्न दिया था और किसी और समय कम, तो वो एक तय तारीख तक फंड का दिया औसत रिटर्न बताएगा.
मसलन, कोविड संकट में अगर किसी ने फंड का प्रदर्शन मार्च-अप्रैल के वक्त देखा होता तो लगता कि फंड बड़े ही घाटे का सौदा है लेकिन उन्हीं फंड्स ने एक साल में उस गिरावट से 70 से 80 फीसदी तक की तेजी दिखाई है. इस तरह के बाजार में निवेशक के लिए सही फंड चुनना मुश्किल हो सकता है और यहीं काम आता है रोलिंग रिटर्न.
मृण अग्रवाल के मुताबिक फंड हाउस को रोलिंग रिटर्न भी दिखाने चाहिए और उनकी मांग है कि रेगुलेटर को भी इस दिशा में काम करना चाहिए ताकि निवेशक सही फैसला ले सकें. हालांकि निवेश से पहले वो एक एडवाइजर की सलाह लेने के लिए जरूर कहती हैं.
मृण अग्रवाल कहती हैं कि रिस्क-रिटर्न रेश्यो भी देखें तो वे बेहतर फैसला ले पाएंगे. वे कहती हैं कि मौजूदा माहौल में रिटेल निवेशकों के लिए खुद फंड चुनना मुश्किल है.
मनी मंत्रा के फाउंडर विरल भट्ट कहते हैं कि आपको फंड के निवेश की स्ट्रैटेजी देखनी चाहिए ताकि अगर लंबी अवधि में कभी फंड मैनेजर बदलता भी है तो निवेश की रणनीति वही रहेगी.
वे बताते हैं कि रिस्क-रिवॉर्ड रेश्यो देखना भी जरूरी है. यानी कितना रिस्क लेकर आपको कितना रिटर्न मिल रहा है और क्या इस रिटर्न के लिए इतना जोखिम लेना सही है.
इसके अलावा एक ही कैटेगरी में में जब आप फंड चुन रहे हों तो फंड के रिटर्न के साथ एक्सपेंस रेश्यो भी देखें. एक्सपेंस रेश्यो वो खर्च है जो फंड हाउस आपसे बतौर फीस लेता है.
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