नौकरी छूट जाने के बाद गुरुग्राम के गगन ने रेस्टोरेंट शुरू किया. इसके लिए घर गिरवी रखकर बैंक से 50 लाख रुपए का लोन लिया. अच्छा खास काम चल रहा था. एक दिन अचानक वो इस दुनिया से विदा हो गए. ईएमआई जमा न होने पर बैंक ने घर की नीलामी का नोटिस जारी कर दिया. संकट की इस घड़ी में परिवार को घऱ खाली करना पड़ा.. अगर गगन ने क्रेडिट इंश्योरेंस लिया होता तो ये नौबत नहीं आती. क्या होता है क्रेडिट इंश्योरेंस, कैसे काम करता है, आइए समझते हैं….
जब आप घर खरीदने या कारोबार के लिए लोन लेते हैं तो बैंक इसके साथ एक बीमा पॉलिसी खरीदने पर जोर देता है. इस पॉलिसी को खास तरीके से डिजायन किया गया है जिसका कवर लोन की राशि के बराबर होता है. कर्ज चुकता होने पर बीमा कवर भी घटता रहता है.. एक तरह से यह जीवन बीमा पॉलिसी ही होती है लेकिन बैंक के लोन अकाउंट से जुड़ी रहती है.. क्रेडिट इंश्योरेंस कई प्रकार के होते हैं. इनमें लाइफ क्रेडिट इंश्योरेंस सबसे ज्यादा लोकप्रिय है. इसके अलावा डिसएबिलिटी, प्रॉपर्टी और क्रेडिट रिसिएबल इंश्योरेंस शामिल हैं. रिसिएबल इंश्योरेंस का मतलब है कि अगर किसी व्यक्ति या फर्म का ग्राहक से पेमेंट फंस जाता है तो बीमा से भरपाई हो जाएगी.
कैसे काम करता है?
क्रेडिट इंश्योरेंस कैसे काम करता है इसके लिए गगन का ही उदाहरण लेते हैं. उन्होंने बिजनेस के लिए 50 लाख रुपए का लोन लिया था. अगर वो क्रेडिट इंश्योरेंस लेते तो ईएमआई चुकाने के साथ ही बीमा कवर भी कम होता चला जाता. मान लीजिए उनका 40 लाख रुपए का लोन बकाया था. उनकी मौत के बाद बैंक बीमा के जरिए रकम को कवर कर लेता. ऐसे में गगन के परिवार को घर खाली नहीं करना पड़ता. इसी तरह अगर कोई व्यक्ति बीमारी या दुर्घटना में विकलांग हो जाता है तो बैंक क्रेडिट इंश्योरेंस के जरिए लोन की भरपाई हो जाती है.
कैसे तय होता है प्रीमियम?
क्रेडिट इंश्योरेंस का प्रीमियम लोन की रकम, कर्जदार की आयु, अगर कोई बीमारी है तो उसकी लोडिंग के आधार पर तय होता है. आमतौर पर क्रेडिट इंश्योरेंस का सिंगल प्रीमियम होता है जो लोन की राशि में ही जुड़ जाता है. हालांकि यह जरूरी नहीं है कि आप सिंगल प्रीमियम का ऑप्शन चुनें. इसके लिए छमाही या सालाना प्रीमियम का विकल्प भी चुन सकते हैं. ऐसा भी कोई नियम नहीं कि आप क्रेडिट लाइफ पॉलिसी बैंक से ही लें. लोन की राशि के बराबर रकम का टर्म प्लान लेकर भी बैंक में जमा करा सकते हैं.
क्यों है जरूरी?
अगर आप स्वस्थ हैं और नौकरी या बिजनेस अच्छे चल रहे हैं तो लोन की ईएमआई आसानी से चुका देंगे. अगर किसी दुर्घटना या बीमारी में विकलांग हो जाते हैं लोन की ईएमआई रुक सकती है. ऐसे में लोन की लायबिलिटी परिवार पर न आए इसके लिए क्रेडिट इंश्योरेंस जरूरी है. इस बीमा में होमलोन, कार लोन और बिजनेस लोन की देनदारी कवर हो जाती है. अगर परिवार में कमाने वाला व्यक्ति अकेला है तो लोन की देनदारी कवर करने के लिए बीमा लेना जरूरी है.
क्या कहते हैं एक्सपर्ट
टैक्स एंड इंवेस्टमेंट एक्सपर्ट बलवंत जैन कहते हैं परिवार की आर्थिक सुरक्षा के लिए अपनी सालाना से 15 गुना तक का कवर टर्म इंश्योरेंस प्लान खरीदें. इस पॉलिसी को अपने लोन से अलग रखें. आप जो लोन ले रहे हैं उसकी राशि के बराबर अलग से टर्म प्लान खऱीदें. अगर आप लोन को कवर करने के लिए अलग से बीमा नहीं लेते हैं तो आपके न रहने पर परिवार के लक्ष्य पूरे नहीं हो पाएंगे. होमलोन 10 से 20 साल की लंबी अवधि का होता है. इसलिए बीमा प्रीमियम सालाना आधार पर चुनें. अगर आप तय अवधि से पहले लोन चुका देते हैं तो टर्म प्लान का प्रीमियम देना बंद कर दें. इससे आप प्रीमियम के रूप में बड़ी बचत कर सकते हैं…
क्रेडिट इंश्योरेंस का मूल मकसद गगन जैसे लोगों के परिवारों की वित्तीय सुरक्षा करना है. यह पॉलिसी बैंक के लिए भी उपयोगी रहती है. कर्जदार के न रहने पर बैंक का पैसा नहीं डूबता. साथ ही वसूली के लिए ज्यादा कानूनी प्रक्रिया पूरी नहीं करनी पड़ती.
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