घर खरीदने के लिए होम लोन लेते लेते वक्त हमारा सारा ध्यान EMI पर होता है, हिडेन चार्जेस पर हमारा ध्यान ही नहीं जाता है. लोन के अप्लाई करते समय इनकी जानकारी होती है, कुछ बैंक इन चार्जेस को अलग-अलग लेते हैं जबकि बाकी बैंक कई चार्जेस को क्लब करके एकसाथ लेते हैं. लोन के टाइम इनके बारे में पता चलने पर जेब पर बोझ बढ़ जाता है. आपको ऐसी दिक्कत न हो इसके लिए होम लोन पर लगने वाले अलग-अलग चार्ज के बारे में जान लीजिए. शुरुआत करते हैं प्रोसेसिंग फीस से.
लोन देने से पहले बैंक आपके लोन एप्लीकेशन को कई पैरामीटर पर परखते यानी Evaluate करते हैं. इसमें KYC वेरिफिकेशन, कमाई एवं खर्च जैसे फाइनेंशियस एसेसमेंट, जॉब वेरिफिकेशन, घर और ऑफिस एड्रेस का वेरिफिकेशन, क्रेडिट हिस्ट्री चेक करना शामिल हैं. इसमें बैंक का मैनपावर और रिसोर्स लगते हैं. बैंक प्रोसेसिंग फीस के जरिए इस प्रक्रिया में आने वाला खर्च को वसूलते हैं. प्रोसेसिंग फीस वन टाइम और नॉन-रिफंडेबल चार्ज है. यह लोन अमाउंट का 0.25 फीसदी से 2 फीसदी तक हो सकता है. कुछ लेंडर्स यानी कर्ज देने वाले संस्थान प्रतिशत के बजाए एक फिक्स फीस चार्ज करते हैं.
उदाहरण के लिए, ICICI बैंक की वेबसाइट के मुताबिक, उसकी लोन प्रोसेसिंग फीस लोन अमाउंट का 0.50 से 2.00 फीसदी या 3000 रुपए में से जो ज्यादा हो वो होगी. इसी तरह, SBI की प्रोसेसिंग फीस लोन की रकम का 0.35 फीसदी, कम से कम 2000 रुपए और ज्यादा से ज्यादा 10 हजार रुपए है. वहीं, LIC हाउसिंग फाइनेंस 1 करोड़ रुपए तक के होम लोन पर लोन अमाउंट का 0.25 फीसदी अधिकतम 15 हजार रुपए और एक करोड़ रुपए से ऊपर और 2 करोड़ रुपए तक के लोन पर 20,000 प्रोसेसिंग फीस लेती है. प्रोसेसिंग फीस के ऊपर जीएसटी भी है…
होम लोन में लीगल चार्ज और वैलुएशन फीस देनी होती है… लीगल फीस में प्रॉपर्टी के दस्तावेजों की कानूनी जांच में आने वाला खर्च कवर होता है… इससे पता चलता है कि प्रॉपर्टी किसी कानूनी झमेले में नहीं फंसी है… बैंक के लीगल चार्ज अलग-अलग होते हैं… लीगल फीस कितनी होगी यह लीगल वेरिफिकेशन प्रोसेस में आने वाली complexity यानी जटिलताओं पर निर्भर करती है.
जिस प्रॉपर्टी के लिए होम लोन लिया जा रहा है उसकी मार्केट वैल्यू और फिजिकल हेल्थ यानी मजबूती जांचने के लिए बैंक तकनीकी विशेषज्ञों की मदद लेते हैं. ये एक्सपर्ट लोकल अथॉरिटी की मंजूरी, ले-आउट अप्रूवल, कंस्ट्रक्शन नियमों का पालन जैसे कई मोर्चों पर प्रॉपर्टी की जांच-परख करते हैं. बैंक यह पता करने के लिए ये चार्ज लेते हैं कि आपने जितना लोन मांगा है प्रॉपर्टी की कीमत उसके हिसाब से है या नहीं.
होम लोन के लिए आपको बैंक या NBFC से इंश्योरेंस जैसे होम लोन इंश्योरेंस या मॉर्गेज प्रोटेक्शन इंश्योरेंस लेना पड़ सकता है. ताकि किसी तरह की अनहोनी होने पर बैंक की पूंजी डूबे नहीं. आमतौर पर इंश्योरेंस के प्रीमियम को आपके लोन की रकम में जोड़ दिया जाता है. ऐसे में जब तक लोन चलेगा आपको प्रीमियम पर भी ब्याज चुकाना होगा. यह एक अतिरिक्त चार्ज है जिस पर आपको गौर करना चाहिए.
होम लोन मिलने के बाद अगर घर का कब्जा मिलने में देरी होती है तो बैंक प्री-ईएमआई चार्ज करते हैं. प्री-EMI में आपसे केवल ब्याज वसूला जाता है. ये ब्याज तब तक वसूला जाता है जब तक कि मकान का पजेशन यानी कब्जा नहीं मिल जाता है. कब्जा मिलने के बाद ही EMI चालू होती है. EMI में ब्याज के साथ प्रिंसिपल अमाउंट शामिल भी होता है.
हाउसिंग लोन मिलने के बाद भी चार्ज का सिलसिला जारी रहता है. अगर होम लोन की EMI चुकाने में आपसे चूक होती है तो लेट फीस या पेनाल्टी देनी पड़ती है. जो हर बैंक में अलग-अलग होती है. ये पेनाल्टी आमतौर पर बकाया रकम का 1 से 2 फीसदी तक होती है.
घर खरीदने के वक्त आपको स्टाम्प ड्यूटी और रजिस्ट्रेशन चार्ज चुकाना होता है. ये फीस देशभर में अलग-अलग राज्य में अलग-अलग होती है. प्रॉपर्टी अपने नाम पर कराने के लिए ये कॉस्ट आपको चुकानी होती है. इसमें मोटी रकम खर्च होती है. आमतौर पर ये चार्ज होम लोन में कवर नहीं होते हैं. यानी इसका खर्च आपको जेब से उठाना पड़ता है.
जब भी आप अपने ड्रीम होम के लिए होम लोन लें तो ध्यान रखें लोन एक, चार्ज अनेक. कई चार्जेस पर आपको जीएसटी भी चुकानी पड़ती है. लोन लेने से पहले कई बैंकों से बात करें और उनके चार्जेस जानें. एक बैंक से दूसरे में लोन ट्रांसफर कराने पर भी ये चार्ज चुकाने पड़ सकते हैं. इसलिए चार्जेस पर तसल्ली से बात करें. बैंकों से मोल-भाव करने पर प्रोसेसिंग फीस और इंटरेस्ट रेट में कुछ छूट भी मिल सकती है.
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