जीएम यानी जेनेटिकली मोडिफाइड सरसों का विरोध तथ्यों से परे नजर आ रहा है. जीएम खाद्य तेल के सेहत पर असर का जो तर्क दिया जा रहा है. उसे अगर सही मानें तो अब तक कई भारतीयों की सेहत खराब हो चुकी होती. क्योंकि भारतीय लंबे समय से GM फसलों से तैयार हुए खाद्य तेल का इस्तेमाल कर रहे हैं. अक्टूबर में खत्म हुए ऑयल वर्ष 2021-22 के दौरान देश में 140 लाख टन से ज्यादा खाने का तेल आयात हुआ है. आयत हुए इस खाने के तेल में 41 लाख टन से ज्यादा सोयाबीन का तेल है, और भारत में जिन देशों से सोयाबीन तेल का ज्यादा आयात हो रहा है. उनमें अधिकतर देश GM सोयाबीन का ही उत्पादन करते हैं.
स्थानीय स्तर पर GM सरसों का विरोध
नवंबर 2021 से अक्टूबर 2022 के दौरान भारत में आयात हुए 41.71 लाख टन सोयाबीन तेल में 25 लाख टन से ज्यादा तेल अर्जेनटीना से इंपोर्ट हुआ, 12 लाख टन से ज्यादा ब्राजील से और डेढ़ लाख टन से ज्यादा तेल अमेरिका से आया है. इन तीनों देशों में उत्पादन होने वाला सोयाबीन जेनेटिकली मोडिफाइड है, और उसी से तैयार होने वाला तेल भारत में आयात होता है जो कई वर्षों से हो रहा है, यानी भारत में आयातित GM खाद्य तेल तो मंजूर है पर स्थानीय स्तर पर GM सरसों का विरोध हो रहा है. आयातित GM तेल तो छोड़िए देश में 2002 से GM कपास की खेती हो रही है, और उस GM कपास के बीज से तैयार होने वाले तेल का इस्तेमाल भी लंबे समय से हो रहा है. तेल के बाद जो ऑयल केक बचता है, उसका उपयोग पशु आहार में होता है. उन्हीं पशुओं का दूध भारतीयों के भोजन का मुख्य स्रोत है.
GM फसलों के सेवन से सेहत को नुकसान?
GM फसलों के विरोध में तर्क दिया जाता है कि इनका सेवन सेहत को नुकसान पहुंचाता है, लेकिन लंबे समय से दुनिया के कई देशों में इन फसलों की खपत हो रही है. और इन देशों में अभी तक वैसी कोई स्वास्थ्य संबंधी दिक्कतें देखने को मिली नहीं हैं, जिनका हवाला देकर भारत में GM फसलों का विरोध किया जा रहा है, कपास के मामले में तो GM सीड्स का इस्तेमाल भारत में भी बड़ी सक्सेस स्टोरी है.