मानसून इस साल तय समय से छह दिन पहले ही देश भर में पहुंच गया. इसके बावजूद कई हिस्सों में बारिश कम हुई है. इसका असर जल स्त्रोतों पर साफ़ देखा जा सकता है. केंद्रीय जल आयोग (CWC) की हालिया रिपोर्ट बताती है कि निगरानी वाले 146 जलाशयों में से 110 का जल स्तर 40 फीसदी या उससे भी कम हो गया है. आयोग का कहना है कि इस वजह से मई 2024 तक रबी सीजन के दौरान सिंचाई गतिविधियों पर तो इसका असर पड़ेगा. इसके साथ ही पेजयल की उपलब्धता के बारे में भी चिंता बढ़ गई है.
केंद्रीय जल आयोग के ताजा आंकड़ों के अनुसार 30 जून तक 10 राज्यों के जलाशयों में जल स्तर उनके 30 साल के औसत स्तर से भी कम है. बिहार, पश्चिम बंगाल, ओडिशा, झारखंड, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, केरल, कर्नाटक, त्रिपुरा और नागालैंड में जलाशयों में 11 से 80 फीसदी तक पानी की कमी है. हालांकि ये जल स्तर पिछले 10 साल के औसत से बेहतर है.
बरसात के मौसम के पहले महीने में अपर्याप्त बारिश के कारण धान जैसी प्रमुख खरीफ फसलों की बुआई प्रभावित हुई है. भारत मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) के अनुसार 4 जुलाई तक 717 जिलों में से लगभग 236 ज़िलों में बहुत कम बारिश हुई है.
रबी की फसलें हो सकती हैं प्रभावित
ऊर्जा, पर्यावरण और जल परिषद के वरिष्ठ कार्यक्रम प्रमुख नितिन बस्सी का कहना है कि अगर स्थिति ऐसी ही रही तो रबी सीजन में कृषि पर असर पड़ सकता है. इससे गेहूं, चना, जौ और कुछ तिलहन की फसलें प्रभावित होंगी. इतना ही नहीं उन्होंने कहा कि पीने वाले पानी आपूर्ति पर भी असर पड़ेगा.
नीति आयोग ने जताई चिंता
नीति आयोग की एक रिपोर्ट बताती है कि अपनी पानी की जरूरतों के लिए भारत की अनियमित मानसून पर निर्भरता इस चुनौती को और बढ़ा रही है. इससे लाखों लोगों का जीवन और आजीविका खतरे में हैं. फिलहाल, 60 करोड़ भारतीयों पर गंभीर जल संकट का खतरा है. रिपोर्ट के मुताबिक 2030 तक देश की पानी की मांग, उपलब्ध आपूर्ति से दोगुनी हो जाने का अनुमान है. इससे देश की GDP में लगभग 6 फीसदी का नुकसान हो सकता है.