सरकार तुअर दाल की बढ़ती कीमतों पर लगाम लगाने के लिए एक नए आइडिया पर काम कर रही है. सरकार तुअर दाल के उपभोग को कम कर इसकी कीमतों को बढ़ने से रोकना चाहती है. इसके लिए सरकार लोगों को तुअर दाल की जगह चना दाल का अधिक उपयोग करने को कह रही है. केंद्र सरकार अरहर दाल के उत्पादन कमी की भरपाई करने के लिए चना दाल की खपत को बढ़ावा दे रही है. हालांकि, एक्सपर्ट्स का कहना है कि खपत के पैटर्न को बदलने से इस समस्या का समाधान निकालना संभव नहीं है. इससे पहले मौसम की खराब स्थिति के चलते तुअर और उड़द के उत्पादन में गिरावट की आशंका को देखते हुए केंद्र सरकार ने तुअर और उड़द दाल के इंपोर्ट पर 31 मार्च, 2024 तक इंपोर्ट ड्यूटी हटाने का ऐलान किया था.
गौरतलब है कि सरकार ने इस साल 2 जून को स्टॉक लिमिट भी तय किए. इसके अलावा, 9 अगस्त को सरकार ने’भारत दाल’ के रूप में चना दाल को 60 रुपए प्रति किलो बेचना शुरू किया.सरकार के कंज्यूमर प्राइस इंडेक्स के अनुसार, अरहर दाल की महंगाई दर 6 साल के उच्चतम स्तर पर है. अरहर दाल की कीमत बढ़ती ही जा रही है.तुअर का कंज्यूमर इनफ्लेशन जुलाई में 35 फीसद के आंकड़े को पार कर गया है. अगस्त में भी इसकी कीमत में कटौती होती नजर नहीं आ रही है.इससे पहले साल 2016 में पिलगातार दो सीजन सूखा रहने के चलते तुअर दाल की जबरदस्त कमी हो गई थी. इस साल 23 अगस्त को तुअर की कीमत 140 रुपए किलो थी, जबकि पिछली बार इसी समय यह 110 रुपए किलो थी.
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, किसानों का कहना है कि उपभोक्ताओं को अरहर के बजाय चना दाल का इस्तेमाल करने प्रेरित करने की पॉलिसी सही हो सकती है लेकिन इसकी सफलता की संभावना सीमित है. देश में मौसम में दिख रहे बदलाव और जलवायु परिवर्तन का असर सीधा फसलों पर पड़ रहा है. खरीफ फसलों वाले महीनों में तापमान में बढ़ोतरी और पूरे साल कई इलाकों में बिना मौसम के बारिश से फसलों की उत्पादकता पर बहुत बुरा असर पड़ा है. चना दाल चूंकि रबी फसल है और इसकी पैदावार अपेक्षाकृत स्थिर रही है, लिहाजा इसके उत्पादन में पिछले कुछ साल में बढ़ोतरी हुई है. सर्कार इसीलिए तुअर दाल की जगह चना दाल को बढ़ावा दे रही है.