प्राकृतिक चीजों से हो रही छेड़छाड़ ने दुनियाभर में ग्लोबल वॉर्मिंग का खतरा बढ़ा दिया है. इसका असर खेती-किसानी पर भी पड़ सकता है, नतीजतन खाद्य महंगाई दर में बढ़ोतरी हो सकती है. एक नए अंतरराष्ट्रीय शोध के अनुसार 2035 में ग्लोबल वॉर्मिंग के बढ़ने से हर साल खाद्य महंगाई दर में 3.2 प्रतिशत अंक की वृद्धि हो सकती है. इससे ग्लोबल साउथ सबसे ज्यादा प्रभावित होगा.
शोधकर्ताओं ने कहा कि अनुमानों से पता चलता है कि बढ़ते तापमान से कम लैटिट्यूड वाले देशों में पूरे साल महंगाई बढ़ती है, जबकि हाई लैटिट्यूड पर महंगाई केवल गर्मियों में होती है. इसके अलावा जर्मनी के पॉट्सडैम इंस्टीट्यूट फॉर क्लाइमेट इम्पैक्ट रिसर्च के लेखकों ने कहा कि 2022 की गर्मियों के दौरान यूरोप में खाद्य महंगाई को 0.67 प्रतिशत तक बढ़ा दिया था, यह वृद्धि 2035 तक 30-50 प्रतिशत तक बढ़ सकती है.
ये देश होंगे ज्यादा प्रभावित
शोधकर्ताओं ने कहा कि अफ्रीका और दक्षिण अमेरिका को अधिक प्रभाव का सामना करना पड़ सकता है. उत्सर्जन और जलवायु मॉडल अनुमानों से उत्पन्न होने वाली अनिश्चितता से 2035 तक खाद्य महंगाई 0.92 से 3.23 पी.पी.पी.वाई. (प्रति वर्ष प्रतिशत अंक) तक बढ़ सकती है. ये नतीजे इस बात के सबूत देते हैं कि अनुमानित ग्लोबल वार्मिंग अगले कुछ दशकों में महंगाई दर को बढ़ाने के लिए दबाव पैदा करेगी.
डेटा का किया गया विश्लेषण
अध्ययन के लिए शोधकर्ताओं ने 1991-2020 के बीच 121 देशों में मासिक राष्ट्रीय उपभोक्ता मूल्य सूचकांक और मौसम डेटा का विश्लेषण किया. उन्होंने परिणामों को भौतिक जलवायु मॉडल के अनुमानों के साथ जोड़कर अंदाजा लगाया कि बढ़ते तापमान से 2030 और 2060 के बीच महंगाई को कैसे प्रभावित करेगा. उनका कहना है कि जलवायु परिवर्तन से भविष्य में भोजन की कीमत में वृद्धि होने की संभावना है, लेकिन ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन और प्रौद्योगिकी को कम करने से काफी हद तक इस खतरे से निपटा जा सकता है.