देश भले ही विकास की ओर बढ़ रहा हो, लेकिन आम लोगों की जीवनशैली में अभी तक खास बदलाव नहीं आया है. यही वजह है कि आज भी बिहार में एक तिहाई से ज्यादा ऐसे परिवार हैं जो रोजाना महज 200 रुपए व उसके आस-पास गुजारा कर रहे हैं. ऐसे लोगों की मासिक आय 6000 रुपए हैं. ये बात मंगलवार को राज्य विधानसभा में पेश की गई जाति सर्वेक्षण रिपोर्ट में आमने आई है.
रिपोर्ट के मुताबिक बिहार में समान आय पर जीवन यापन करने वाले एससी-एसटी परिवारों का आंकड़ा लगभग 43 प्रतिशत है. राज्य में लगभग 2.97 करोड़ परिवार रहते हैं, जिनमें से 94 लाख (34.13 प्रतिशत) से अधिक परिवार 6,000 रुपए या उससे कम मासिक आय पर जीवन यापन करते हैं. रिपोर्ट पेश करने वाले संसदीय कार्य मंत्री विजय कुमार चौधरी ने कहा कि अनुसूचित जनजाति के परिवारों (42.91 प्रतिशत) में प्रति माह 6000 रुपये से कम या प्रतिदिन 200 रुपये से कम पर गुजारा करने वाले परिवारों का प्रतिशत लगभग अनुसूचित जाति के परिवारों (42.78 प्रतिशत) के समान ही था.
साक्षारता दर और लिंग अनुपात में हुआ सुधार
मंत्री ने यह भी बताया कि बिहार में साक्षरता दर में सुधार आया है. 2011 की जनगणना के अनुसार ये 69.8 प्रतिशत से बढ़कर 79.8 प्रतिशत हो गई है. राज्य ने अपने लिंगानुपात में भी सुधार किया है, जो प्रति 1,000 पुरुषों पर 918 से बढ़कर 953 महिलाएं हो गया है. रिपोर्ट में कई अन्य महत्वपूर्ण निष्कर्ष भी सामने आए हैं जैसे बिहार के 50 लाख से अधिक लोग आजीविका या बेहतर शिक्षा के अवसरों की तलाश में राज्य से बाहर रह रहे हैं. दूसरे राज्यों में कमाई करने वालों की संख्या लगभग 46 लाख है, जबकि अन्य 2.17 लाख ने विदेशों में काम ढूंढ्र लिया है.
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