मानसून सीजन आधिकारिक तौर पर आधा खत्म हो गया है. और इस बार आधे मानसून सीजन के दौरान देशभर में औसत के मुकाबले 5 फीसद ज्यादा बरसात दर्ज की गई है. मौसम विभाग के आंकड़े बताते हैं कि 1 जून से 31 जुलाई तक देशभर में औसतन 467 मिलीमीटर बरसात हुई है जब कि सामान्य तौर पर इस दौरान औसतन 445.8 मिलीमीटर बारिश होती है. अबतक बीते मानसून सीजन के दौरान देशभर के 36 मौसम सबडिविजन में से 6 सब डिविजन ऐसे हैं जहां पर सामान्य के मुकाबले कम बरसात हुई है, हालांकि 12 सब डिविजन ऐसे भी हैं जहां पर औसत से ज्यादा या बहुत ज्यादा बरसात देखने को मिली है, करीब आधे यानी 18 सब डिविजन में सामान्य बारिश हुई है.
जिन राज्यों या सब डिविजन में बरसात की ज्यादा कमी है उनमें बिहार, झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश और गंगीय पश्चिम बंगाल सबसे आगे हैं. अबतक बीते मानसून सीजन के दौरान बिहार में सामान्य के मुकाबले 48 फीसद कम बरसात हुई है, राज्य के सभी 38 जिलों को सूखे का सामना करना पड़ रहा है. पूर्वी उत्तर प्रदेश का हाल भी बिहार से अलग नहीं है, पूर्वी उत्तर प्रदेश के अधीन आने वाले 42 में से 38 जिलों में सूखे का सामना करना पड़ रहा है और पूरे सब डिविजन में औसत के मुकाबले 35 फीसद कम बरसात हुई है. कुछ ऐसा ही हाल झारखंड और गंगीय पश्चिम बंगाल का है, झारखंड के सभी 24 जिलों में औसत के मुकाबले बहुत कम बरसात हुई है और सूखे के हालात हैं, पूरे झारखंड में सामान्य से 46 फीसद कम बारिश हुई है. गंगीय पश्चिम बंगाल के 13 में से 12 जिलों में सूखे के हालात हैं और पूरे सब डिविजन में औसत के मुकाबले 40 फीसद कम बरसात हुई है.
इस साल जून-जुलाई के दौरान राजस्थान, गुजरात, तेलंगाना, पंजाब, हरियाणा और हिमाचल में सामान्य के मुकाबले बहुत ज्यादा बरसात दर्ज की गई है. हालांकि अगस्त के दौरान आशंका है कि देश के कई हिस्सों में सामान्य के मुकाबले कम बरसात होगी. अलनीनो की वजह से अगस्त में बारिश की कमी की आशंका है. बरसात में कमी ज्यादा हुई तो उसकी वजह से खरीफ फसलों की पैदावार प्रभावित हो सकती है.
अभी तक बीते खरीफ सीजन के दौरान देशभर में फसलों की खेती 830 लाख हेक्टेयर दर्ज की गई है और पिछले साल इस दौरान 832 लाख हेक्टेयर में फसल लगी थी. इस बार खरीफ दलहन की खेती पर सबसे ज्यादा मार पड़ी है. अरहर, उड़द और मूंग की खेती पिछले साल के मुकाबले पिछड़ी हुई है. हालांकि धान, मोटे अनाज और तिलहन का रकबा पिछले साल के मुकाबले आगे चल रहा है. कपास की खेती लगभग पिछले साल जैसी दर्ज की गई है.
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