कोरोना को धीरे-धीरे हराने के बाद अब म्यूकर- माइकोसिस (Mucor-mycosis) को भी भारत मात दे रहा है. सरकार हर संभव प्रयास कर रही है कि इसको जल्द से जल्द नियंत्रित किया जाए. स्वास्थ्य विशेषज्ञों के अनुसार ये एक एक तरह की ‘फंगस’ या ‘फफूंद’ (Mucor-mycosis) होती है, जो प्राय: उन लोगों को होती है, जिनकी कोरोना से इम्यूनिटी कमजोर हो जाती है या जो किसी स्वास्थ्य समस्या के कारण दवाइयां ले रहे हैं और इन दवाइयों की वजह से उनकी इम्यूनिटी या शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम है.
नीति आयोग के सदस्य (स्वास्थ्य) डॉ. वी.के. पॉल के अनुसार, ये इन्फेक्शन ‘म्यूकर’ नाम के फंगस की वजह से होता है और इसलिए हम इसे ‘म्यूकर- माइकोसिस’ कहते हैं. डॉ. पॉल बताते हैं, “ये बहुत हद तक डायबिटीज के मरीजों में पाया जाता है, अगर किसी को डायबिटीज की बीमारी नहीं है तो बहुत कम चांस है कि इसका सामना करना पड़े. यह एक क्यूरेबल डिजीज है.
आपको बता दें, कुछ राज्यों में म्यूकर- माइकोसिस के मामले बढ़ने से एम्फोटेरिसिन-बी की मांग में अचानक बढ़ोतरी देखी गई है. इस दवा को चिकित्सक म्यूकर- माइकोसिस से पीड़ित मरीजों के लिए सक्रियता से तय कर रहे हैं. म्यूकर- माइकोसिस को कोविड के बाद होने वाली जटिलता के रूप में देखा जा रहा है.
एम्फोटेरिसिन-बी के उत्पादन बढ़ाने व आयात और समान वितरण सुनिश्चित करने के लिए के सरकार ने कई उपाए किए हैं. अब तक सरकार ने राज्यों व केंद्रशासित प्रदेशों और केंद्रीय स्वास्थ्य संस्थानों में मरीजों के लिए एम्फोटेरिसिन-बी की कुल 6.67 लाख से अधिक शीशियां जुटाने में कामयाब हुई है. इसके अलावा एम्फोटेरिसिन डीऑक्सीकोलेट और पॉसकोनाजोल जैसी अन्य दवाएं इस बीमारी के इलाज के लिए इस्तेमाल की जा रही हैं.
औषध विभाग (डीओपी), केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (सीडीएससीओ) के इनपुट के साथ घरेलू विनिर्माण और आयात के माध्यम से म्यूकर- माइकोसिस के इलाज के लिए दवाओं की उपलब्धता पर लगातार नजर रखे हुए है. मई, 2021 की शुरुआत से निर्माताओं से उत्पादन, भंडार, आपूर्ति व खरीद आदेशों का विवरण प्राप्त किया गया था और आपूर्ति व मांग के बीच के अंतर को दूर करने के लिए उनके सहयोग की मांग की गई थी.
भंडार की स्थिति का आकलन करने के लिए 10 मई, 2021 को औषध विभाग, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय (एमओएचएफडब्ल्यू), केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (सीडीएससीओ) और स्वास्थ्य सेवा महानिदेशालय (डीजीएचएस) की एक अंतर-विभागीय बैठक आयोजित की गई थी. इस बैठक में यह तय किया गया कि राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों के बीच सीमित भंडार का आवंटन किया जाएगा , जिससे कि सभी राज्यों को उचित पर्याप्त दवाई मिल सके. यह प्रक्रिया तब तक चलेगी, जब तक कि मांग और आपूर्ति के बीच के अंतर को खत्म नहीं कर लिया जाता.
सरकार द्वारा उठाए गए विभिन्न कदमों में से कुछ प्रमुख कदम निम्नानुसार हैं
देश में ही दवा का उत्पादन बढ़ाने के लिए, सरकार कच्चे माल से संबंधित निर्माताओं के मुद्दों का समाधान करने के लिए लगातार प्रयास कर रही है. औषध विभाग और ड्रग्स कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया (डीसीजीआई) ने निर्माताओं की पहचान, वैकल्पिक दवाओं और नई विनिर्माण सुविधाओं के शीघ्र अनुमोदन के लिए उद्योग के साथ समन्वय किया है. सरकार द्वारा विनिर्माण कंपनियों से संपर्क किया गया और उन्हें उत्पादन बढ़ाने की जरूरत के बारे में बताया गया.
मौजूदा निर्माताओं से लिपोसोमल एम्फोटेरिसिन-बी का उत्पादन बढ़ाने के लिए भी कहा गया है। बीमारी के इलाज के लिए वैकल्पिक औषधियों/प्रारूपों के उत्पादन को बढ़ाने के लिए भी विनिर्माताओं के साथ सक्रियता से प्रयास किए जा रहे हैं। इसके साथ ही निर्माताओं और आयातकों की लाइसेंस और कच्चे माल की उपलब्धता और आयात लाइसेंस से संबंधित मुद्दों का तेजी से समाधान किया जा रहा है.
इस समय देश में लिपोसोमल एम्फोटेरिसिन-बी के मौजूदा पांच उत्पादक हैं, जिसमें भारत सीरम और वैक्सीन लिमिटेड, सिप्ला, सन फार्मा, बीडीआर फार्मास्यूटिकल्स और लाइफकेयर इनोवेशन शामिल हैं. जून महीने के लिए इन कंपनियों की अपेक्षित आपूर्ति लगभग 2.63 लाख शीशियां हैं. लिपोसोमल फॉर्मूलेशन के निर्माण में एक जटिल प्रक्रिया शामिल होती है और इसका उत्पादन केवल उन्नत तकनीक वाले उद्योग ही कर सकते हैं.
डीसीजीआई (DCGI) ने दवा निर्माताओं के संघ से परामर्श के बाद छह और कंपनियों को एम्फोटेरिसिन बी लिपोसोमल इंजेक्शन के निर्माण/विपणन की अनुमति जारी की है. इनमें एमक्योर, गुफिक, एलेम्बिक, लाइका, नैटको लिमिटेड और इंटास फार्मा हैं. जून महीने के लिए इन छह नए निर्माताओं की अपेक्षित आपूर्ति लगभग 1.13 लाख शीशियां हैं.
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