आने वाले दिनों में अगर कोई राज्य सरकार मुफ्त बिजली को बंद करके बिजली के बिल को बढ़ाने लगे, या पेट्रोल-डीजल पर वैट बढ़ा दे, या फिर शराब पर ज्यादा टैक्स वसूलना शुरू कर दे, तो चौंकिएगा नहीं. क्योंकि कई राज्य सरकारों के हालात ऐसे हो चुके हैं कि उन्हें खर्च चलाने के लिए भारी कर्ज उठाना पड़ रहा है. और कर्ज उठाने की भी एक सीमा है. जैसे ही वह सीमा खत्म होगी, तो राज्य सरकारों को अपने यहां या तो फ्री सुविधाएं बंद करनी पड़ेंगी, या फिर टैक्स बढ़ाकर कमाई को बढ़ाना पड़ेगा.
सोमवार को संसद में राज्यों के ऊपर कर्ज को लेकर पूछे गए एक सवाल के जवाब में केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने सभी राज्यों के कर्ज के आंकड़े सदन में रखे. आंकड़ों से पता चलता है देश के 6 राज्य ऐसे हैं जिनपर इस साल मार्च तक कुल कर्ज 5 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा है. इन राज्यों में पहला स्थान तमिलनाडु का है, मार्च 2023 के अंत तक तमिलनाडु पर कुल कर्ज 7.54 लाख करोड़ रुपए दर्ज किया गया है, तमिलनाडु के बाद 7.10 लाख करोड़ रुपए के कर्ज के साथ उत्तर प्रदेश दूसरे और 6.80 लाख करोड़ रुपए के कर्ज के साथ महाराष्ट्र तीसरे स्थान पर है. इनके अलावा पश्चिम बंगाल पर 6.08 लाख करोड़, राजस्थान पर 5.37 लाख करोड़ और कर्नाटक पर 5.35 लाख करोड़ रुपए का कर्ज है.
आंकड़ों के मुताबिक वित्त वर्ष 2022-23 के दौरान कुछेक को छोड़ अधिकतर राज्यों के कर्ज में डबल डिजिट ग्रोथ देखने को मिली है. वित्त वर्ष 2022-23 के दौरान दिल्ली के कुल आउटस्टैंडिंग कर्ज में 33 फीसद की बढ़ोतरी दर्ज की गई है. दिल्ली पर कुल आउटस्टैंडिंग कर्ज बढ़कर 21959 करोड़ रुपए हो गया है, जो वित्तवर्ष 2018-19 के दौरान सिर्फ 3406 करोड़ रुपए था. इनके अलावा राजस्थान, असम, मध्य प्रदेश और त्रिपुरा के कर्ज में भी 15 फीसद से ज्यादा की बढ़ोतरी हुई है.
देशभर में सिर्फ ओडिशा एकमात्र राज्य है जो अपने कर्ज के बोझ को लगातार घटा रहा है. वित्तवर्ष 2020-21 के दौरान ओडिशा के आउटस्टैंडिंग कर्ज में 1.8 फीसद गिरावट आई थी, जो 2021-22 में घटकर 8.4 फीसद रही और 2022-23 के दौरान उसमें 12 फीसद की बड़ी गिरावट देखने को मिली है. ओडिशा का आउटस्टैंडिंग कर्ज घटकर 1.13 लाख करोड़ रुपए रह गया है जो वित्तवर्ष 2019-20 के दौरान 1.43 लाख करोड़ रुपए हुआ करता था.
राज्यों पर बढ़ते कर्ज को देखते हुए अब सरकारी बैंकों ने भी उन्हें कर्ज कम कर दिया है. वित्त मंत्रालय ने संसद में जो आंकड़े रखे हैं उनके मुताबिक वित्तवर्ष 2022-23 के दौरान राज्यों को सरकारी बैंकों की तरफ से दिए गए कर्ज में 16 फीसद से ज्यादा की गिरावट आई है. वित्तवर्ष 2021-22 के दौरान राष्ट्रीय सरकारी बैंकों की तरफ से राज्यों के निगमों और उनकी PSUs को 4.93 लाख करोड़ रुपए कर्ज किया गया था, और वित्तवर्ष 2022-23 के दौरान यह आंकड़ा घटकर 4.12 लाख करोड़ रुपए रह गया. राज्य सरकारों पर लगातार बढ़ते कर्ज के बोझ को देखते हुए बैंकों ने उन्हें कर्ज कम किया है और यही हाल रहा तो बैंक कर्जों में और कटौती करेंगे जिससे राज्यों को कामकाज चलाने में दिक्कत हो सकती है और उन्हें कमाई बढ़ाने पर जोर देना होगा, यानी राज्यों में टैक्स बढ़ सकते हैं.
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