पानीपत के रहने वाले दिनेश शेयर बाजार में निवेश करने के अलावा आंकड़ों पर भी पैनी नजर रखते हैं. पर वो दो तरह के आंकड़े देखकर काफी दुविधा की स्थिति में हैं. विदेशी संस्थागत निवेशकों और घरेलू म्यूचुअल फंड्स के भारतीय बाजार में निवेश से जुड़े है. दुविधा इस बात को लेकर है कि क्या म्यूचुअल फंड्स के आंकड़ों को देखकर बाजार में फिलहाल खरीदारी करनी चाहिए या विदेशी संस्थागत निवेशकों के आंकड़ों को देख पोजीशन हल्की रखनी चाहिए या फिर पूरी तरह एग्जिट कर लेना चाहिए.
MFs की करीब 17 हजार करोड़ की खरीद
ऐसा इसलिए क्योंकि अक्टूबर महीने में घरेलू म्यूचुअल फंड्स ने भारतीय बाजार में करीब 17,000 करोड़ रुपए का निवेश किया है जबकि विदेशी संस्थागत निवेशकों ने करीब 24,500 करोड़ रुपए की निकासी की है यानी बिकवाली की है. विदेशी संस्थागत निवेशकों की अक्टूबर महीने की बिक्री का आंकड़ा जनवरी 2023 के बाद सबसे अधिक है जब उन्होंने 28,852 करोड़ रुपए के शेयर बेचे थे.
वहीं सेबी के आंकड़ों के मुताबिक म्यूचुअल फंड्स की खरीदारी भले ही 2 महीने से लगातर घट रही है पर वित्त वर्ष 2023 के 14,150 करोड़ रुपए मासिक औसत निवेश से काफी अधिक और विदेशी संस्थागत निवेशकों की बिकवाली को काउंटर करने के लिए पर्याप्त रही, क्योंकि विदेशियों की बड़ी बिकवाली के बावजूद बाजार में कोई बड़ी गिरावट देखने को नहीं मिली. पर दिनेश के दोस्त शिवराम ने उनको बताया कि वो तो ‘ट्रेंड इज योर फ्रेंड’ की रणनीति अपनाते हैं. जब दिनेश ने हैरान होकर पूछा वो कैसे तो शिवराम ने बताया कि अगर घरेलू म्यूचुअल फंड्स की ओर से खरीदारी हो रही है तो ऐसे शेयरों में ही क्यों न निवेश किया जाए. जहां म्यूचुअल फंड्स अपनी हिस्सेदारी बढ़ा रहे हैं और उनसे दूर रहो जहां उन्होंने अपनी हिस्सेदारी कम की है या एग्जिट कर रहे है.
तो जाहिर सी बात है कि फिर दिनेश का अगला सवाल ये ही था कि ऐसी कौन सी कंपनियां हैं? आंकड़े खंगालने के बाद शिवराम ने दिनेश को बताया कि BSE 500 इंडेक्स की 447 ऐसी कंपनियां हैं जिनमें म्यूचुअल फंड्स की ओर से बीती 1 या 2 तिमाही में हिस्सेदारी बढ़ाई गई है, जबकि 48 ऐसी कंपनियां हैं जिनसे म्यूचुअल फंड्स दूर रहे हैं या अपनी हिस्सेदारी घटा रहे हैं. चार कंपनियों में उनकी हिस्सेदारी स्थिर है और एक कंपनी है IRCON International जहां म्यूचुअल फंड्स ने फ्रेश एंट्री ली है. इन 447 कंपनियों में जिन 17 कंपनियों में म्यूचुअल फंड्स का भरोसा सबसे ज्यादा बढ़ा है. इनमें रेन इंडस्ट्रीज, कैप्लिन प्वाइंट, गोदरेज इंडस्ट्रीज और आईडीएफसी लिमिटेड इत्यादि जैसे नाम शामिल हैं, जबकि अदानी विल्मर, पीएनबी हाउसिंग, एमएमटीसी, इंडियाबुल्स हाउसिंग फाइनेंस, एचडीएफसी एएमसी और पीरामल इंटरप्राइजेज इत्यादि जैसी 15 कंपनियां हैं जिनमें सबसे ज्यादा हिस्सा घटाया गया है.
पर दिनेश के लिए अब भी काफी दुविधा की स्थिति थी, कि इस पूरी 447 या 17 शेयरों की सूची में से 7-8 बेहतर शेयरों का चुनाव कैसे किया जाए. तो इस दुविधा को दूर करने के लिए Mantri FinMart के फाउंडर अरुण मंत्री कहते हैं कि भारतीय बाजार आजकल ज्यादातर रिटेल निवेशकों और उसके बाद घरेलू संस्थागत निवेशकों के निवेश ट्रेंड से प्रभावित होते हैं, इसलिए फंड्स के बजाए शेयरों के वैल्युएशन पर फोकस करें और लंबी अवधि के लिए निवेश करें. ये भी देखना चाहिए कि कंपनी किस सेक्टर का हिस्सा है. म्यूचुअल फंड्स की ओर से हिस्सा बढ़ाने वाले कंपनियों की सूची में से IRFC, गोदरेज इंडस्ट्रीज, फेडरल बैंक और रेन इंडस्ट्रीज निवेश के नजरिए से बेहतर हैं. म्यूचुअल फंड्स के हिस्सा घटाने के बावजूद HDFC AMC में निवेश की सलाह है. 1-2 साल के नजरिए से IRFC में 110 रुपए, गोदरेज इंडस्ट्रीज में 780 रुपए, फेडरल बैंक में 220 रुपए, रेन इंडस्ट्रीज में 210 रुपए और HDFC AMC में 3,350 रुपए का लक्ष्य संभव है.
तो भले ही विदेशी संस्थागत निवेशकों की ओर से अगस्त के बाद से बाजार में लगातार बिकवाली हो रही है. पर घरेलू म्यूचुअल फंड्स की ओर से जारी खरीदारी से बाजार में स्थिरता बनाने में मदद की है. ऐसे में जिन कंपनियों में म्यूचुअल फंड्स की ओर से हिस्सेदारी बढ़ाई जा रही है या नया निवेश हो रहा है और जिनके वैल्युएशन अच्छे हैं. उनमें से चुनिंदा कंपनियों के शेयरों में निवेश कर 1-2 साल के लिए पोर्टफोलियो तैयार किया जा सकता है.
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