उच्च उत्सर्जन के चलते जलवायु परिवर्तन का संकट गहराता जा रहा है. इससे सबसे ज्यादा नुकसान भारत को हो सकता है. संयुक्त राष्ट्र आर्थिक और सामाजिक आयोग (ESCAP) की ओर से जारी एक रिपोर्ट के अनुसार साल 2100 तक जलवायु परिवर्तन से होने वाला नुकसान भारत के जीडीपी के 35 फीसद से ज्यादा हो सकता है. जबकि एशिया के लिए यह जीडीपी के 24 फीसद तक हो सकता है. इतना ही नहीं जलवायु परिवर्तन के चलते प्राकृतिक आपदाओं से होने वाला नुकसान दोगुना होकर करीब 1.4 ट्रिलियन डॉलर तक पहुंच सकता है.
ईएससीएपी ने जलवायु परिवर्तन को नियंत्रित करने के लए सभी हितधारकों को अपनी वित्तपोषण प्राथमिकताओं, प्रक्रियाओं और कार्यक्रमों में बदलाव में तेजी लाने की अपील की. रिपोर्ट में बताया गया है कि एशिया-प्रशांत साल 2015 के बाद से जलवायु कार्रवाई पर पीछे हट गया है, अधिकांश देशों ने अभी तक अपनी कार्बन उत्सर्जन के रोक को कानून में परिवर्तित नहीं किया है. 39 देशों में से केवल पांच ने ही इस पर अमल किया है. यह रिपोर्ट ऐसे समय में आई है जब वैश्विक एजेंसियां इस बात पर प्रकाश डाल रही हैं कि विकासशील देश 2030 तक अपने सतत विकास लक्ष्यों को पूरा करने की राह पर नहीं हैं.
रिपोर्ट में 10 अहम बातों पर प्रकाश डाला गया है. इसके तहत देशों को स्थायी वित्तपोषण अंतर को पाटने की जरूरत, स्थानीय मुद्रा वित्तपोषण, निजी क्षेत्र की भागीदारी, नियामक कार्रवाई आदि की बात कही गई है. साथ ही कहा गया है कि भारत को 2030 तक राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान के तहत मिटिगेशन के लिए 1.04 ट्रिलियन डॉलर के फंड की जरूरत होगी.