देश के सबसे बड़े निजी बैंक एचडीएफसी और एचडीएफसी फाइनेंस का विलय हो रहा है. उम्मीद की जा रही है कि आने वाले हफ्तों में ये प्रक्रिया पूरी कर ली जाएगी. इस मर्जर को जहां एचडीएफसी अपनी ग्रोथ के नए अवसरों के तौर पर देख रहा है, वहीं इससे म्यूचुअल फंड हाउसों के लिए चिंता का सबब बना हुआ है. दरअसल, विलय के बाद बेंचमार्क सेंसेक्स और निफ्टी 50 इंडेक्स का संयुक्त हिस्सेदारी एक्टिव म्यूचुअल फंड स्कीम के मानक से ज्यादा हो जाएगा.
नतीजतन अगर एचडीएफसी बैंक के शेयर बाजार से बेहतर प्रदर्शन करते हैं, तो इसका इक्विटी म्यूचुअल फंड के प्रदर्शन पर असर पड़ सकता है. क्योंकि इस दौरान म्यूचुअल फंड योजनाओं को सेबी की ओर से निर्धारित होल्डिंग सीमा के तहत बने रहने के लिए स्टॉक में अपनी हिस्सेदारी कम करनी पड़ेगी.
क्या पड़ेगा असर?
कई म्यूचुअल फंड हाउस एचडीएफसी फाइनेंस और एचडीएफसी बैंक दोनों को अपने पोर्टफोलियो में रखते हैं. खासतौर पर इनमें लार्जकैप म्यूचुअल फंड योजनाएं शामिल होती हैं. इसलिए, कई प्रबंधित इक्विटी म्यूचुअल फंड योजनाओं का इन दोनों संगठनों में संयुक्त आवंटन 10% से अधिक है. मगर दोनों के विलय से ऐसी योजनाओं में उनकी हिस्सेदारी 10% से अधिक हो जाएगी. इनका असर सक्रिय रूप से प्रबंधित फोकस्ड फंडों, वैल्यू फंडों, लार्जकैप फंडों और ईएलएसएस जैसी योजनाओं पर पड़ेगा.
क्या है सेबी के नियम?
सेबी के नियमों के तहत सक्रिय रूप से प्रबंधित इक्विटी म्यूचुअल फंड को एक ही स्टॉक में अपनी होल्डिंग को एसेट अंडर मैनेजमेंट (एयूएम) के तहत 10% तक ही सीमित करना होगा. बाजार विशेषज्ञों के अनुसार, एचडीएफसी बैंक और एचडीएफसी फाइनेंस के विलय के बाद सेबी म्यूचुअल फंडों को 10 फीसद सीमा से अधिक होने पर विशेष छूट नहीं देगा.
क्या निवेशकों पर पड़ेगा इसका असर?
विलय से पहले, चुनिंदा म्यूचुअल फंड कंपनियों और योजनाओं ने दोनों कंपनियों में अपना जोखिम कम करना शुरू कर दिया है. हालांकि बाजार विशेषज्ञों का मानना है कि इन इक्विटी में मजबूत निवेश वाले म्यूचुअल फंड योजनाओं के निवेशकों को इस मर्जर से किसी तरह की दिक्कत नहीं होगी.