क्या आप जानते हैं वोडाफोन आइडिया, पीरामल फार्मा, इंडिगो, जीएमआर एयरपोर्ट्स, PVR Inox में क्या समानता है?. इन सब कंपनियों ने वित्त वर्ष 2023 में घाटा दर्ज किया है. ऐसा नहीं है कि ये कंपनियां कमाई नहीं कर रहीं यानी इनकी बिक्री नहीं बढ़ रही. तो अगर इन कंपनियों की आय बढ़ रही है या कारोबार विस्तार हो रहा है तो आखिर ऐसा क्या है जो इन कंपनियों के मुनाफे में सेंध लगा रहा है?. आइए समझने की कोशिश करते हैं.
क्यों लेना पड़ता है कर्ज? किसी भी कंपनी को कारोबार चलाने और विस्तार करने के लिए पूंजी की जरूरत होती है. अगर कारोबार से होने वाली कमाई से विस्तार की जरूरतें पूरी हो रही हों तो कंपनियों को कर्ज लेने की जरूरत नहीं पड़ती, लेकिन जो कंपनियां अपनी पूंजी की जरूरतों को खुद पूरा नहीं कर पाती हैं उनको निवेशकों या बैंकों से सहारा लेना पड़ता है यानी कि कर्ज लेना पड़ता है. पर सवाल ये है कि अगर कोई भी कंपनी कर्ज उठाती है तो क्या वो सही है. या निगेटिव के तौर पर देखा जाना चाहिए?
कंपनियों की ब्याज लागत बढ़ी आंकड़े बताते हैं कि वित्त वर्ष 2018 से लेकर वित्त वर्ष 2023 तक निफ्टी500 कंपनियों की ब्याज लागत 1.73 लाख करोड़ रुपए से बढ़कर करीब 3 लाख करोड़ रुपए पर पहुंच गई है. यानी कि पिछले 5 सालों में इन कंपनियों की ब्याज लागत में करीब 73 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है. वित्त वर्ष 2022 की तुलना में भी इन कपनियों का ब्याज खर्च करीब 14 फीसदी बढ़ा है. हालांकि इन आंकड़ों में वित्तीय कंपनियां और बैंक शामिल नहीं हैं..
क्या है अनुमान? वित्त वर्ष 2024 में कॉर्पोरेट्स के ब्याज खर्च में बढ़ोतरी का ट्रेंड जारी रहने का अनुमान है. इंडिया रेटिंग्स की रिपोर्ट के अनुसार वित्त वर्ष 2024 में कॉर्पोरेट्स का ब्याज खर्च 30% बढ़ने का अनुमान है. वित्त वर्ष 2022 की तुलना में कॉर्पोरेट्स की ब्याज लागत 30% बढ़कर वित्त वर्ष 2024 में 3.38 लाख करोड़ रहने का अनुमान है. वित्त वर्ष 2022 में कॉर्पोरेट्स का ब्याज खर्च 2.52 लाख करोड़ रहा था. इस अनुमान में 3,365 गैर वित्तीय कंपनियों के आंकड़े शामिल हैं. दरअसल रेपो रेट बढ़ने से वित्त वर्ष 2023 की दूसरी छमाही से कॉर्पोरेट्स का ब्याज खर्च बढ़ना शुरू हो गया था, क्योंकि RBI ने मई 2022 में रेपो रेट में बढ़ोतरी की शुरआत की थी. फरवरी 2023 तक रेपो रेट 2.5 फीसदी बढ़ाकर 6.5 फीसदी किया गया. हालांकि RBI ने दो बार से रेपो रेट में कोई बदलाव नहीं किया है. दरें स्थिर रखी हैं पर इसके बावजूद इंडिया रेटिंग्स ने वित्त वर्ष 24 में कॉरपोरेट्स का ब्याज खर्च और बढ़ने की आशंका जताई है. क्योंकि बैंकों के MCLR यानी मार्जिनल कॉस्ट ऑफ फंड्स बेस्ड लेंडिंग रेट में बढ़ोतरी जारी रहने की संभावना है.
ब्याज लागत का असर अब अहम सवाल ये है कि ब्याज लागत का कंपनियों के मुनाफे पर क्या असर होता है और इसे निवेशकों को कैसे समझना चाहिए? वैसे तो लगभग सभी कंपनियां अपने बिजनेस के लिए कर्ज लेती हैं. मिसाल के तौर पर देश की सबसे बड़ी कंपनी रिलायंस इंडस्ट्रीज पर भी भारी भरकम कर्ज है पर अच्छे-बुरे कर्ज की परख कैसे की जाए. इसका सबसे आसान तरीका है कंपनियों की सालाना ब्याज लागत और मुनाफे की तुलना करना.
अगर कोई कंपनी सालाना आधार पर घाटा दर्ज कर रही है और ब्याज खर्च का आंकड़ा घाटे से भी अधिक है तो आप समझ सकते हैं कि ब्याज भुगतान कंपनी के मुनाफे को खा रहा है. या अधिक ब्याज खर्च के कारण कंपनी को घाटे का सामना करना पड़ रहा है. उदाहरण के तौर पर GMR Airports ने वित्त वर्ष 2023 में 2,018 करोड़ रुपए का ब्याज अदा किया और कंपनी को 752 करोड़ रुपए का घाटा हुआ था. इसी तरह आदित्य बिड़ला फैशन को 118 करोड़ रुपए का घाटा हुआ, जबकि ब्याज का भुगतान 389 करोड़ रुपए था..
तो अच्छे-बुरे कर्ज की परख कैसे करें? मार्केट एक्सपर्ट अंबरीश बालिगा के मुताबिक निवेशकों को कंपनी के भविष्य के कैशफ्लो देखने चाहिए. अगर ये मुमकिन नहीं है तो ये जरूर देखें कि कंपनी वर्किंग कैपिटल के लिए लोन ले रही है या क्षमता विस्तार के लिए? अगर वर्किंग कैपिटल के लिए लोन लिया गया है तो वो कंपनी की वित्तीय सेहत के लिए ठीक नहीं है. आगे चलकर यह कर्ज मुसीबत बन सकता है. निवेश के लिहाज से वोडाफोन आइडिया से दूर रहें क्योंकि कंपनी अपना कारोबार जारी रखने के लिए कर्ज ले रही है. वहीं इंडिगो में लंबी अवधि का निवेश करें क्योंकि कंपनी अपने कारोबार का विस्तार कर रही है.
निवेश के लिए क्या करें? अगर आप भी अपनी मेहनत की गाढ़ी कमाई किसी कंपनी के शेयरों में लगा रहे हैं, तो आपको यह जरूर देखना चाहिए कि कंपनी की बैलेंस शीट यानी कि बहीखाता कैसा है? आम निवेशकों को सबसे पहले देखना चाहिए कि कंपनी पर कर्ज है या नहीं. अगर है तो इस बात पर गौर करना चाहिए कि ये लोन किस वजह से लिया गया है और कहीं ब्याज लागत मुनाफे में सेंध तो नहीं लगा रही.
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