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सरकार से क्यों कर्ज लेना चाहती हैं तेल कंपनियां?

देश में IOC, BPCL और HPCL सहित सार्वजनिक क्षेत्र की तीन कंपनियां हैं जो 90% ईंधन की मांग पूरी करती हैं.

  • अमन गुप्ता
  • Last Updated : May 7, 2023, 08:52 IST
Oil.
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सार्वजिनिक क्षेत्र की तेल कंपनियां (OMCs) अपनी वित्तीय जरूरतों को पूरा करने के लिए सरकार से कर्ज मांग रही हैं लेकिन सरकार इसके लिए तैयार नहीं हैं. सरकार चाहती है कि ये कंपनियां कर्ज के बदले उसे इक्विटी दे. लेकिन कंपनियां इस बात राजी नहीं हैं. देश में IOC, BPCL और HPCL सहित सार्वजनिक क्षेत्र की तीन कंपनियां हैं. यही कंपनियां देश 90% ईंधन की मांग पूरी करती हैं.

दरअसल, पिछले साल इन कंपनियों को भारी नुकसान हुआ था. पिछले वित्त वर्ष की पहली छिमाही में उन्हें 27,276 करोड़ रुपए का घाटा हुआ था. इसकी बड़ी वजह कच्चे तेल की कीमतों में बढ़ोतरी थी. रूस के यूक्रेन पर हमला करने के बाद कच्चे तेल की कीमतों में आपूर्ति संबंधी चिंताओं की वजह से कीमतों में उछाल आया. बढ़ते भू-राजनीतिक तनावों से भारत जैसे उभरते देशों की मुद्रा में भी गिरावट आई. भारत अपनी कुल तेल जरूरतों का लगभग 85 फीसदी आयात करता है. वैश्विक बाजार में कच्चे तेल की बढ़ी कीमतों और रुपए में गिरावट के कॉकटेल ने तेल आयात को बहुत महंगा बना दिया.

कैसे हुआ घाटा? इसका मतलब यह है कि तेल कंपनियों को बहुत अधिक कीमतों पर तेल मिल रहा था लेकिन उसी अनुपात में उन्हें कीमतें बढ़ाने की अनुमति नहीं थी. इससे भारी नुकसान हुआ. हालांकि कुछ महीनों के बाद भारतीय तेल कंपनियों को रूस से सस्ता तेल मिलना शुरू हो गया और इसे यूरोपीय देशों में ऊंचे दामों पर बेचना शुरू कर दिया. इसके बाद भारत सरकार ने तेल कंपनियों पर विंडफॉल टैक्स लगा दिया ताकि वे उस सस्ते तेल के निर्यात की बजाय उससे घरेलू बाज़ार में तेल की आपूर्ति करें. हाल के दिनों में विंडफॉल टैक्स को 6,400 रुपए प्रति टन से घटाकर 4,100 रुपए प्रति टन कर दिया गया है. इससे इस सप्ताह OMC’s के शेयरों में भी तेजी आई.

अब क्या है उम्मीद? वैश्विक बाजारों में तेल की कीमतें गिर गई हैं क्योंकि वैश्विक आर्थिक मंदी के बारे में चिंताएं हैं जिससे वैश्विक कच्चे तेल की मांग कम होने की उम्मीद है इसलिए तेल मार्केटिंग कंपनियां फायदे में आ गई हैं. हालांकि उन्हें विकास की गति प्रदान करने के लिए सरकार ने बजट में घोषणा की कि वह सरकारी तेल मार्केटिंग कंपनियों को 30,000 करोड़ रुपए की इक्विटी पूंजी प्रदान करेगी. अब OMCs पैसा तो चाहती हैं लेकिन इक्विटी के रूप में नहीं. वह इसे कर्ज के रूप में मांग रहीं हैं क्योंकि कंपनियों में सरकार की ज्यादा हिस्सेदारी बाज़ार को पसंद नहीं आएगी. बाज़ार कंपनियों में सरकार की कम से कम हिस्सेदारी चाहता है. सरकार इक्विटी डालने पर अड़ी हुई है. इतना ही नहीं OMCs अगर यह दिखा सकें कि रिफाइनरियों को अपग्रेड करने और उत्सर्जन को कम करने के लिए उनके पास कैपेक्स योजना है तब भी ये इक्विटी डाली जाएगी. बता दें सभी 3 OMCs में पहले से ही 50 फीसदी से ज्यादा हिस्सेदारी सरकार के पास है.

क्या है जोखिम? इंडिया रेटिंग्स के मुताबिक सरकारी तेल कंपनियों पर कर्ज पिछले साल पहले ही 40 फीसद बढ़ गया है क्योंकि तेल की ऊंची कीमतों को अंतिम उपभोक्ता तक नहीं पहुंचा पाए. अब कैपेक्स के लिए फंड की जरूरत होती है लेकिन कर्ज का इसकी जगह इस्तेमाल करने से जोखिम पैदा हो जाता है. इस समय वैश्विक तेल की कीमतें अस्थिर हैं और ये कब बढ़ेंगी कुछ नहीं कहा जा सकता. लेकिन कंपनियां इतनी आसानी से ऊंची लागत को पास नहीं कर सकतीं और इस वजह से उनका राजस्व अस्थिर रह सकता है. यदि ब्याज पर खर्च बढ़ जाता है तो यह कंपनी की स्थिरता के लिए जोखिम पैदा कर सकता है. इसलिए यह भी एक कारण हो सकता है कि सरकार OMCs में कर्ज का स्तर नहीं बढ़ाना चाहती है.

Published - May 7, 2023, 08:52 IST

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