पर्यावरण की सुरक्षा और जलवायु परिवर्तन को नियंत्रित करने के लिए कार्बन उत्सर्जन को लेकर नई व्यवस्था बनाई गई है. जिसका नाम कॉर्बन बॉर्डर एडजस्टमेंट मैकेनिज्म (CBAM) है. मगर इसके अमल में आने से देश की निर्यात व्यवस्था खतरे में पड़ सकती है. दरअसल यूरोपीय यूनियन अमेरिका के बाद भारत के प्रमुख निर्यात बाजारों में से एक है, लेकिन ग्रीन रेगुलेशन से 43 फीसदी निर्यात पर संकट गहरा सकता है. ये बात दिल्ली की एक थिंक टैंक रिपोर्ट में कही गई है.
रिपोर्ट में कहा गया है कि ट्रेड ब्लॉक के प्रस्ताव और अन्य ग्रीन पहलुओं के कारण ये संकट देखने को मिल सकता है. निर्यात में रुकावट से कुछ खास कैटेगरीज पर ज्यादा असर पड़ेगा, इनमें कपड़ा (टेक्सटाइल), केमिकल, कुछ इलेक्ट्रॉनिक्स प्रोडक्ट्स, प्लास्टिक और व्हीकल शामिल हैं. साल 2022 में भारत से यूरोपियन यूनियन को किए गए कुल निर्यात का 32 प्रतिशत हिस्सा इन्हीं सेगमेंट से था.
प्रेरणा प्रभाकर और हेमंत माल्या की लिखी रिपोर्ट में बताया गया कि साल 2022 के निर्यात का आंकड़ा बताया गया और कहा गया कि 2022 में भारत से रिस्क वाले सेक्टर्स से 43 प्रतिशत यानी करीब 37 अरब डॉलर के बराबर का निर्यात किया गया था. अगर CBAM सेक्टर्स को इससे जोड़ा जाता है, तो भारत को करीब इतना ही नुकसान झेलना पड़ सकता है.
रिपोर्ट के मुताबिक हाल ही में विकसित देशों ने पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन को संबोधित करने के लिए कई नॉन-टैरिफ उपाय लागू किए गए हैं, इनमें एनर्जी एफिसिएंसी, कार्बन फुटप्रिंट, वेस्ट मैनेजमेंट, वाटर मैनेजमंट और टिकाऊ फॉरेस्ट्री के उपाय शामिल हैं. इस व्यवस्था को E-NTM नाम दिया गया है. इसके लागू होने भारत को अपनी प्रमुख निर्यात वस्तुओं में चुनौती का सामना करना पड़ सकता है, हालांकि इससे निपटने के लिए एक व्यवस्थित योजना की जरूरत होगी. रिपोर्ट में कहा गया है कुछ यूरोपीय यूनियन व्यापार समझौते, जैसे कि ईयू कनाडा कॉम्प्रिहेंसिव इकोनॉमी एवं ट्रेड एग्रीमेंट (CETA) और यूरोपीय संघ-वियतनाम मुक्त व्यापार समझौता (EU-Vietnam Free Trade Agreement) इससे निपटने का हल बताते हैं. इसके अलावा भारत को अन्य सदस्य देशों से गैर-व्यापार उपायों के नोटिफिकेशन के संबंध में विश्व व्यापार संगठन (WTO) फ्रेमवर्क का उपयोग करने में तेजी लानी चाहिए.
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