गेहूं अब मोटापा, डायबिटीज और हार्ट अटैक जैसे खतरों को कम करने में भी मददगार साबित होगा. दरअसल, लुधियाना स्थित पंजाब कृषि विश्वविद्यालय (PAU) ने PBW RS1 नामक गेहूं की एक नई किस्म तैयार की है जिसमें एमाइलोज स्टार्च की मात्रा ज्यादा है. यह पदार्थ टाइप-2 डायबिटीज और हृदय रोग का खतरा घटाने के लिए जाना जाता है. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक नए गेहूं में स्टार्च की कुल मात्रा 66-70 फीसद है. हालांकि इसमें रेसिस्टेंट स्टार्च (RS) की मात्रा 30.3 फीसद है, जबकि PBW 550, PBW 725, HD 3086 और PBW 766 जैसे अन्य गेहूं में सिर्फ 7.5-10 फीसद है. RS का काम शरीर में ग्लूकोज लेवल को तेजी से बढ़ने से रोकना है.
विश्वविद्यालय का कहना है कि एमाइलोज स्टार्च और रेसिस्टेंट स्टार्च मिलकर यह सुनिश्चित कर पाएंगे कि शरीर में मौजूद ग्लूकोज धीमी गति के साथ रक्त में घुले. साथ ही इसे पचाने में भी समय ज्यादा लगेगा, जिसकी वजह से ज्यादा देर तक पेट भरा हुआ महसूस होगा. इंडियन एक्सप्रेस में छपी रिपोर्ट में पंजाब कृषि विश्वविद्यालय की प्रिंसिपल व्हीट ब्रीडर अचला शर्मा ने बताया है कि नए गेहूं के आटे से बनने वाली रोटी और बिस्किट में ग्लाइसेमिक इंडेक्स कम पाया गया. इस इंडेक्स से यह पता चलता है कि किसी खाद्य पदार्थ से शुगर लेवल कितना बढ़ता है. कम ग्लाइसेमिक इंडेक्स का मतलब हुआ कि खानपान से जुड़ी बीमारियां, जैसे कि मोटापा और डायबिटीज का खतरा कम रहेगा.
नई किस्म की उपज कम
हालांकि गेहूं की इस नई किस्म की एक बड़ी खामी यह है कि इसकी उपज कम है. PAU के शोध में इसकी औसत उपज 43.18 क्विंटल प्रति हेक्टेयर रही. जबकि पंजाब में गेहूं की औसतन 48 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज होती है, जो कभी-कभी 52-60 के स्तर तक भी पहुंच जाती है. इसपर यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर डॉ. सतबीर सिंह का कहना है कि यह खास किस्म का अनाज है. इसकी गुणवत्ता को ध्यान में रखकर इसे बढ़ावा दिया जाना चाहिए. शोध में पाया गया कि नए गेहूं में कीड़े भी आसानी से नहीं लगते हैं. ऐसे में सही मार्केटिंग करने पर यह किसानों की बासमती धान जितनी कमाई करा सकेगा.