लगातार दो सालों तक बढ़ने के बाद अब भारत में अत्यंत गरीबी कुछ कम हुई है. विश्व बैंक के ताजा आंकड़ों के मुताबिक वर्ष 2021 के दौरान भारत में अत्यंत गरीबी में रहने वाले लोगों की संख्या 3.8 करोड़ घटकर अब 16.74 करोड़ रह गई है. हालांकि, विश्व बैंक ने कहा है कि अत्यंत गरीबों की यह संख्या अभी भी 2018 के स्तर से ऊपर बनी हुई है.
कोविड-19 महामारी ने वैश्विक अर्थव्यवस्था के साथ-साथ भारत जैसे विकासशील देशों को बुरी तरह प्रभावित किया था. इसके चलते अधिकतर देशों में गरीबी का स्तर बढ़ गया था. महामारी के परिणामस्वरूप 2020 में लगभग 5.6 करोड़ भारतीय अत्यंत गरीबी के दलदल में फंस गए थे. लेकिन 2021 में अत्यंत गरीबों की संख्या 3.8 करोड़ घटकर 16.74 करोड़ पर आ गई.
इससे पहले विश्व बैंक ने कहा था कि महामारी के परिणामस्वरूप 2020 में लगभग 5.6 करोड़ भारतीय अत्यंत गरीब हो गए हैं, जिससे वैश्विक स्तर पर गरीबी के स्तर में 7.1 करोड़ की वृद्धि हुई और यह द्वितीय विश्व युद्ध के बाद से गरीबी में कमी के लिए सबसे खराब वर्ष बन गया.
आंकड़ों से पता चलता है कि भारत में गरीबों की संख्या 2019 में बढ़कर 17.69 करोड़ हो गई थी, जो 2018 में 15.17 करोड़ थी, जो महामारी से पहले की सबसे कम संख्या है. 2021 में भारत की गरीबी दर 11.9 फीसदी पर थी, जो 2018 के 11.09 फीसदी से अधिक है. हालांकि 2020 में गरीबी की दर 14.72 फीसदी के करीब थी.
विश्व बैंक के मुताबिक प्रतिदिन 2.15 डॉलर खर्च करने की क्षमता वाले लोगों को अत्यंत गरीब मानता है. बहुपक्षीय ऋण देने वाली संस्था ने 2011-12 में भारत में गरीबी का अनुमान लगाने के लिए सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (CMIE) की ओर से आयोजित उपभोक्ता पिरामिड घरेलू सर्वेक्षण (CPHS) आंकड़ों का इस्तेमाल किया है.
पूर्ववर्ती योजना आयोग के सदस्य रहे एन सी सक्सेना ने कहा कि 2018-19 में महामारी से पहले गरीबी बढ़ने के कई कारण थे. 2005-2015 की अवधि में, निर्माण में काफी निवेश हुआ, जिसमें 2015 के बाद गिरावट आई. इसलिए, बड़ी संख्या में लोग जो निर्माण गतिविधि में शामिल थे, उन्होंने अपनी नौकरियां खो दीं. नवीनतम आंकड़े यह भी दर्शाते हैं कि वास्तविक मजदूरी में कोई वृद्धि नहीं हुई है.
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