आपके इन्वेस्टमेंट और प्लानिंग में म्यूचुअल फंड का तोड़ कोई और विकल्प नहीं. निवेश को ट्रैक करना आसान है और शेयर बाजार जैसे रोज-रोज ट्रैक करने की जरूरत भी नहीं. लेकिन ये म्यूचुअल फंड्स कमाई कैसे करते हैं? इनमें निवेश पर जो एक्सपेंस रेश्यो लगता है वो क्या है और उसका आपके इस निवेश से होने वाली कमाई पर कितना असर पड़ता है? एडवाइजर्स कहते हैं कि फंड में निवेश से पहले उसका एक्सपेंस रेश्यो (Expense Ratio) जरूर देखें क्योंकि यही तय करेगा कि आपके रिटर्न में से कितना हिस्सा फंड मैनेज करने वाली कंपनी की जेब में जाएगा.
इस एक्पेंस रेश्यो के खर्च को समझने के लिए जरूरी है कि पहले जानें कि म्यूचुअल फंड किस तरह की सर्विस देते हैं.
म्यूचुअल फंड्स अलग-अलग ऐसेट क्लास में निवेश करने का आसान तरीका है. इक्विटी, डेट या गोल्ड इनमें से किसी भी कैटेगरी में निवेश करना हो म्यूचुअल फंड के जरिए किया जा सकता है. एक्टिव फंड होने पर फंड मैनेजर निवेश के फैसले लेता है. ये फंड मैनेजर तय करता है कि फंड की स्ट्रैटेजी और केटेगरी के मुताबिक किस शेयर या बॉन्ड, कमर्शियल पेपर में कितना निवेश किया जाए ताकि निवेशकों को मोटा रिटर्न मिले. वहीं पैसिव फंड में किसी इंडेक्स के आधार पर निवेश होता है. यानी इंडेक्स में शामिल शेयरों के मुताबिक ही आपका निवेश होगा. आपको सिर्फ एसेट मैनेजमेंट कंपनी या फंड हाउस को निवेश की रकम देनी होती है और बाकी सारा काम कंपनी आपके लिए करती है.
इसी सुविधा और मेंटेनेंस के लिए जो रकम आपसे चार्ज की जाती है उसे एक्सपेंस रेश्यो (Expense Ratio) कहा जाता है. अगर फंड के अंतर्गत कम ऐसेट है तो उस फंड का एक्सपेंस रेश्यो ज्यादा हो सकता है क्योंकि कम निवेशकों से ही फंड को खर्च निकालने हैं. वहीं एक्टिव फंड में एक्सपर्ट्स की भूमिका ज्यादा होने से इनमें भी एक्सपेंस रेश्यो ज्यादा होता है. इसी कम एक्सपेंस रेश्यो के लिए कई छोटे निवेशक पैसिव यानी इंडेक्स फंड चुनते हैं.
फंड के प्रदर्शन से एक्सपेंस रेश्यो का सीधा संबंध नहीं है. लेकिन फंड के रिटर्न से जो आपकी कमाई हो रही है उसमें से फंड हाउस ये खर्च आपसे वसूलेगा. उदाहरण के तौर पर, अगर किसी फंड का एक्सपेंस रेश्यो 2 फीसदी है तो अगर आपको 10,000 रुपये का मुनाफा हुआ तो इसपर 200 रुपये आपको बतौर फीस देना होगा. जितना ज्यादा एक्सपेंस रेश्यो उतना आपके रिटर्न से फंड हाउस को चार्ज के तौर पर देना होगा. एक्सपेंस रेश्यो जितना कम होगा आपकी जेब में उतना ही ज्यादा रिटर्न वापस मिलेगा.
Expense Ratio: अगर फंड ने आपको 10 फीसदी का रिटर्न दिया है और एक्सपेंस रेश्यो 2 फीसदी है तो आपकी कमाई हुई सिर्फ 8 फीसदी. फंड का प्रदर्शन देखते हुए उसका एक्सपेंस रेश्यो हटाकर बेंचमार्क से तुलना करनी सही होती है.
फंड हाउस आपसे कई चार्ज वसूलता है. इसमें एक्सपर्ट या फंड मैनेजर की मैनेजमेंट फीस, कस्टमर सपोर्ट, सर्विस जैसे एजमिनिस्ट्रेटिव चार्ज शामिल होते हैं. साथ ही अगर आप रेगुलर फंड चुनते हैं तो इनमें एजेंट, ब्रोकर, डिस्ट्रिब्यूटर या इंटरमीडियरी के कमीशन भी फंड हाउस आपसे वसूलता है. डायरेक्ट फंड में ये चार्ज नहीं होते.
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पैसिव फंड्स में मैनेजमेंट का खर्च कम ना होने की वजह से ये ज्यादा किफायती होते हैं. हालांकि एक्सपर्ट्स मानते हैं कि सिर्फ एक्सपेंस रेश्यो (Expense Ratio) कोई फंड चुनने का आधार नहीं हो सकता. अगर फंड बेंचमार्क या उसी कैटेगरी के अन्य फंड्स से ज्यादा रिटर्न दे रहा है तो उसमें से एक्सपेंस रेश्यो हटाकर देखें क्या अब भी फंड का प्रदर्शन बेंचमार्क से बेहतर है या नहीं.
(Disclaimer: निवेश से पहले अपने सलाहकार या फाइनेंशियल एडवाइजर से सलाह लें.)
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