उच्च शिक्षा के लिए छात्रों का एजुकेशन लोन लेना आसान हो सकता है. दरअसल बैंकों ने भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के सामने पहले लिए गए एजुकेशन लोन को न चुका पाने पर उसे स्टैंडर्ड कैटेगरी में डालने और रीपेमेंट की समय सीमा बढ़ाने का प्रस्ताव रखा है. इससे उन छात्रों को फायदा मिलेगा जो उच्च अध्ययन से पहले प्रारंभिक डिग्री के बाद कुछ कार्य अनुभव हासिल करना चाहते हैं. अभी तक अगर कोई उधारकर्ता मौजूदा ऋण को आंशिक रूप से चुकाता है, तो इसे रीस्ट्रक्चर लोन के रूप में देखा जाता है. नतीजतन नया लोन लेने वाले कर्जदार के लिए ब्याज दरें ज्यादा हो जाती हैं.
दूसरे लोन के साथ पुराने लोन रीपेमेंट की अवधि जोड़ने की मांग
बैंकों ने सितंबर में आरबीआई को प्रस्ताव भेजा था और कहा कि ऐसे मामलों में पहले लिए गए एजुकेशन लोन के रीपेमेंट या स्थगन अवधि को दूसरे लोन के रीपेमेंट अवधि के साथ जोड़े जाने की अनुमति दी जानी चाहिए. एक्सपर्ट का कहना है कि अगर नियामक इस प्रस्ताव को स्वीकार करता है, तो मौजूदा ऋण को रीस्ट्रक्चर के रूप में नहीं माना जाएगा. इससे खाता एक स्टैंडर्ड संपत्ति बना रहेगा. क्योंकि किसी खाते को रीस्ट्रक्चर कैटेगरी में डालने से बैंक ऐसे लोन देने के लिए अधिक प्रावधान करते हैं. साथ ही उधारकर्ता की क्रेडिट रेटिंग पर भी प्रभाव पड़ता है.
क्या कहते हैं आंकड़े?
आरबीआई के आंकड़ों के अनुसार साल 2022-23 में शिक्षा क्षेत्र में बैंक ऋण बकाया साल-दर-साल 17% बढ़कर 96,847 करोड़ रुपए हो गया है. रेटिंग एजेंसी क्रिसिल की एक रिपोर्ट के मुताबिक शिक्षा ऋण के लिए पूर्व भुगतान दर औसतन लोन दिए जाने के चार-छह साल के अंदर ज्यादा होती है और ये रीपेमेंट छात्रों के रोजगार पाने के बाद उनके वेतन से आती है. रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि रोजगार दर में लंबे समय तक गिरावट और नौकरी जाने के कारण ऋण पोर्टफोलियो की पूरी संरचना बदल जाती है.