गेहूं की बढ़ती कीमतों पर लगाम लगाने के लिए सरकार लगातार प्रयास कर रही है. सरकार गेहूं के इंपोर्ट पर ड्यूटी में कटौती या फिर उसे पूरी तरह से खत्म करने पर विचार कर रही है. खाद्य सचिव संजीव चोपड़ा की ओर से यह बयान आया है. उनका कहना है कि रूस से गेहूं आयात करने को लेकर कोई भी प्रस्ताव नहीं मिला है. साथ ही सरकार टू सरकार डील के तहत गेहूं आयात करने का भी फिलहाल कोई प्रस्ताव नहीं है. उन्होंने कहा है कि सरकार महंगाई पर काबू पाने के लिए प्रतिबद्ध है. बता दें कि सरकार ने इस साल जितने गेहूं के उत्पादन का अनुमान लगाया है. उसके हिसाब से बाजार में गेहूं की वैसी सप्लाई नहीं दिखाई पड़ रही है.
इंपोर्ट पर कुल 44 फीसद टैक्स
देश में गेहूं के आयात पर फिलहाल 40 फीसद इंपोर्ट ड्यूटी है और 4 फीसद सेस लागू है यानी इंपोर्ट पर कुल 44 फीसद टैक्स लगता है. इतने भारी टैक्स पर इंपोर्ट होने वाला गेहूं भारतीय बाजार में घरेलू गेहूं के मुकाबले बहुत महंगा पड़ेगा और सरकार अगर इंपोर्ट ड्यूटी को पूरी तरह से खत्म करेगी तो ही देश में इंपोर्टेड गेहूं के सस्ता पड़ने की उम्मीद है.
गौरतलब है कि देश में इस साल 11.27 करोड़ टन गेहूं पैदा होने का अनुमान है और उसमें से 2.62 करोड़ टन गेहूं सरकार ने खरीदा है. करीब 1 करोड़ टन मिलों और स्टॉकिस्टों के पास है और किसानों को अपनी जरूरत के लिए 3-3.5 करोड़ टन गेहूं रखना पड़ता है. इसके बाद जो करीब 4-5 करोड़ टन गेहूं बचता है. वह लंबे समय से बाजार में नहीं आ रहा है. सरकार इसी को ध्यान में रखते हुए गेहूं पर स्टॉक लिमिट की सख्ती कर सकती है. उत्पादन में कमी, स्टॉक में गिरावट और मांग में बढ़ोतरी की वजह से गेहूं की कीमतों में इजाफा देखने को मिल रहा है.
बता दें कि रूस द्वारा यूक्रेन को दुनियाभर में अनाज भेजने की अनुमति देने वाले युद्धकालीन समझौते से बाहर निकलने और भारत द्वारा गैर बासमती सफेद चावल के निर्यात को प्रतिबंधित करने के बाद वैश्विक बाजार में चावल और खाद्य तेल जैसी खाद्य वस्तुओं की कीमतों में बढ़ोतरी हो गई है.