केंद्रीय औषधि प्राधिकरण के विशेषज्ञों की एक समिति ने भारत बायोटेक के स्वदेश विकसित कोरोना वायरस टीके को ‘क्लीनिकल परीक्षण प्रारूप’ (Clinical Trial) के तहत लगाये जाने की शर्त हटाते हुए इसके आपात उपयोग की अनुमति देने की सिफारिश की है. आधिकारिक सूत्रों ने यह जानकारी दी.
क्लिनिकल ट्रायल टैग हटने का क्या मतलब?
यह सिफारिश भारत के औषधि महानियंत्रक (DCGI) के पास विचार करने के लिए भेजी गई है. यदि टीके को ‘क्लीनिकल परीक्षण’ इस्तेमाल के दायरे से बाहर कर दिया जाता है तो लाभार्थियों को इसकी खुराक लेने के लिए राजीनामे पर हस्ताक्षर नहीं करना होगा.
साथ ही क्लिनिकल ट्रायल (Clinical Trial) का टैग हटने का मतलब होता है कि वैक्सीन की कार्य क्षमता पर भरोसा बढ़ा है. इसी वजह से इसे लगाने के लिए पालन किए जाने वाले नियमों में थोड़ी ढील हो सकती है. वहीं इसके इस्तेमाल को और राज्यों में तेजी से विस्तार किया जा सकेगा.
क्लिनिकल ट्रायल हटने से जिन वैक्सीन लगाई गई है उनसे भारत बायोटेक को ज्यादा फॉलो-अप करने की जरूरत नहीं पड़ेगी. दरअसल अब तक कंपनी को वैक्सीन के किसी दुष्प्रभाव को लेकर अपडेट लेना होता था.
केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (CDSSO)की विषय विशेषज्ञ समिति ने कोवैक्सीन (Covaxin) के तीसरे चरण के परीक्षण के आंकड़ों पर गौर किया, जिसमें टीके की प्रभाव क्षमता 80.6 प्रतिशत प्रदर्शित हुई है. इसके बाद, यह सिफारिश की गई.
कब हटेगा क्लिनिकल ट्रायल?
हैदराबाद स्थित भारत बायोटेक (Bharat Biotech) ने क्लीनिकल परीक्षण (Clinical Trial) प्रारूप की शर्त हटाने पर विचार करने के लिए हाल ही में औषधि नियंत्रक का रुख किया था.
सूत्रों ने बताया कि समिति ने कोवैक्सीन के तीसरे चरण के अंतरिम आंकड़ों की बुधवार को समीक्षा की, जिसके बाद उसने यह सिफारिश की.
गौरतलब है कि औषधि नियामक ने जनहित में कोवैक्सीन (Covaxin) के क्लीनिकल परीक्षण प्रारूप में आपात उपयोग की मंजूरी दी थी.
देश में बढ़ते कोरोना मामलों के बीच ये खबर वैक्सीनेशन के लिए और बेहतर हो सकती है. 11 मार्च की सुबह 8 बजे तक के अपडेट के मुताबिक 10 मार्च को कुल 22,854 नए कोरोना मरीज मिले हैं जो देश में पिछले ढाई महीनों में सबसे ज्यादा है. वहीं वैक्सीनेशन का आंकड़ा 2.56 करोड़ पहुंच गया है जिसमें से 2.10 करोड़ को पहला डोज दिया गया है.
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